सुकांत दीपक
युकसोम (आईएएनएस)| यदि हम वैसे ही हैं जैसा हमारा भोजन है, तो हम क्या हैं? लेखिका शैलाश्री शंकर की किताब 'टर्मरिक नेशन: ए पैसेज थ्रू इंडियाज टेस्ट्स' में खान-पान को परंपरा, धर्म, इतिहास, आदत, जेनेटिक्स, भूगोल आदि के नजरिए से देखने और समझने की कोशिश की गई है। यह पुस्तक लेखों का संग्रह है। शैलाश्री दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो हैं।
राज्य सरकार द्वारा टीमवर्क आर्ट्स के सहयोग से आयोजित सिक्किम आर्ट एंड लिटरेचर फेस्टिवल (6-8 मई) के पहले संस्करण के दौरान शंकर ने आईएएनएस को बताया, यही तथ्य हमें सही से परिभाषित करता है कि हम एक समान नहीं हैं। हमारी खाद्य संस्कृति के लिए भी यही सही है।
अतीत में कई लोगों ने इस देश को जीता, लेकिन लेखिका को लगता है कि उनमें से किसी ने भी यहां के जीवन के तौर-तरीकों को समाप्त नहीं किया बल्कि खुद इस भूमि के कई सांस्कृतिक पहलुओं को अपनाया। यहां के स्थानीय स्वाद को चखने के बाद अपने भोजन में मसालों को शामिल कर कई नए व्यंजन विकसित करने वाले मुगलों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, विदेशों में मुगलई व्यंजनों को ही भारतीय व्यंजनों के रूप में जाना जाता है। बिना इस बात को जाने कि यह अपने-आप में कितने अलग-अलग अर्थो को समाये हुए है और स्वाद कहां से आया है, भोजन की धारणा के बारे में बात करना गलत होगा।
भोजन द्वारा बनाई गई विभिन्न पहचानों को मोजाइक के रूप में देखते हुए और विविध मोजाइकों की जांच करते हुए, लेखिका भोजन को विभिन्न धर्मों के चश्मे से देखती हैं। अतीत में आधुनिक चिकित्सा के आने से पहले मुसलमान यूनानी और हिंदू आयुर्वेदिक सिद्धांतों का उपयोग करते थे। उस समय हम जो खाते थे उसका भी एक समग्र तौर-तरीका था। खाने पकाने के तरीके में संतुलन था। आम का शरबत पीने के साथ इसे किसी और चीज से संतुलित करना या बरसात में मछली नहीं खाना आदि। यह इस बारे में भी है कि यह हमारे व्यक्तित्व के बहुत से पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है और हम अपने बचपन के खाद्य पदार्थों की ओर कैसे लौटते हैं। आप जिस भोजन के साथ सहज हैं उस पर लौटते हैं, लेकिन साथ ही प्रयोग भी करते हैं। और हमें नहीं भूलना चाहिए कि अतीत में भोजन किसी की पहचान - जाति, धर्म और पदानुक्रम का एक प्रमुख चिह्न् था। ब्राह्मण मांसाहार नहीं खाएंगे, जबकि क्षत्रिय और अन्य लोग खाएंगे।
लेकिन एक राजनीतिक विश्लेषक ने भोजन के बारे में क्या लिखा? शंकर ने कहा कि इसे लेकर उनके मन में हमेशा एक अजीब आकर्षण रहा है। पिछले 25 साल से वह खान-पान के संस्मरण और खाना पकाने की विधि की किताबें पढ़ रही हैं - हर समय नया कुछ बनाती रहती हैं। वह खुद को नौसिखिया कहती हैं। उन्हें लगता है कि उनके मन में जो सवाल हैं वह दूसरे लोगों के मन में भी होंगे। वह कहती हैं, यह किताब लिखने के लिए मैंने उन प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग जगहों पर तलाशने की कोशिश की। मैंने विज्ञान, मानव विज्ञान और पुरातत्व में उत्तर ढूंढा, और विद्वानों ने किस प्रकार इनका उत्तर दिया है यह देखा। यही कारण है कि 'हल्दी राष्ट्र' थोड़ा अलग है - इसमें एक नौसिखिए का अंदाज है - इसलिए यह अत्यधिक प्रयोगात्मक है और कुछ लेख दूसरों की तुलना में बेहतर हैं।
अब लेखिका ऐसी चीज पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हैं जिसके प्रति वह हमेशा आकर्षित रही हैं - क्राइम फिक्शन। वास्तव में, उसकी पांडुलिपि पहले से ही लंदन में उसके एजेंट के पास है।