चामुण्डा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक ,चामुण्डा देवी मंदिर का इतिहास
नवरात्रि माता दुर्गा के विभिन्न रुपों की उपासना का सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नवरात्रि माता दुर्गा के विभिन्न रुपों की उपासना का सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता है.इस वर्ष भी शारदीय नवरात्रि पर देशभर में उत्साह का माहौल बना हुआ है. अलग-अलग तरीकों से मां की आराधना की जा रही है. मां के 51 शक्तिपीठों पर दर्शनों के लिए सैंकड़ों भक्त पहुंच रहे हैं. हिमाचल प्रदेश जिसे देव भूमि भी कहा जाता है, वहां स्थित मां का एक शक्तिपीठ भी भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. मां चामुण्डा का ये मंदिर भक्तों के साथ ही यहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होता है.
यह शक्तिपीठ कांगड़ा जिले में स्थित है. मान्यता है कि यहां आने वाले श्रध्दालुओं की मां चामुण्डा सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं. कहते हैं कि यहां यात्री कई दिनों तक रुक सकते हैं और अपनी यात्रा का पूरा लाभ उठा सकते हैं
यहां हुआ था चंड-मुंड का वध
पौराणिक मान्यताओं के अनुसुार इसी स्थल पर मां दुर्गा से चंड-मुंड नाम के दो दुष्ट असुर युद्ध करने के लिए आए थे. युद्ध के दौरान मां ने काली रूप धारण कर लिया था और दोनों दानवों का वध कर दिया. मां अंबिका की दृष्टि से प्रादुर्भूत मां काली ने जब चंड-मुंड के शीश उपहार के रुप में भेंट किए तो मां अंबा ने उन्हें वर दिया कि वे इस संपूर्ण संसार में मां चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध होंगी.
चामुण्डा देवी मंदिर के इतिहास को लेकर एक कहानी काफी प्रचलित है. कहते हैं कि 400 साल पहले राजा और पुजारी ने जब मंदिर का स्थान सही जगह पर बदलने की अनुमति मांगी थी तो देवी मां ने पुजारी को सपने में दर्शन देते हुए मंदिर को अलग जगह स्थानांतरित करने की अनुमति देने के साथ ही एक निश्चित स्थान पर खुदाई का आदेश दिया था. जब वहां पर खुदाई की गई तो वहां से मां चामुण्डा की एक मूर्ति निकली. जिसके बाद मां की मूर्ती की उसी जगह स्थापना कर पूजा की जाने लगी.
इसके पूर्व राजा ने जब मूर्ति बाहर निकालने के लिए आदेश दिए तो लाख कोशिश के बाद भी लोग मूर्ति बाहर निकालने में सक्षम नहीं हुए. इसके बाद एक बार फिर देवी मां ने पुजारी को दर्शन दिए और कहा कि सब मूर्ति को साधारण समझ उठाने की कोशिश कर रहे हैं. देवी मां ने पुजारी से कहा के वे सुबह नहाकर पवित्र कपड़ों में मूर्ति को बाहर निकालकर लाएं तो वे अकेले ही उसे उठाने में सक्षम होंगे. इसके बाद पुजारी ने ये बात राजा को बताई कि यह देवी मां की शक्ति ही थी जिसकी वजह से कोई भी मूर्ति को नहीं हिला पा रहा था. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.