आइए जानते हैं माता के 9 स्वरूपों के महत्व के बारे में

9 स्वरूपों की पूजा की जाती है और इनका अपना अलग-अलग महत्व होता है

Update: 2022-04-02 03:53 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 2 अप्रैल को भगवती के सबसे पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाएगी. इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में हुआ इसके कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. चंद्रमा संबंधित दोष समाप्त करने के लिए मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है.

3  मां भगवती का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी. इनकी पूजा 3 अप्रैल को होगी. माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को वर स्वरूप पाने के लिए घोर तपस्या की थी. इसके कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं.
4  मां भगवती का तीसरा स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा 4 अप्रैल को होगी. इनके सिर पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा है. जिसके कारण इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. माता चंद्रघंटा की पूजा करने से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं.
5 अप्रैल को भगवती के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा की जाती है. मां कुष्मांडा की 8 भुजाएं हैं. कहते हैं इन्होंने अपनी मुस्कुराहट से ब्रह्मांड की रचना की है. इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभाव से बचा जा सकता है.
6 अप्रैल को भगवती के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. इनकी पूजा से अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है. उनकी पूजा से बुध ग्रह के कुप्रभाव से बचा जा सकता है
7 अप्रैल को भगवती के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाएगी. इनकी पूजा से धन, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता के अनुसार महर्षि कात्यायन ने भगवती की कठिन तपस्या पुत्री प्राप्ति के लिए की थी. जिसके बाद देवी ने उनके घर में पुत्री रूप में जन्म लिया और उनका नाम कात्यायनी पड़ा.
8 अप्रैल को भगवती के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा की जाएगी. मान्यता के अनुसार कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं. सभी असुरी शक्तियों का नाश हो जाता है.
9 अप्रैल को भगवती के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाएगी. इनकी उम्र 8 साल मानी गई है. इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा गया है. महागौरी की पूजा करने से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं.

10 अप्रैल को भगवती के नवे स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी. कहते हैं इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान से साधना करने पर सिद्धि प्राप्त होती है. सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.


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