महानवमी आज: मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है...जानें कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त

Update: 2022-10-04 01:56 GMT

नवरात्रि में आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. ये देवी मां का पूर्ण स्वरूप है. देवी का ये सबसे सिद्ध अवतार माना जाता है. केवल इस दिन देवी मां की उपासना करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिलता है. देवता हों या मनुष्य सभी को सिद्धि देने वाली मां सिद्धिदात्री ही हैं. इसलिए इनकी पूजा के बगैर नवरात्रि का पर्व सफल नहीं माना जाता है. आइए जानते हैं कि नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा कैसे की जाती है और इस दिन कन्या पूजन का महत्व और मुहूर्त क्या है.

नवदुर्गा का नौवां और अंतिम स्वरूप हैं मां सिद्धिदात्री. ये समस्त वरदानों और सिद्धियों को देने वाली देवी हैं. यह कमल के पुष्प पर विराजमान हैं और इनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म है. यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग, देवी-देवता और मनुष्य सभी इनकी कृपा से सिद्धियों को प्राप्त करते हैं. नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना करने से नवरात्रि के 9 दिनों की उपासना का फल मिलता है.

शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि 03 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ होगी और 04 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा. उदयातिथि के अनुसार, नवरात्रि नवमी तिथि 04 अक्टूबर को मनाई जाएगी. नवमी तिथि पर शरीर और मन से शुद्ध रहते हुए मां के सामने बैठें. उनके सामने दीपक जलाएं और उन्हें नौ कमल के फूल अर्पित करें. मां सिद्धिदात्री को नौ तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें. मां के मंत्र "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः" का यथाशक्ति जाप करें. अर्पित किए हुए कमल के फूल को लाल वस्त्र में लपेटकर रखें. देवी को अर्पित किए हुए खाद्य पदार्थों को पहले निर्धनों में बांटें फिर स्वयं भी ग्रहण करें.

नवमी पर कन्या पूजन से एक दिन पहले छोटी-छोटी कन्याओं को अपने घर आने का न्योता दे आएं. अगर इन कन्याओं की उम्र 02 से 11 साल के बीच हो तो बेहतर होगा. नवमी पर घर आने वाली कन्याओं का पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं. इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल में रखकर अपने हाथों से से धोएं.

इसके बाद इनके पैर छूकर आशीष लें. इसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को हलवा, पूरी, काले चने परोसें. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें.


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