Ashwin Maas 2021 : 21 सितंबर से शुरू होगा आस्था का आश्विन मास, इन चीजों का करें दान

सनातन परंपरा से जुड़े 12 मास का पूजा.‍पाठ, जप.‍तप, दान आदि की दृष्टि से अपना अलग.‍अलग महत्व है

Update: 2021-09-20 08:59 GMT

सनातन परंपरा से जुड़े 12 मास का पूजा.‍पाठ, जप.‍तप, दान आदि की दृष्टि से अपना अलग.‍अलग महत्व है.‍ प्रत्येक मास में प्रतिदिन कोई न कोई तीज त्योहार उस मास को एक नई पहचान देता है.‍ बात करें यदि आश्विन मास (Ashwin month) की तो इस मास में भी कई बड़े महापर्व आते हैं.‍ आश्विन मास (Ashwin month) के कृष्णपक्ष से होने वाली शुरुआत में पितरों को समर्पित पितृपक्ष आता है तो वहीं शुक्लपक्ष में देवी दुर्गा की उपासना का महापर्व नवरात्र आता है.‍ इस साल आश्विन मास (Ashwin maas) की शुरुआत 21 सितंबर 2021 से शुरु होकर 20 अक्टूबर 2021 तक रहेगा.‍

आश्विन मास का धार्मिक महत्व
आश्विन मास (Ashwin maas) के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध और तर्पण किया जाता है.‍ पितरों से जुड़े इस धार्मिक कार्य को विधि.‍विधान से करने पर पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.‍ इससे प्रसन्न होकर पितर हम पर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं.‍
आश्विन मास इन चीजों का करें दान
आश्विन मास (Ashwin maas) के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त पिण्डदान करना चाहिए.‍
आश्विन मास (Ashwin maas) में पितृपक्ष के दौरान माता.‍पिता अथवा पूर्वजों की पुण्य तिथि पर किसी ब्राह्मण को स्नेह और आदर के साथ बुलाकर भोजन कराना चाहिए और उसे अपने सामथ्र्य के अनुसार दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए.‍
आश्विन मास (Ashwin maas) में प्रतिदिन अपनी क्षमता के अनुसार तिल और घी का दान करना चाहिए.‍
आश्विन मास (Ashwin maas) के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को धन, वस्त्र, भोजन, फल, मिष्ठान आदि का दान देने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.‍
पितृपक्ष हो या फिन नवरात्र का समय ब्राह्मणों और कन्याओं को भोजन कराते समय अथवा दान सामग्री देते समय अभिमान न करें.‍
आश्विन मास में न करें ये काम
आश्विन मास (Ashwin maas) में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे गृहप्रवेश, विवाह संबंधी कार्य, किसी नये कार्य की शुरुआत आदि नहीं किया जाता है.‍ आश्विन मास (Ashwin maas) में दूध, करेला आदि का सावन नहीं करना चाहिए.‍ इस पावन मास में मांस.‍मदिरा आदि सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए, बल्कि तमाम तरह की बुराईयों का त्याग करके मन और वाणी से पवित्र रहना चाहिए.‍


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