Solan. सोलन। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू सोलन को एक तोहफा मंगलवार को देंगे व बदले में सोलन के वरिष्ठ कांग्रेसियों व नेताओं से एक तोहफे की उन्हें उम्मीद भी है। मंगलवार को जोगिंद्रा सहकारी बैंक के करोड़ों रुपए की लागत से निर्मित मुख्यालय भवन को मुख्यमंत्री जनता को समर्पित करेंगे तथा साथ ही साथ नगर निगम के मेयर पद का चुनाव भी दो दिन बाद है। अतीत के कटु अनुभवों व कांग्रेसी पार्षदों के बीच लंबे अरसे से चल रही गुटबाजी पर मनोवैज्ञानिक प्रेशर भी मंगलवार को रहने की संभावना है। कांग्रेस का कोई भी पार्षद पार्टी द्वारा घोषित मेयर प्रत्याशी के खिलाफ भीतरघात न कर सके, उसके लिए प्रदेश सरकार ने तीन दिन पहले ही म्यूनिसिपल एक्ट में संशोधन कर दिया है। अब नए नियमों के मुताबिक प्रत्येक पार्षद को पीठासीन अधिकारी को मत किसको डाला है, वह पहले दिखाना होगा। इस संशोधन का मतलब साफ है कि कोई भी पार्षद यदि अपनी-अपनी पार्टी के खिलाफ मतदान करता है, तो उसका संबंधित पार्टी से पत्ता साफ होना तय है। आंकड़ों में अभी नगर निगम सोलन के मेयर पद के चुनाव के लिए कांग्रेस व भाजपा के पास बराबर का अनुपात है। कुछ माह पूर्व सरकार ने स्थानीय विधायक को भी मतदान करने का अधिकार दे दिया था।
अब नए संशोधन की आड़ में कांग्रेस मेयर पद पर कब्जा करना चाहती है। सोलन नगर निगम में कुल 17 वार्ड हैं, परंतु मेयर पद के चुनाव में मतदान करने के लिए 14 पार्षद ही योग्य हैं। वार्ड नंबर 12 व वार्ड नंबर आठ के पार्षदों को सरकार द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया था तथा वार्ड नंबर पांच के पार्षद की आकस्मिक मृत्यु के बाद यहां अभी तक दोबारा चुनाव नहीं हुए हैं। 14 पार्षदों में से कांग्रेस के पास सात व भाजपा के अपने छह व निर्दलीय पार्षद को मिलाकर सात ही पार्षद हैं। बराबर का आंकड़ा होने के कारण विधायक का वोट निर्णायक सिद्ध होने की पूरी-पूरी संभावना है। प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह सोलन नगर निगम में भी मेयर पद के बाद उपचुनाव की नौबत फिर आएगी। वार्ड नंबर 12, 8 व 5 में पार्षदों के रिक्त पदों को भरने के लिए फिर उपचुनाव करवाने की अधिसूचना जारी करनी पड़ेगी। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के बगावती पार्षदों पर पूर्व में किए गए सख्त एक्शन का इस बार के मेयर पद के चुनाव पर पूरा असर दिखाई देगा। इसके साथ-साथ प्रत्येक पार्षद को अब राज्यसभा सांसद चुनाव की तरह अपना मत भी पीठासीन अधिकारी को दिखाना होगा। कुछ रुष्ठ पार्षदों के समक्ष अब धर्मसंकट उत्पन्न हो गया है कि यदि सरकार के डर से वह बगावत न कर पाए, तो चार कांग्रेसी पार्षदों की आपस में हुई लूण-लोटा की कस्मों का निर्वहन कैसे होगा।