Kaal Bhairav: भटकते-भटकते काशी पहुंचे थे काल भैरव, जानिए ये अद्भुत रहस्य

Update: 2025-01-28 10:49 GMT
Kaal Bhairav ज्योतिष न्यूज़ : काल भैरव, जिन्हें भगवान शिव का रौद्र अवतार माना जाता है, उन्हें 'काशी का कोतवाल' कहा जाता है। कहते हैं कि भगवान शिव ने ही काल भैरव को काशी की रक्षा का भार सौंपा था। स्कंद पुराण के अनुसार, काल भैरव एक पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी आए थे। यहां आकर उन्हें इतनी शांति मिली कि उनका क्रोध शांत हो गया। काशी में इतनी शांति थी कि काल भैरव काशी में ही बस गए। आइए, जानते हैं काल भैरव के रहस्य।
काटा था ब्रह्मजी का सिर
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार एक बार त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में, सबसे श्रेष्ठ कौन है, इस बात पर विवाद होने लगा। जब सभी ऋषि-मुनियों और महान लोगों से पूछा गया, तो उन्होंने शिव को श्रेष्ठ बताया। यह सुनकर ब्रह्म जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने शिव का अपमान कर दिया। इससे शिवजी के क्रोध से ही काल भैरव जी प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया।
ब्रह्म हत्या से मुक्ति के लिए
काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगने के बाद वह तीनों लोकों में घूमे, लेकिन उनको मुक्ति नहीं मिली। भटकते हुए काल भैरव जी को मुक्ति नहीं मिली तो शिव जी ने उन्हें काशी जाने का आदेश दिया। शिव जी ने कहा, "तुम काशी जाओ, वहीं मुक्ति मिलेगी।" शिव जी के आदेश पर काल भैरव जी काशी पहुंचे और वहां गंगा स्नान किया। इसके बाद वो काशी में ही बस गए और शिव जी के नगर रक्षक बन गए, जिन्हें आज हम काल भैरव के नाम से पूजते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर में निवास करते हैं काल भैरव
भैरव जी को शिव जी का ही रूप माना जाता है। वे लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और जरुरत पड़ने पर दंड भी। कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले काल भैरव के दर्शन जरूर करने चाहिए। तभी काशी यात्रा पूर्ण मानी जाती है। बाबा विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव उनके कोतवाल, पौराणिक मान्यता है कि काल भैरव काशी विश्वनाथ मंदिर में ही अपना दरबार लगाकर लोगों की अर्जियां सुनते हैं और लोगों के साथ न्याय करते हैं।
शनि की साढ़े साती और ढैया से मिलती है मुक्ति
काल भैरव की पूजा से शनि की साढ़े साती, ढैया और शनि दंड से मुक्ति मिलती है। शनि प्रकोप से बचने के लिए शनिवार के दिन काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि इस स्थान पर यमराज को भी दंड देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह अधिकार केवल शिव और काल भैरव को है। खुद यमराज भी बिना आज्ञा के यहां किसी के प्राण नहीं हर सकते और दंड देने के अधिकार भी शिव एवं काल भैरव को ही है।
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