सूर्य, चंद्रमा, तारे, वायु, बादल, जल, पृथ्वी और मानव शरीर बने हैं शिव तत्व से, सावन महीने में इसी तत्व की होती है पूजा
तत्व की होती है पूजा
जिस क्षण आपका तन अस्तित्व में आया, यह मात्र एक कोशिका के रूप में था। एक कोशिका आपका पूरा शरीर बन गई। उस कोशिका को ठीक-ठीक ज्ञात था कि आंखें कहां बनानी हैं, कान कहां बनाने हैं, गुर्दे कहां होने चाहिए, हृदय कहां होना चाहिए और एक कोशिका ने स्वयं को कई अलग-अलग ढंग से गुणित किया, जैसे कि नाखून, केश, जिह्वा, मांसपेशियां, अस्थियां और शरीर के अन्य सभी अंग।
क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है? एक कोशिका ने बहुगुणित होकर मानव शरीर के इतने सारे अंग बनाए। मानव शरीर एक है, फिर भी यह अपनी प्रकृति और बनावट में बहुत विविधता पूर्ण है। विविधता में यह एकता संपूर्ण सृष्टि में भी नजर आती है। संपूर्ण सृष्टि में सूर्य, चंद्रमा, तारे, वायु, बादल, जल, पृथ्वी एक ही पदार्थ से बने हैं। हर वस्तु एक तत्व से बनी है। उस एक तत्व को शिव कहा जाता है, जिसकी हम श्रावण के इस शुभ महीने में पूजा करते हैं।
शिव तत्व के बारे में बात करना बहुत कठिन है क्योंकि इसे केवल महसूस किया जा सकता है। शब्द बहुत निकट जाते हैं लेकिन वापस लौट आते हैं। क्या शिव कोई सत्ता है? क्या उसका कोई रूप है? क्या वह किसी स्थान पर विराजमान कोई व्यक्ति है? नहीं, शिव संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। शिव तत्व वह है जहां से सब कुछ आया है, सब कुछ स्थित है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है। ऐसा कोई मार्ग नहीं है कि आप किसी भी समय शिव तत्व से बाहर निकल सकें क्योंकि शिव ही संपूर्ण सृष्टि हैं।
शिव विश्वरूप हैं, जिसका अर्थ है कि संपूर्ण ब्रह्मांड उनका रूप है और फिर भी वे निराकार या अरूप हैं। आप ब्रह्मांड की आदि ध्वनि ओम् की गहराई में जाकर उसे जान सकते हैं। आप शिव को कैसे समझ सकते हैं? केवल ध्यान के माध्यम से।
शिवरात्रि से जुड़ी एक सुंदर कथा है। एक बार ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा और ब्रह्मांड के संरक्षक विष्णु दोनों शिव के विस्तार को जानना चाहते थे।
ब्रह्मा ने कहा, "मैं ऊपर जाऊंगा और उनके मस्तक की खोज करूंगा और तुम उसके चरण ढूंढोगे।"
हजारों वर्षों तक विष्णु शिव के पैरों को खोजने के लिए नीचे की ओर यात्रा करते रहे और ब्रह्मा उनके सिर को खोजने के लिए ऊपर की ओर गए, लेकिन उन्हें वह नहीं मिला। अंततः वे दोनों मध्य में मिले और कहा कि वे भी उन्हें नहीं खोज सके। शिव का कोई आरंभ और कोई अंत नहीं है।
शिव में संपूर्ण सृष्टि समाहित है और सृष्टि विरोधों से भरी है। एक ओर उन्हें श्वेत वस्त्रधारी माना जाता है और दूसरी ओर वे कृष्ण वर्ण के हैं अर्थात काले हैं। वह ब्रह्मांड के भगवान हैं और फिर भी उनके पास वस्त्र या आभूषण का एक टुकड़ा भी नहीं है। वह एक तरफ रूद्र या भयंकर हैं और दूसरी तरफ भोलेनाथ या सबसे निर्दोष हैं। वह सुंदरेश है, सौंदर्य के स्वामी है और वह भयानक रूप से तीव्र अघोर भी हैं। शिव तत्व में सुंदर नृत्य की गतिशीलता और ध्यान की शांति, अंधकार और प्रकाश, भोलापन और बुद्धिमत्ता, उग्रता और करुणा सब समाहित हैं।
मृत्युंजय मंत्र यानी मृत्यु पर विजय का मंत्र
शिव का मृत्युंजय मंत्र वैदिक परंपरा में सबसे प्रतिष्ठित मंत्रों में से एक है। मृत्युंजय का अर्थ है मृत्यु पर विजय। आत्मा की कोई मृत्यु नहीं है। यह एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है। मृत्युंजय का अर्थ है क्षणभंगुर पर मन की विजय और शाश्वत की ओर बढ़ना। जब मन को यह एहसास होता है कि मैं शाश्वत हूं। मुझमें कुछ ऐसा है जो बदल नहीं रहा है। फिर कोई भय नहीं रहता। भय मृत्यु के लक्षणों में से एक है। जब आप भय पर विजय प्राप्त करेंगे, तब नाशवान के साथ पहचान की लघु मानसिकता पर विजय प्राप्त कर लेंगे और अविनाशी की ओर बढ़ेंगे। हम इन दोनों का मिश्रण हैं। हमारी आत्मा अविनाशी है और शरीर नाशवान है। अक्सर हमारा मन नाशवान से जुड़ा होता है और उसे लगता है कि वह मर रहा है। मृत्युंजय मंत्र हमारे मन को सीमित पहचान से असीमित पहचान की ओर ले जाता है। इसमें एक प्रार्थना है- शिव मुझे सबल बनाएं। उन्हें मुझे दृढ़ बनाने दो, वह मुझे बंधन से मुक्ति दिलाएं।
आमतौर पर लोग पूछते हैं कि जीवन का उद्देश्य क्या है? सृजन का उद्देश्य क्या है?
यह ब्रह्मांड किसी स्थान पर जाने की यात्रा नहीं है। सृष्टि का कोई उद्देश्य नहीं है। यह मात्र चेतना का एक खेल और प्रदर्शन है। जैसे नर्तक और नृत्य अलग नहीं हो सकते, वैसे ही सृष्टि और रचयिता दो अलग वस्तुएं नहीं हैं। इस सत्य को नटराज (शिव के रूपों में से एक) के रूप में दर्शाया गया था। नटराज स्वयं चेतना हैं, उनमें पांच तत्वों को दर्शाया गया है। चेतना का नृत्य संपूर्ण ब्रह्मांड है। यह ब्रह्मांड संघर्ष या कष्ट नहीं दे रहा है; यह हर क्षण उत्सव मना रहा है। ये आनंद है, जो यह नहीं जानता, वह दुःखी होता है, निराश होता है, पीड़ित होता है। जो यह जानता है कि यह संपूर्ण सृष्टि एक नृत्य है, उसे आनंद मिलता है। यह सत्य शिव तत्व है।
चेतना की चौथी अवस्था है शिव तत्व
शिव को अनुभव करने का प्रयास न करें। आपको बस उस पल में मौजूद रहना है और निश्चिंत रहना है, शिव तत्व पहले से ही वहां मौजूद है। हमारी चेतना की 3 अवस्थाएं हैं - जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति, और चेतना की एक चौथी अवस्था भी है, जहां हम न तो जाग्रत होते हैं, न स्वप्न देखते हैं और न ही सोते हैं। इसका अनुभव ध्यान में होता है। उस चौथी अवस्था की झलक को ही शिव तत्व कहा जाता है। उपनिषद कहते हैं शिवम्, शांतम्, अद्वैतम्, चतुर्थम्, मन्यन्ते, सा आत्मा, सा विज्ञेय। अर्थात शुभ, शांतिपूर्ण चौथी अवस्था, जहां दो नहीं हैं, वह तुम्हारा स्वरूप है, वही जानने योग्य है।
आपको क्या लगता है कि आप क्या हैं? आप केवल एक नाम नहीं हैं, मात्र एक रूप नहीं हैं। आप वह प्रकाशमान चेतना हैं जो शिव तत्व है। शिव का मंदिर पत्थरों से नहीं मनुष्य की चेतना से बना है। वह जो संपूर्ण ब्रह्मांड को समाहित करता है, वह सत्ता जिसमें हर जीवन समाया है, वह रहस्यमय शिव तत्व है।