जानें क्यों होती है मां धूमावती की विधवा स्वरूप में पूजा

भगवान शिव द्वारा प्रकट की गईं 10 महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या को मां धूमावती के नाम से जाना जाता है.

Update: 2021-06-11 14:37 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भगवान शिव द्वारा प्रकट की गईं 10 महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या को मां धूमावती के नाम से जाना जाता है. हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को इनका प्राकट्य दिवस होता है. इस साल धूमावती जयंती 18 जून को पड़ रही है. मां मां धूमावती को विधवा स्वरूप में पूजा जाता है. कौए पर सवार मां धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश हमेशा खुले रहते हैं.

मान्यता है कि मां धूमावती का स्वरूप इतना उग्र है कि वे महाप्रलय के दौरान भी मौजूद रहती हैं. जब पूरा ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है, काल समाप्त हो जाता है और स्वयं महाकाल भी अंतर्धान हो जाते हैं, चारोंं तरफ राख और धुआं ही नजर आता है, तब भी मां धूमावती वहां अकेली ही मौजूद रहती हैं. इन्हें मां पार्वती का उग्र रूप कहा जाता है. गुप्त नव​रात्रि में माता की विशेष रूप से पूजा होती है. मां धूमावती की पूजा विपत्ति से छुटकारा पाने, रोग नाश करने, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है. माना जाता है कि माता धूमावती की कृपा जिस पर हो जाए उस व्यक्ति के जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती, लेकिन अगर मां कुपित हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन तबाह हो सकता है. जानिए मां धूमावती की पूजा से जुड़ी जानकारी.
इसलिए होती है विधवा के रूप में पूजा
पौराणिककथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती को भूख लगी तो उन्होंने महादेव से कुछ खाने की इच्छा प्रकट की. लेकिन महादेव समाधि में लीन थे. ​उन्होंने महादेव से कई बार अनुरोध किया लेकिन महादेव की समाधि नहीं टूटी. इस बीच माता की भूख अनियंत्रित हो गई और वे व्याकुल हो गईं. भूख से बेचैन होकर उन्होंने शिव को ही निगल लिया. लेकिन शिव जी के कंठ में विष होने की वजह से माता के शरीर में जहर पहुंच गया और उनके शरीर से धुआं निकलने लगा और उनका रूप अत्यंत भयंकर हो गया. तब महादेव ने उनसे कहा आज से तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जाएगा. लेकिन तुम्हें ये रूप पति को निगलने के बाद मिला है, इसलिए तुम्हारे इस रूप को विधवा के तौर पर पूजा जाएगा.
ऐसेकरें पूजा
धूमावती जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें. इसके बाद पूजा के स्थान को गंगाजल से पवित्र करें. इसके बाद माता की तस्वीर सामने रखकर उन्हें जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप और नैवैद्य अर्पित करें. इसके बाद मां धूमावती के प्राकट्य की कथा पढ़ें या सुनें. माता के मंत्र का जाप करें. अंत में माता से अपनी ​अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगे और उनसे घर के संकट दूर करने की प्रार्थना करें.
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्
धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:
धूं धूं धूमावती ठ: ठ:
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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