हर क्षण करें श्री हरि का ध्यान, इस दिन खुल जाते हैं बैकुंठ के द्वार

पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को बैकुंठ एकादशी नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी तिथि भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा करने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Update: 2022-01-12 07:09 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को बैकुंठ एकादशी नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी तिथि भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा करने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री हरि नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। मान्यता है कि यह एकादशी मनुष्य को मोक्ष के द्वार तक ले जाती है। इस एकादशी पर स्नानादि से निवृत्त होकर घर को स्वच्छ करें। पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। भगवान को रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें। फूलों से शृंगार के बाद भगवान को भोग लगाएं। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की आरती करें। इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें। इस एकादशी पर दीपदान का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि बैकुंठ एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के धाम बैकुंठ के द्वार खुले होते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि एकादशी का व्रत करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी पर व्रत का संकल्प लें और जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। प्रभु का स्मरण करते रहें। श्री हरि को धूप, दीप, पुष्प, फूल माला और नैवेद्य अर्पित करें। पंचामृत और तुलसी अर्पित करें। श्री हरि का ध्यान कर पूरे दिन उपवास रखें। रात में फलाहार करें और जागरण कर भगवान का भजन करें। द्वादशी के दिन स्‍नान करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें। इसके बाद व्रत का पारण करें। एकादशी के दिन मन में किसी के प्रति गलत विचार न लाएं। किसी की निंदा न करें और न ही किसी को सताएं। भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा संपन्न होने के बाद तुलसी के पत्ते अर्पित करें और भगवान को भोग लगाएं।


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