कमजोरी को ताकत बनाना सीखें उसी में आपकी जीत है, पढ़िए ये प्रेरक कहानी
जापान के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले दस वर्षीय ओकायो को जूडो कराटे सीखने का बहुत शौक था.
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | जापान के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले दस वर्षीय ओकायो को जूडो कराटे सीखने का बहुत शौक था. लेकिन बचपन में हुई एक दुर्घटना में बायां हाथ कट जाने के कारण उसके माता-पिता उसे जूडो सीखने की आज्ञा नहीं देते थे. लेकिन उसकी जिद लगातार बढ़ती ही जा रही थी. तभी एक दिन उसके माता पिता उसे लेकर नजदीकी शहर के एक मशहूर मार्शल आर्ट्स गुरु के पास पहुंचे.
गुरु ने जब ओकायो को देखा तो उन्हें अचरज हुआ कि ए बिना बाएँ हाथ का यह लड़का भला जूडो क्यों सीखना चाहता है ! उन्होंने पूछा, तुम्हारा तो बायां हाथ ही नहीं है तो भला तुम और लड़कों का मुकाबला कैसे करोगे? ओकायो ने कहा ये बताना तो आपका काम है. मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे सभी को हराना है और एक दिन खुद मास्टर बनना है. गुरु उसकी सीखने की दृढ इच्छा शक्ति से काफी प्रभावित हुए और बोले ठीक है, मैं तुम्हें सिखाऊंगा. लेकिन एक शर्त है कि तुम मेरे हर एक निर्देश का पालन करोगे और उसमें दृढ विश्वास रखोगे. ओकायो ने हां में सिर हिलाकर सहमति दी.
गुरु ने एक साथ लगभग पचास छात्रों को जूडो सीखना शुरू किया. ओकायो भी अन्य लड़कों की तरह सीख रहा था. पर कुछ दिनों बाद उसने ध्यान दिया कि गुरु जी अन्य लड़कों को अलग-अलग दांव-पेंच सिखा रहे हैं लेकिन वो अभी भी एक किक का अभ्यास कर रहा है जो उसने शुरू में सीखी थी. उसने गुरू जी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि तुम्हें बस इसी एक किक पर महारथ हांसिल करने की आवश्यकता है.
समय बीतता गया और आठ साल बीत गए, लेकिन ओकायो एक ही किक का अभ्यास करने पर जुटा रहा. एक दिन गुरु जी ने सभी शिष्यों को बुलाया और बोले, मुझे आपको जो ज्ञान देना था वो मैं दे चुका हूं और अब गुरुकुल की परंपरा के अनुसार सबसे अच्छे शिष्य का चुनाव एक प्रतिस्पर्धा के माध्यम से किया जाएगा. विजयी होने वाले शिष्य को मास्टर की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा.
प्रतिस्पर्धा आरम्भ हुई. गुरू जी ने ओकायो को पहले मैच में हिस्सा लेने के लिए आवाज लगाई. ओकायो ने लड़ना शुरु किया और अपने पहले दो मैच बड़ी आसानी से जीत लिए. तीसरा मैच थोडा कठिन था, लेकिन अपनी अचूक किक से उसने इस मैच को भी अपने नाम कर लिया और फाइनल में पहुंच गया.
इस बार विरोधी कहीं अधिक ताकतवर, अनुभवी और विशाल था. उसे देखकर ऐसा लगता था कि ओकायो उसके सामने एक मिनट भी टिक नहीं पाएगा. शुरुआत में ओकायो को ये मैच जीत पाना असंभव लगा. लेकिन मौका पाते ही उसने अपनी किक का इस्तेमाल किया और विरोधी को धराशाई कर दिया. उसकी किक से विरोधी बेहोश हो गया और ओकायो विजेता बन गया.
ओकायो अपनी जीत पर आश्चर्यचकित था कि सिर्फ एक मूव से उसने मैच कैसे जीता. तब गुरू जी ने उससे कहा कि तुम ये मैच दो वजहों से जीते हो. पहली वजह कि तुमने जूडो की एक सबसे कठिन किक पर अपनी इतनी मास्टरी कर ली कि शायद ही इस दुनिया में कोई और ये किक इतनी दक्षता से मार पाए. दूसरी वजह कि इस किक से बचने का एक ही उपाय है और वो है विरोधी के बाएं हाथ को पकड़कर उसे जमीन पर गिराना जो तुम्हारे साथ संभव नहीं था. तब ओकायो को समझ में आया कि उसकी सबसे बड़ी कमजोरी को आज उसने अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया है.
दोस्तों हर किसी के पास दो विकल्प होते हैं, या तो वो जो चीज नहीं है उसका अफसोस करके रोता रहे, या उसी कमी को अपनी ताकत बनाकर एक मुकाम बनाए. ओकायो की दृढ शक्ति और विश्वास ने उसे विजेता बना दिया.