जी20 और अन्य शिखर सम्मेलनों में पर्यावरण पर पीएम मोदी के बयान पाखंड: कांग्रेस

Update: 2023-09-10 10:19 GMT
नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को कहा कि जी20 और वैश्विक स्तर पर अन्य शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पाखंड हैं। इसके अलावा पीएम मोदी की 'ग्लोबल टॉक' पूरी तरह से 'लोकल वॉक' के विपरीत है। कांग्रेस महासचिव और पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ''जी20 और वैश्विक स्तर पर होने वाले अन्य शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री के बयान उनकी हिप्पोक्रेसी (पाखंड) को दर्शाते हैं।
भारत के वनों और जैव विविधता संरक्षण को नष्ट कर और आदिवासियों एवं वनों में रहने वाले अन्य समुदायों के अधिकारों को कमज़ोर कर वह पर्यावरण, क्लाइमेट एक्शन और समानता की बात करते हैं। कैसे वैश्विक स्तर की उनकी बातें (ग्लोबल टॉक) और देश में उनके द्वारा उठाए जाने वाले कदम (लोकल वॉक) बिलकुल विपरीत हैं।''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल पर्यावरण के महत्व के बारे में बड़े, खोखले बयान देने के लिए किया। जयराम रमेश के बयान में जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता बैठक में पीएम मोदी की टिप्पणियों का हवाला दिया गया है। उन्होंने कहा कि जहां मोदी वैश्विक कार्यक्रमों में जलवायु कार्रवाई के बारे में बात करते हैं, वहीं केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार "भारत की पर्यावरण सुरक्षा को व्यापक रूप से खत्म कर रही है और जंगलों पर निर्भर सबसे कमजोर समुदायों के अधिकारों को छीन रही है।"
स्वघोषित विश्वगुरु पाखंड के मामले में बहुत आगे निकल चुके हैं। प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के महत्व को लेकर जी20 शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल बड़े, खोखले बयान देने के लिए किया है। जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता बैठक में उन्होंने कहा था, ''हम जैव विविधता संरक्षण, सुरक्षा, पुनर्स्थापन और संवर्धन पर कार्रवाई करने में लगातार आगे रहे हैं। धरती माता की सुरक्षा और देखभाल हमारी मौलिक ज़िम्मेदारी है।''
"जलवायु के लिए चलाए जा रहे अभियान को अंत्योदय का पालन करना चाहिए, यानी हमें समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान और विकास को सुनिश्चित करना होगा।" लेकिन सच तो यह है कि मोदी सरकार बड़े पैमाने पर भारत के पर्यावरण को तहस-नहस कर रही है। साथ ही वनों पर निर्भर सबसे कमज़ोर समुदायों के अधिकारों को छीन रही है। रमेश ने कहा कि राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) - जो पहले शक्तिशाली था और अपने हिसाब से निर्णय लेने में सक्षम था, उसे पूरी तरह से पर्यावरण मंत्रालय के नियंत्रण में कर दिया गया है।
अदालतों द्वारा बाध्य जुर्माने के प्रावधान के बजाय, नया अधिनियम सरकारी अधिकारियों को दंड देने का प्रभारी बनाता है। लाभ साझाकरण प्रावधानों में विभिन्न तरह की छूट दी गई है। इससे उन लोगों को नुक़सान होगा जो जैव विविधता का पारंपरिक ज्ञान रखते है। वहीं जो इसका व्यावसायिक रूप से दोहन करते हैं, उन्हें फ़ायदा होगा। यह अधिनियम मोदी सरकार को पूरे देश में जैव विविधता के विनाश को जारी रखने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा, समानता पर जोर देने के दावों को वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023 पूरी तरह से खोखला साबित करता है।
जयराम रमेश ने आगे कहा कि यह अधिनियम देश के आदिवासियों और वनों में रहने वाले अन्य समुदायों के लिए विनाशकारी होगा, क्योंकि यह 2006 के वन अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करता है। यह स्थानीय समुदायों की सहमति के प्रावधानों और बड़े क्षेत्रों में वन मंजूरी की जरूरतों को ख़त्म करता है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 2022 में इस पर आपत्ति जताई थी। पूर्वोत्तर के जनजातीय समुदाय विशेष रूप से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं क्योंकि यह अधिनियम देश की सीमाओं के 100 किमी के भीतर की भूमि को संरक्षण कानूनों के दायरे से छूट देता है।
एनडीए की सरकार होने के बावजूद, मिज़ोरम ने इस अधिनियम के विरोध में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया है और उम्मीद है कि नागालैंड भी जल्द ही ऐसा करेगा। नया कानून भारत के 25 प्रतिशत वन क्षेत्र को संरक्षण के दायरे से हटा देता है, जो कि 1996 के टीएन गोदावर्मन बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्पष्ट उल्लंघन है। इससे केवल मोदी सरकार के लिए जंगलों का दोहन करने और उन्हें कुछ चुनिंदा पूंजीपति मित्रों को सौंपने का राह आसान होता है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि इन कार्रवाइयों का कारण स्पष्ट है कि पीएम के साथियों की नजर भारत के समृद्ध और जैव विविधता वाले जंगलों के दोहन पर है। वे ताड़ के तेल के बागान स्थापित करने के लिए पूर्वोत्तर के समृद्ध जैव विविधता वाले जंगलों को साफ़ करना चाहते हैं और खनन शुरू करने के लिए आदिवासी समुदायों द्वारा पवित्र मानी जाने वाली पहाड़ियों और जंगलों सहित मध्य भारत की पहाड़ियों और जंगलों को काटना चाहते हैं।
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