Sawan Vinayak Chaturthi की पूजा को सफल बनाने के लिए पढ़ें ये आरती

Update: 2024-08-08 09:07 GMT
Sawan Vinayak Chaturthi ज्योतिष न्यूज़: सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन सावन की विनायक चतुर्थी को बहुत ही खास माना गया है जो कि गणपति की साधना आराधना को समर्पित होती है इस दिन भक्त प्रभु की भक्ति में लीन रहकर दिनभर पूजा पाठ व व्रत आदि करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में चतुर्थी शुक्ल पक्ष और
कृष्ण पक्ष के दौरान आती है।
 मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है अभी सावन का महीना चल रहा है और इस माह की विनायक चतुर्थी का व्रत आज यानी 8 अगस्त दिन गुरुवार को किया जा रहा है इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से अत्यंत शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है साथ ही जीवन में भी शुभता का आगमन होता है लेकिन अगर आज विनायक चतुर्थी की पूजा के दौरान श्री गणेश की आरती पढ़ी जाए तो प्रभु की असीम कृपा बरसती है और पूजा का पूर्ण फल मिलता है।
 ॥श्री गणेश जी की आरती॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती (माता पार्वती के मंत्र), पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
 लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
संकट नाशक मंत्र
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।
नौकरी प्राप्ति हेतु मंत्र
ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।
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