होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
शास्त्रों में भद्राकाल में कोई भी शुभ काम न करने के लिए कहा गया है. भद्राकाल देर रात 12:57 बजे तक रहेगा. ऐसे में देखा जाए तो होलिका दहन का शुभ समय तो 12:57 बजे के बाद ही है. 12:58 बजे से 02:12 बजे तक होलिका दहन किया जा सकता है. इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी. लेकिन कुछ ज्योतिष विद्वानों का मत है कि होलिका दहन रात 09:06 बजे से लेकर 10:16 बजे के बीच भी किया जा सकता है क्योंकि इस समय भद्रा की पूंछ रहेगी. भद्रा की पूंछ में होलिका दहन किया जा सकता है.
होलिका दहन के दौरान न करें ये गलतियां
1- नवविवाहिता को होलिका दहन की अग्नि नहीं देखनी चाहिए. इसे जलते शरीर का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इससे उनके नए वैवाहिक जीवन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
2- होलिका दहन में के लिए पीपल, बरगद, आंवला, शमी या आम की लकड़ियों का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए. ये पेड़ दैवीय माने गए हैं. इसकी जगह आप गूलर या अरंड के पेड़ की लकड़ी या उपलों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा किसी भी सूखी लकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
3- आज के दिन किसी भी व्यक्ति को धन उधार न दें. ऐसा करने से घर में बरकत पर असर पड़ता है और पूरे साल आर्थिक समस्याएं बनी रहती हैं.
4- अगर आप अपने माता पिता की इकलौती संतान हैं, तो होलिका दहन की अग्नि को प्रज्जवलित करने से परहेज करें.
होलिका दहन के समय करें ये उपाय
1- होलिका दहन की पूजा के दौरान नारियल के साथ पान और सुपारी अर्पित करें. इससे आपका सोया भाग्य जाग सकता है.
2- घर की नकारात्मकता दूर करने और परिवार के लोगों पर से बलाओं को समाप्त करने के लिए आज के दिन एक नारियल लें. इसे अपने और परिवार के लोगों पर सात बार वार लें. होलिका दहन की अग्नि में इस नारियल को डाल दें और सात बार होलिका की परिक्रमा करके मिठाई का भोग लगाएं.
3- आज के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को सामर्थ्य के अनुसार दान दें. इससे आपके तमाम संकट कट जाते हैं.
होलिका दहन की मान्यता
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है. ये कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की है. कथा के अनुसार प्रह्लाद असुर राज हिरण्यकश्यप का पुत्र था और भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप को ये बात पसंद नहीं थी. वो अपने पुत्र को नारायण की भक्ति से दूर रखना चाहता था, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद प्रहलाद नहीं माना. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को काफी प्रताड़ित किया और कई बार मारने के प्रयास किए, लेकिन वो असफल रहा. फिर उसने ये कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा जिसे वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को नहीं जला सकती. होलिका प्रहलाद को जान से मारने के इरादे से अग्नि में बैठी, लेकिन स्वयं जलकर खाक हो गई, पर प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा. इस तरह बुराई का अंत हुआ और भक्ति की जीत हुई. जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी थी, उस दिन पूर्णिमा तिथि थी. तब से हर साल पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है.