तोरण मारने की परंपरा विवाह पर दूल्हे द्वारा की जाती हैं, जानिए इसका महत्व

हमारे देश में विभिन्न प्रकार की परम्पराएं और रीति-रिवाज है जिनका यहां लोग पूरी निष्ठा और आस्था से निर्वाह करते है।

Update: 2021-12-05 03:14 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारे देश में विभिन्न प्रकार की परम्पराएं और रीति-रिवाज है जिनका यहां लोग पूरी निष्ठा और आस्था से निर्वाह करते है। हमारे देश में तोरण बांधने की परम्परा सदियों पुरानी है, घर के मुख्य द्वार को तोरण द्वार भी कहा जाता है। मांगलिक अवसरों पर उन्हें सजाया भी जाता है। उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। एक परम्परा के अनुसार शादी में वर वधू के घर तोरण मार कर प्रवेश करता है। शादी में मारने वाला तोरण लकड़ी का बना हुआ होता है और उस पर एक तोता उकेरा गया होता है। लेकिन अक्सर लोग इस जानकारी के अभाव में देवी देवताओं वाला चित्रित तोरण को ही मारने लगे हैं। यह बिल्कुल गलत है। आइए जानते हैं तोरण मारने की प्रथा से जुड़ी मान्यता के बारे में

पौराणिक कथा
प्राचीन दंत की कथा अनुसार, तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था। जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार की शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि उसी दिन से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई।
इस परंपरा का उद्देश्य
तोरण मारने का उद्देश्य इस कथा के माध्यम से ऐसा समझ जा सकता है कि वधू के घर के मुख्य द्वार पर लगाए गए लकड़ी के तोरण में उकेरा गया तोता राक्षस का प्रतीक है जिसे वर वधू से विवाह करने से पूर्व मार गिराता है जिससे विवाह में किसी प्रकार का विलंब या परेशानी न आए। इस बात का ध्यान रहना चाहिए कि परम्परा अनुसार तोरण पर तोते का स्वरूप ही होना चाहिए। अन्य कोई धार्मिक चिह्न तोरण पर नहीं होना चाहिए क्योंकि धार्मिक चिह्नों पर तलवार से वार करना सर्वथा अनुचित है। इस बात का सभी को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
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