चाणक्य नीति : इन 4 कारणों से कोई भी व्यक्ति होता हैं अपमानित और दुखी
मान-सम्मान को आचार्य चाणक्य ने बहुत बड़ी पूंजी माना जाता है, लेकिन कई बार अपनी कुछ गलत आदतों और अवगुणों की वजह से व्यक्ति को दुख और अपमान झेलना पड़ता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मान-सम्मान को आचार्य चाणक्य ने बहुत बड़ी पूंजी माना जाता है, लेकिन कई बार अपनी कुछ गलत आदतों और अवगुणों की वजह से व्यक्ति को दुख और अपमान झेलना पड़ता है. जानिए इस बारे में क्या कहती है चाणक्य नीति.
संसार में हर व्यक्ति को मान और सम्मान की चाह होती है. लेकिन मान-सम्मान अपने गुणों और सद्कर्मों से कमाया जाता है. कई बार हमारे अवगुण या हमारी आदतें भी हमारे अपमान की वजह बन जाती हैं. ऐसे में हमारे पास चाहे कितना कुछ हो, लेकिन व्यक्ति खुद को सुखी नहीं रख पाता.
आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथ नीतिशास्त्र में व्यक्ति को दुख देने वाले और अपमानित करने वाले कारणों के विषय में लिखा है. उन्होंने अज्ञानता को सबसे बड़ा दुख बताया है. इसके अलावा भी कुछ अन्य कारणों का जिक्र किया है, जिसकी वजह से व्यक्ति चाहकर भी मान-सम्मान हासिल नहीं कर पाता. जानिए अपने श्लोक के माध्यम से आचार्य ने क्या कहने का प्रयास किया है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्,
कष्टात् कष्टतरं चैव परगेहे निवासनम्.
अज्ञानता की वजह से नहीं मिलता मान-सम्मान
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य ने बताया है कि सबसे बड़ा दुख व्यक्ति का मूर्ख या अज्ञानी होना है. अज्ञानी व्यक्ति हर जगह अपनी मूर्खता की वजह कुछ न कुछ ऐसा कर ही देता है, जिसके कारण उसे अपमानित होना पड़ता है. बुद्धि के अभाव में व्यक्ति कभी ज्ञानी नहीं बन सकता. लेकिन मान सम्मान पाने के लिए अज्ञान के अंधकार को दूर करना बहुत जरूरी है. ज्ञानी व्यक्ति ये अच्छे से जानता है कि कहां उसे कैसा आचरण करता है, इसलिए वो हर जगह मान-सम्मान पाता है.
किसी अन्य पर आश्रित होना
अज्ञानी होने भी कहीं ज्यादा अपमानित उस व्यक्ति को होना पड़ता है जिसका जीवन किसी दूसरे पर निर्भर होता है. ऐसे व्यक्ति को एक दास की तरह जीवन बिताना पड़ता है और सदैव दूसरे के बंधन में बंधकर रहना पड़ता है. ऐसे लोग कोई काम अपनी स्वेच्छा से नहीं कर सकते. ये व्यक्ति के लिए बहुत दुखदायी होता है. इसलिए अगर आप मान-सम्मान पाना चाहते हैं तो आत्म निर्भर बनें. कभी किसी पराए के घर में रहने का सहारा न ढूंढें.
अनियंत्रित जवानी
जवानी में व्यक्ति के अंदर बहुत जोश होता है, लेकिन अगर व्यक्ति अपने जोश को और क्रोध को नियंत्रित न कर पाए तो गलत राह पर जाकर कुछ न कुछ अनुचित जरूर करता है, जिसकी वजह से उसकी मान प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है और उसके लिए जीवनभर का दुख उत्पन्न हो सकता है. इसलिए अपने जोश को जवानी में नियंत्रित करके सही दिशा देनी चाहिए. तब आपकी एनर्जी आपका जोश आपको बहुत आगे ले जाएगा.