नवरात्रि में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का है विशेष महत्व

आदि शक्ति मां जगदंबा की परम कृपा प्राप्त करने के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे

Update: 2021-10-10 07:02 GMT

आदि शक्ति मां जगदंबा की परम कृपा प्राप्त करने के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हिंदू धर्म के लोग साल में दो बार नवरात्रि का महापर्व मनाते हैं. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वसंत और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को शारदीय नवरात्रि को पूरी श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि की आज पांचवी तिथि है. आज के दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है.

इस कर्म भूमि के सपूतों के लिए मां दुर्गा की पूजा और आराधना ठीक उसी प्रकार कल्याणकारी है, जिस प्रकार अंधेरे में घिरे हुए संसार के लिए भगवान सूर्य की एक किरण काफी होती है. नवरात्रि में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का बड़ा ही महत्व है. यह अष्टमी और नवमी की कल्याणप्रद, शुभ बेला श्रद्धालु भक्तजनों को मनोवांछित फल देकर नौ दिनों तक लगातार चलने वाले व्रत और पूजन महोत्सव के सम्पन्न होने के संकेत देती है.

विधि-विधान से पूजा करने से प्राप्त होते हैं कई लाभ

मां दुर्गा की आराधना से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इतना ही नहीं बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व सम्पूर्ण विश्व के लिए भी मां भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है.

इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विषेश महत्व है. पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजाना चाहिए तथा स्थापित समस्त देवी-देवताओं का आवाह्‌न उनके 'नाम मंत्रो' द्वारा कर षोडषोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायनी है.

भविष्य पुराण में मिलता है दुर्गाष्टमी और नवमी का उल्लेख

भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में महानवमी व दुर्गाष्टमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है. जिसमें दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है. यह पूजन प्रत्येक युगों, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वन्तरों आदि में भी प्रचलित था.

मां भगवती सम्पूर्ण जगत में परमशक्ति अनन्ता, सर्वव्यापिनी, भावगम्या, आद्या आदि नाम से विख्यात हैं. जिन्हें माया, कात्यायिनी, काली, दुर्गा, चामुण्डा, सर्वमंगला, शंकरप्रिया, जगत जननी, जगदम्बा, भवानी आदि अनेक रूपों में देव, दानव, राक्षस, गन्धर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि अष्टमी व नवमी को पूजते हैं.

मिट जाते हैं घर-परिवार में व्याप्त दुख-दर्द

अष्टमी और नवमी को तिथि को मां भगवती का पूजन करने से कष्ट, दुख मिट जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती. यह तिथि परम कल्याणकारी, पवित्र, सुख को देने वाली और धर्म की वृद्धि करने वाली है. अनेक प्रकार के मंत्रोंपचार से विधि प्रकार पूजा करते हुए भगवती से सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, विजय, आरोग्यता की कामना करनी चाहिए.

नवरात्रि के आठवें दिन की देवी मां महागौरी हैं. परम कृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हुईं. भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौदर्य प्रदान करने वाली है. अर्थात्‌ शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं. मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन वैभव सम्पन्न होते हैं

नौवें दिन की दुर्गा सिद्धिदात्री हैं. यह दिन मां सिद्धिदात्री दुर्गा की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है. मां भगवती ने नौवें दिन देवताओं और भक्तों के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध कर दिया, जिससे मां सिद्धिदात्री के रूप में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हुई. परम करूणामयी सिद्धिदात्री की अर्चना व पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं. बाधाएं समाप्त होती हैं एवं सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है.

इस प्रकार अष्टमी को विविध प्रकार से भगवती जगदम्बा का पूजन कर रात्रि को जागरण करते हुए भजन, कीर्तन, नृत्यादि उत्सव मनाना चाहिए तथा नवमी को विविध प्रकार से पूजा-हवन कर नौ कन्याओं को भोजन खिलाना चाहिए और हलुआ आदि प्रसाद वितरित करना चाहिए और पूजन हवन की पूर्णाहुति कर दशमी तिथि को व्रती को व्रत खोलना (पारण करना) चाहिए.

यदि नवमी तिथि की वृद्धि हो तो एक नवमी को व्रत कर दूसरे नवमी में अर्थात्‌ दसवें दिन पारण करने का विधान शास्त्रों में मिलता है. जो सभी प्रकार के अमंगल को दूर कर जीवन को सुखद व सुंदर बना देता है.

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