निर्जला एकादशी व्रत के दौरान करें इन नियमों का पालन

सालभर में 24 एकादशी होती हैं, जिसमें से हर माह दो एकादशी पड़ती हैं. कहा जाता है कि एकादशी का व्रत श्रेष्ठ व्रतों में से एक है और मुक्ति दिलाने वाला है

Update: 2022-06-09 09:25 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सालभर में 24 एकादशी होती हैं, जिसमें से हर माह दो एकादशी पड़ती हैं. कहा जाता है कि एकादशी का व्रत श्रेष्ठ व्रतों में से एक है और मुक्ति दिलाने वाला है. लेकिन एकादशी व्रत के नियम थोड़े कठिन होते हैं, इसलिए हर कोई सालभर के 24 व्रत नहीं रख पाता. कहा जाता है कि जो लोग 24 एकादशी नहीं रख सकते, वे केवल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधि विधान से रख लें, तो भी उन्हें 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है. इस एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कहा जाता है. कहा जाता है कि कुंती पुत्र भीम भूख बर्दाश्त नहीं कर पाते थे, इसलिए 24 एकादशियों का पुण्य लेने के लिए उन्होंने इस एक एकादशी का व्रत रखा था. इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.

इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून को रखा जाएगा. अगर आप भी इस व्रत को रखने के बारे में सोच रहे हैं, तो इसके नियम जरूर जान लें क्योंकि निर्जला एकादशी के नियम काफी कठिन होते हैं. इसे नियमानुसार रहने पर ही ये व्रत सफल होगा और आप इसका पुण्य प्राप्त कर पाएंगे.
निर्जला एकादशी व्रत के नियम
– किसी भी एकादशी व्रत के नियम एक दिन पहले ही शुरु हो जाते हैं. निर्जला एकादशी के साथ भी ऐसा ही है. दशमी की रात यानी आज से ही इसके नियम शुरू हो जाएंगे. दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले ही शाम का भोजन ग्रहण कर लें. भोजन में प्याज लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल न करें.
– दशमी की रात को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए. सोने के लिए चटाई का इस्तेमाल करें. इसके अलावा ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें.
– एकादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर तथा नित्य क्रियाओं से निवृत हो कर और स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान का पूजन करें और निर्जल व्रत रखें.
– व्रत के दौरान श्रीहरि का नाम जपते रहें. न तो किसी की निंदा करें और न ही सुनें. न ही किसी की चुगली करनी चाहिए.
– शाम के समय भी पूजा करें. चाहें तो एक बार फलाहार ले सकते हैं, लेकिन नमक बिल्कुल न खाएं और पानी न पीएं. एकादशी की रात में जागरण करें और नारायण के भजन कीर्तन करें.
– इस व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है. द्वादशी के दिन स्नान और पूजा से निवृत्त होने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं. इसके बाद उसे सामर्थ्य के अनुसार दान दें और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें. इसके बाद अपने व्रत का पारण करें.
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