Shani Pradosh Vrat Katha: आज प्रदोष व्रत पर पढ़ें ये कथा, मिलेगी मनचाही वर की प्राप्ति
Shani Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में शनि प्रदोष व्रत की मान्यता बहुत है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित किया गया है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का व्रत और पूजा की जाती है. इस दिन व्रत और पूजा करने वाले पर भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है. इस व्रत पर पड़ने वाली तिथि पर जो वार पड़ता है, उसी वार के नाम से इस व्रत को जाना जाता है. इस बार ये प्रदोष व्रत शनिवार को है. यही वजह है कि इसको शनि प्रदोष व्रत कहा जा रहा है|
शनि प्रदोष व्रत की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, शनि प्रदोष व्रत की तिथि 28 दिसंबर को तड़के सुबह 2 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी. वहीं 29 दिसंबर को तड़के सुबह 3 बजकर 32 मिनट पर इस तिथि का समापन हो जाएगा. ऐसे में शनि प्रदोष व्रत कल यानी शनिवार को रखा जाएगा. इस दिन भगावन शिव के पूजन और व्रत के साथ ही शनि प्रदोष व्रत की कथा सुनना या पढ़ना भी लाभदायक होता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पूजा के बाद शनि प्रदोष व्रत की कथा सुनने या पढ़ने के बाद ही व्रत पूरा माना जाता है|
शनि प्रदोष व्रत की कथा
हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक ब्रह्माणी रहती थी. वो विधवा थी. पति की मौत के बाद भिक्षा मांगकर अपना गुजर बसर करती थी. एक दिन भिक्षा मांगकर लौटते समय उसे रास्ते में दो बेसहारा बच्चे मिले. फिर वो उन दोनों को घर ले आई. वक्त के साथ दोनों बालक बड़े हो गए. एक दिन दिन ब्रह्माणी ऋषि शांडिल्य के पास दोनों को लेकर गई. ऋषि शांडिल्य को प्रणाम कर ब्रह्माणी ने दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में बताने के लिए प्रार्थना की|
ऋषि शांडिल्य ने ब्रह्माणी की प्रर्थना स्वीकार कर ली और उसे बताया कि ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं. ऋषि ने बताया कि गंदर्भ नरेश ने विदर्भ पर आक्रमण कर दिया, जिसके कारण इनके पिता का राज छिन गया. ऋषि की बातें सुनकर ब्रह्माणी ने उनसे ऐसा उपाय बताने का आग्रह किया, जिससे की राजकुमारों का राजपाठ उन्हें वापस मिल जाए. ब्रह्माणी के आग्रह पर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा. इसके बाद ब्राह्मणी समेत दोनों राजकुमारों ने ये व्रत किया. उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार अंशुमती नाम की कन्या से मिले. दोनों एक दूसरे मोहित हो उठे और विवाह का फैसला किया|
इसके बाद अंशुमती के पिता ने विदर्भ के राजकुमारों की मदद गंदर्भ नरेश से युद्ध जीतने में की. राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई. प्रदोष व्रत करने के कारण दोनों राजकुमारों को उनका राज-पाठ वापस मिल गया. इसके बाद राजकुमारों ने ब्रह्माणी को अपने राज दरबार के प्रमुख स्थानों में से विशेष स्थान प्रदान किया|