आदित्य चोपड़ा| सिरिशा बांदला का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसे बड़े नामों के बाद अब सिरिशा बांदला का नाम भी अंतरिक्ष की यात्रा करने वालों की सूची में शामिल हो चुका है। दूसरी तरफ अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी समीर बनर्जी ने विम्बलडन में लड़कों का एकल खिताब जीतकर इतिहास रच दिया। उसने फाइनल में अमेरिका के विक्टर लिलोव को मात दी। सिरिशा और समीर में समानता यह है कि दोनों ही भारतीय मूल के हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिकांश भारतीयों ने विदेश में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। भारत में भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं लेकिन उन्हें न तो सही ढंग से तराशा जाता है और न ही उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए अवसर मिलते हैं। सिरिशा और समीर पर हमें गर्व है। कुछ लोग इस पर आलोचना जरूर करेंगे कि इसमें गर्व वाली क्या बात है। ऐसा सोचना संकीर्ण मानसिकता होगी। सबसे रोचक बात तो यह है कि भारतीय प्रवासी आबादी का डिस्ट्रीब्यूशन पूरी दुनिया में है। प्रवासी भारतीयों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। जो दुनिया के अलग-अलग देशाें में रह रहे हैं और ये सबसे ज्यादा विविधता और जीवटता वाले समुदाय में से एक हैं। 2020 के आंकड़ों के अनुसार 1.8 करोड़ भारतीय अपने देशों से दूर दुनिया के अलग-अलग देशाें में रहते हैं और इस मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासी समूह है। प्रवासी भारतीय जहां भी रहते हैं, उन्होंने वहां की संस्कृति और संविधान काे आत्मसात कर वहां के विकास में योगदान डाला है। उन्होंने न केवल अपने जीवन को सुखद बनाया है बल्कि वहां की सियासत, खेल, विज्ञान और मेडिकल क्षेत्र में भी धाक जमाई है। हमें न केवल उनकी उपलिब्धयां पर गर्व होना चाहिए बल्कि इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि हम भारतीय ही दुनिया की सबसे विविधता युक्त और गतिशील समुदाय हैं।