Guru-Shishya की परम्परा,कौन थे भगवान शिव के पहले शिष्य ,जाने रहस्य

Update: 2025-02-04 10:25 GMT
Guru-Shishya ज्योतिष न्यूज़ : भगवान् शिव को जगत गुरु कहा जाता है। त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु सहित सृष्टि के संहारक भगवान् शंकर भी शिव का अंश ही समझे जाते हैं। बेहद काम लोगों को ये जानकारी है की शिव और शंकर अलग-अलग हैं। शिव एक निराकार ऊर्जा का स्रोत हैं जबकि शनकर एक साकार रूप। शिव को जगत का आधार माना गया है और कहा जाता है कि उनसे ही ये सृष्टि शुरु हुई, सभ्यता शुरु हुई और सभी धर्म और सम्प्रदाय शुरु हुए। इसलिए, सभी धर्मों के मूल में कहीं न कहीं शिव जरूर मौजूद हैं और आप जब सभी धर्मों का गहराई से अध्ययन करेंगे, सबको कहीं न कहीं आप भगवान शिव से जुड़ा हुआ और प्रेरित पाएंगे, चाहे वो इस्लाम हो
या ईसाई धर्म।
शुरु की गुरु-शिष्य परंपरा
यह भी मान्यता है की जब इस सृष्टि की शुरुआत हुई, तो भगवान् शिव धर्म, योग और वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे, ताकि सृष्टि सुचारु रूप से चल सके। इसलिए, उन्होंने गुरु-शिष्य की परंपरा की शुरुआत की जिसके तहत उन्होंने कुछ शिष्यों को चुना, उन्हें ज्ञान दिया ताकि वे समस्त जगत में शैव की परम्परा का प्रकाश फैला सकें । भगवान शिव के भक्तों के बारे में तो बहुत लोग जानते हैं, जैसे कि परशुराम, रावण इत्यादि लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान् शिव ने अपना ज्ञान सबसे पहले किसे दिया था और किन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे समस्त जगत को शैव धर्म से परिचित कराएं। शिवजी ने सबसे पहले अपना ज्ञान सप्तऋषियों को दिया था। सप्तऋषि ही शिवजी के सर्वप्रथम शिष्य थे। शिवजी से ज्ञान प्राप्त करने के बाद इन सप्तऋषियों ने इसे अलग-अलग दिशाओं में फैलाया। इस तरह से दुनियाभर में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार हुआ।
सप्तऋषियों के नाम
भगवान् शिव से ज्ञान लेने के बाद उनके शिष्यों से ही एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई। भगवान शिव के ये मूल शिष्य थे सप्तऋषि, जिन्हें उन्होंने सबसे पहले अपना ज्ञान दिया था। सप्तऋषियों को शिवजी से योग, वैदिक ज्ञान, शैव परम्परा इत्यादि के अलग-अलग पहलुओं पर ज्ञान प्राप्त हुआ और इन ऋषियों ने ही शिवजी के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया, जिससे अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव जी के इन 7 शिष्यों को प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन सप्तऋषियों के नाम हैं - बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज मुनि।आज भी नाथ, शैव, शाक्त आदि सम्प्रदायों में इसी परम्परा का निर्वाह हो रहा है। बाद में आदि शंकराचार्य और गोरखनाथ ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया जिन्हें हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने का श्रेय भी दिया जाता है।
Tags:    

Similar News

-->