षटतिला एकादशी के दिन जरूर सुनें ये कथा... आपकी सभी मनोकामना होगी पूर्ण

माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी मनाई जाती है.

Update: 2021-02-06 03:24 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्कमाघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2021) मनाई जाती है. इस साल षटतिला एकादशी 7 फरवरी 2021 को मनाई जाएगी. षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. इस व्रत में तिल का छ: रूप में दान करना उत्तम फलदायी होता है. जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का दान करता है उसे उतने हज़ार वर्ष स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है. 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं 1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन. इन चीजों का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन चीज़ों का दान दें. जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें इसकी कथा जरूर सुननी चाहिए. आइए जानते हैं षटतिला एकादशी की कथा के बारे में

षटतिला एकादशी की व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है. एक नगर में एक ब्राह्मणी निवास करती थी. वह भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्त थी. वह भगवान विष्णु के सभी व्रतों को नियम से करती थी. ऐसे ही एक बार उसने 1 महीने तक व्रत और उपवास रखा. इसकी वजह से शरीर दुर्बल हो गया, लेकिन तन शुद्ध हो गया. अपने भक्त को देखकर भगवान ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा. उसने एक गलती की थी कि व्रत के समय कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया था. इस वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी. तब भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर गए.
वे उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टा का एक पिंड दे दिया. श्रीहरि वहां से चले आए. कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हो गया और वह विष्णुलोक पहुंच गई. उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली, जिसमें कुछ भी नहीं था सिवाय एक आम के पेड़ के. उसने पूछा कि इतना व्रत करने का क्या लाभ? उसे यहां पर खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला. तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं दिया. य​ह उसी का परिणाम है. यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा, उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा.
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछना. जब तक वे इसके बारे में बता न दें, तब तक तुम कुटिया का द्वार मत खोलना. भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही उस ब्राह्मणी ने किया. देव कन्याओं से विधि जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत किया. उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई. वह भी रुपवती हो गई. भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी व्रत की महिमा इस प्रकार सुनाई. षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है और दरिद्रता दूर होती है.


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