क्या है सेंदरा अभियान? प्रशासन में हड़कंप, एसपी और अफसरों की बैठक

बड़ा अभियान.

Update: 2024-12-11 07:59 GMT
नई दिल्ली: पश्चिम सिंहभूम के गुदड़ी में हजारों ग्रामीणों ने पीएलएफआई उग्रवादियों के आतंक से तंग आकर एक बड़ा अभियान छेड़ रखा है. ग्रामीणों ने अभियान के तहत अब तक चार पीएलएफआई उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया है. जिन उग्रवादियों को मारा गया है उनमें शुक्रवार को मारे गए पीएलएफआई उग्रवादी एरिया कमांडर मेटा टाइगर और गोमिया शामिल है.
वहीं सोमवार को भी दो अन्य उग्रवादियों को मार गिराने की सुचना है. क्षेत्र में दहशत फैलाकर निर्दोषों की जान लेकर आतंक का पर्याय बन रहे पीएलएफआई उग्रवादियों के खिलाफ ग्रामीणों का यह इतना बड़ा अभियान है जिसमें तकरीबन 30 हजार ग्रामीण पारंपरिक हथियार के साथ उग्रवादियों की तलाश में जंगल में घूम रहे हैं. स्थानीय भाषा में इस तरह के अभियान को ग्रामीण सेंदरा अभियान का नाम देते हैं. सेंदरा का मतलब होता है शिकार करना.
ग्रामीण पीएलएफआई उग्रवादियों के आतंक से इतना परेशान हो चुके थे कि 30 हजार की संख्या में ग्रामीणों ने पीएलएफआई उग्रवादियों के खिलाफ सेंदरा अभियान शुरू कर दिया है. सेंदरा अभियान की खबर जब सुर्खियां बनी तो जिले के डीसी कुलदीप चौधरी और एसपी आशुतोष शेखर को तीन दिन बाद गुदड़ी प्रखंड का दौरा करना पड़ा. अचानक मंगलवार को अति नक्सल प्रभावित गुदड़ी प्रखंड कार्यालय पहुंचे डीसी, एसपी और अन्य अधिकारीयों ने कई गांव के ग्रामीण मुंडा के साथ बैठक कर पुरे मामले की जानकारी ली.
इस बैठक से मिडिया को दूर रखने का प्रशासन ने पूरा प्रयास किया, लेकिन बैठक के बाद डीसी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि क्षेत्र के विकास और अन्य बिन्दुओं पर बैठक में चर्चा की गयी है. जब मिडिया ने क्षेत्र में फैली हिंसा और हत्या का मामला उठाया तो एसपी ने कहा कि पुलिस और सुरक्षाबलों के द्वारा मारे गए पीएलएफआई उग्रवादियों के शव की तलाश की जा रही है. गुदड़ी में चल रहे सेंदरा अभियान को लेकर ताजा जानकारी यह भी है कि सोमवार को भी दो उग्रवादियों का सेंदरा कर दिया गया है, लेकिन अब तक इसकी पुष्टि कहीं से भी नहीं की जा सकी है.
कुल मिलाकर कहा जाए तो सेंदरा अभियान बीते कुछ दिनों से तेज गति से गुदड़ी के बीहड़ जंगलों में चलाया जा रहा है. दरअसल, कुछ दिन पहले पीएलएफआई उग्रवादियों के द्वारा गुदड़ी में दो युवकों की हत्या कर दी गई थी. जानकारी मिली थी की उग्रवादी बालू के अवैध कारोबार में अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे, जिसको लेकर उग्रवादियों ने दो युवक रवि तांती और घनसा टोपनो की हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड से ग्रामीणों में पीएलएफआई उग्रवादियों के खिलाफ इतना गुस्सा भड़का कि उनके खिलाफ गुदड़ी समेत, सोनुआ, गोईलकेरा, आनंदपुर, रानिय, बंदगांव के हजारों ग्रामीण एकजुट हो गए और सेंदरा अभियान शुरू कर दिया.
सेंदरा अभियान के तहत हाथों में तीर धनुष लेकर क्षेत्र में सक्रिय पीएलएफआई उग्रवादियों की तलाश में हजारों ग्रामीण जुट गए. ताज्जुब की बात यह है कि इतने बड़े पैमाने में गुदड़ी में सेंदरा अभियान चलाया गया लेकिन पुलिस को शुरूआती कुछ दिनों तक इसकी भनक तक नहीं लगी. वहीँ उग्र ग्रामीणों ने बीहड़ जंगलों में पारंपरिक हथियार से लैस होकर 2 पीएलएफआई उग्रवादी मेटा टाइगर और गोमिया को चुन चुन कर ढूंढ निकाला.
इसके बाद दोनों की तीर धनुष, पत्थर और अन्य पारंपरिक हथियार से वार कर सेंदरा कर दिया. हालांकि इस घटना की पुष्टि अब तक पुलिस द्वारा नहीं की गयी है, लेकिन गुदड़ी के बीहड़ जंगलों से लगातार पीएलएफआई उग्रवादी के मारे जाने की खबर आ रही है.
गुदड़ी के बीहड़ जंगलों में चल रहे सेंदरा अभियान ने एक बार फिर से उस घटना की भी याद को ताजा कर दिया है जब गुदड़ी के बुरुगुलिकेरा गांव में 7 पीएलएफआई उग्रवादियों की ग्रामीणों ने बेरहमी से पीट पीटकर हत्या कर दी थी. इस बार भी ग्रामीणों ने पीएलएफआई उग्रवादियों के 2 उग्रवादियों को मौत के घाट उतारकर उग्रवादी आतंक पर नकेल कसने की कोशिश की है लेकिन इस तरह की घटना को लेकर पुलिस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या पश्चिम सिंहभूम में पुलिस इतना सक्षम नहीं है की वह खुद उग्रवादियों पर नकेल कस सके.
आखिर ग्रामीणों को कानून हाथ में लेने के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है. पुलिस इस मामले को लेकर आगे क्या कार्रवाई करेगी यह भी देखना होगा. क्योंकि अपराध को खत्म करने के लिए कानून हाथ में लेने की इजाजत संविधान नहीं देता है. ऐसे में न्यायालय से ऊपर उठकर ऑन स्पॉट फैसला देने के इस प्रवृत्ति से क्षेत्र में अराजकता, द्वेष और हिंसा फैलेगी. पश्चिम सिंहभूम में सेंदरा अभियान कोई नया नहीं है.
इससे पहले जिले के चक्रधरपुर के झरझरा टोकलो ईलाके में जेएलटी उग्रवादी संगठन के खिलाफ बड़े पैमाने पर सेंदरा अभियान चला था जिसमें दर्जनों जेएलटी उग्रवादियों को चुन चुन कर पारंपरिक हथियार से मारकर मौत के घाट उतारा गया था. उसके बाद गुदड़ी में दो बार 7-7 पीएलएफआई उग्रवादियों का सेंदरा ग्रामीणों ने किया, और अब फिर एक बार गुदड़ी में ही 2 पीएलएफआई उग्रवादियों को सेंदरा के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया है. गाँव में कानून व्यवस्था और शांति पूरी तरह से भंग है. लोग खौफ के साए में जी रहे हैं. खुद की सुरक्षा के लिए ग्रामीण खुद हथियार उठाने को मजबूर हैं और जिले की पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बनकर तमाशा देखने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रही है.
गुदड़ी में उग्रवादियों के खिलाफ चल रहे इस सेंदरा अभियान को लेकर झारखण्ड के डीजीपी से जब पत्रकारों ने सवाल किया तो उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया. उन्होंने कहा की उग्रवादी और नक्सली के खिलाफ गांव में भी असंतोष है. लोग इतना परेशान हो चुके हैं की अब नक्सलियों को ग्रामीण मार मार कर भगायेंगे. सूबे के एक बड़े पुलिस अधिकारी ने कानून हाथ में लेने के इस अभियान को एक तरह से कहा जाये तो जायज ठहरा दिया है.
ऐसे में सवाल यह उठता है की क्या अपराध को खत्म करने के लिए आम लोगों को अपराधी बनाना जरुरी है. जिस उग्रवादी को ढूंढ कर ग्रामीण सेंदरा कर रहे हैं, क्या उस उग्रवादी का एनकाउंटर पुलिस नहीं कर सकती थी. क्या उग्रवादी की मौत की घटना को लेकर कोई मामला दर्ज होगा. अगर मामला दर्ज होगा तो इस मामले की जड़ में कौन आएंगे. किन लोगों को कोर्ट कचहरी का सामना करना पड़ेगा. ऐसे कई सवाल हैं जो इस सेंदरा अभियान को लेकर लोगों के मन में कौंध रहे हैं. हिंसा का जवाब अगर हिंसा से आम लोग देने लगे तो फिर कानून व्यवस्था और कानून की रखस अकरने वाले पुलिस की जरुरत ही क्या है.
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