रोहिणी व्रत के दिन जरुर करें पौराणिक कथा, कष्टों से मिलेंगी मुक्ति

Update: 2024-03-14 05:45 GMT
नई दिल्ली : रोहिणी व्रत जैन धर्म के महत्वपूर्ण व्रत में से एक है। इस व्रत का संबंध नक्षत्रों से माना गया है। जैन मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। इस तरह साल में 12 बार रोहिणी व्रत किया जाता है। इस साल मार्च में रोहिणी व्रत 16 मार्च 2024 को किया जाएगा।
रोहिणी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चंपापुरी नाम का एक नगर था, जिसमें राजा माधवा और रानी लक्ष्मीपति रहते थे। राजा के 7 पुत्र और 1 बेटी थी। बेटी का नाम रोहिणी था जिसका विवाह हस्तिनापुर के राजा अशोक से हुआ। एक समय हस्तिनापुर में एक मुनिराज आए और सभी को धर्मोपदेश दिया। तब राजा ने मुनिराज से पूछा कि आखिर उनकी रानी इतनी शांत क्‍यों रहती है?
इस पर मुनिराज ने एक कथा सुनाते हुए कहा कि इसी नगर में एक राजा था जिसका नाम वस्‍तुपाल था। उसी राजा का मित्र धनमित्र था, जिसकी बेटी का नाम दुर्गांधा था। धनमित्र हमेशा परेशान रहता था कि उसकी बेटी से कौन विवाह करेगा? क्योंकि उसकी बेटी में से हमेशा दुर्गंध आती रहती थी। धनमित्र ने धन का लालच देकर अपने पुत्री का विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण के साथ कर दिया। लेकिन उसकी दुर्गंध से परेशान होकर वह उसे एक महीने के अंदर ही वापस छोड़कर चले गए।
मुनिराज ने बताई वजह
एक बार अमृतसेन मुनिराज नगर में विहार करते हुए आए। तब धनमित्र ने अपनी पुत्री दुर्गंधा की व्यथा बताते हुए मुनिराज से उसके बारे में पूछा। तब उन्होंने कहा कि गिरनार पर्वत के पास एक नगर था, जहां राजा भूपाल का राज्य था। उनकी रानी का नाम सिंधुमती था। एक दिन राजा अपनी रानी के साथ वनक्रीड़ा कर रहे थे, तभी रास्ते में उन्होंने मुनिराज को देखा। तब राजा ने रानी को मुनि के लिए भोजन की व्यवस्था करने को कहा।
इस पर रानी ने क्रोधित होकर मुनिराज को कड़वी तुम्बी का भोजन बनाकर दे दिया। जिस कारण मुनिराज को अत्यंत कष्ट सहन करना पड़ा और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। इस बात का पता राजा को चलने पर उन्होंने रानी को राज्य से निकाल दिया। जिसके बाद रानी के शरीर में कोढ़ हो गया और प्राण त्यागने के बाद वह नरक में गई। यह वही रानी है, जो तेरे घर दुर्गंधा के रूप में उत्पन्न हुई है।
इस तरह किया व्रत
यह सुन धनमित्र ने अपनी पुत्री के लिए उपाय पूछा। तब मुनिराज ने उसकी कन्या को सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत का पालन करने को कहा। इस व्रत में जिस दिन हर मास रोहिणी नक्षत्र आए उस दिन चारों तरह के आहार का त्याग करना था। इस तरह इस व्रत को 5 वर्ष करना था। दुर्गंधा ने मुनिराज के अनुसार पूरी श्रद्धा से इस व्रत को किया और मरणोपरान्त उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। अगले जन्म में दुर्गंधा ही अशोक की रानी बनीं। इस प्रकार यह माना जाता है कि जो भी इस व्रत को करता है उसके सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे मरणोपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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