Himachal में बिना कोच कैसे निखरेंगी खेल प्रतिभाएं

Update: 2024-10-07 11:11 GMT
Mcleodganj. मकलोडगंज। बिना गुरु द्रोणाचार्य के एकलव्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भले ही मूर्तरूप से ही सही लेकिन गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता है। कुछ ऐसा ही हाल हिमाचल प्रदेश के अधिकतर जिलों में देखने को मिल रहा है। राज्य भर में कोच की व्यवस्था न होने से प्रदेशभर में एथलीट या अन्य खिलाड़ी बनने का सपना देख रहे युवा खिलाडिय़ों को निराशा ही हाथ लग रही है, जिसके चलते वह खुद ही तैयारी करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि कई तो अन्य राज्यों का रुख कर चुके हैं। खेलों में विशेष पहचान बनाने वाला हिमाचल प्रदेश अब प्रशिक्षकों की कमी से
जूझ रहा है।
प्रदेशभर में मुख्य कोच और जूनियर कोच के 113 प्रशिक्षकों के स्थान पर मात्र 45 ही सेवाएं दे रहे हैं, जिसमें मुख्य कोच 13 में से 11 ही सेवाएं दे रहे हैं, जबकि प्रदेश में एक सौ पदों में से मात्र 34 जूनियर कोच तैनात है, जबकि 66 पद खाली है। देश को कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने वाले प्रदेश में खिलाड़ी कोच के अभाव में निराश बैठे हैं। एथलिटों सहित कई खेलों की तैयारी के लिए खिलाडिय़ों को कोच का इंतजार हैं। करोड़ों खर्च कर बनाए गए ट्रेक व कोर्ट सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ सूने पड़े हैं। खिलाडिय़ों का कहना है कि अगर प्रदेश में अच्छे मैदान और कोच नियुक्त किए जाए तो उन्हें अपने प्रदेश में ही अभ्यास की सुविधा मिलेगी।
प्रदेश के कई जिलों में हॉकी, क्रिकेट, वॉलीवाल, कुश्ती, कबड्डी, हैंडबॉल, बैडमिंटन, फुटबॉल, शूटिंग और बॉक्सिंग सहित अन्य कुछ खेलों में कोच नही है। कोच के अभाव में खिलाड़ी दूसरे राज्यों में प्रैक्टिस करने के लिए मजबूर है। खेल विभाग एवं युवा सेवाएं हिमाचल प्रदेश शिमला के निदेशक हितेश आजाद ने बताया कि कुछ समय से प्रदेश में जूनियर कोच के कुछ पद खाली है, जिन्हें जल्द ही भरने की तैयारी चल रही है। कोच, सहित अन्य स्टाफ की मांग को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र भेजा गया है। जल्द ही प्रदेश के विभिन्न जिलों में नए कोच
तैनात किए जाएंगे।
एक तरफ केंद्र और प्रदेश सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए फिट इंडिया और खेलो इंडिया कैंपेन चला रही है, मगर अभी तक खेल कोचों की व्यवस्था नहीं की है, जिससे यहां खिलाडिय़ों को मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। हिमाचल प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन कोच न होने की वजह से खिलाडिय़ों को दिल्ली, चंडीगढ़ तथा भारत के अन्य शहरों में जाना पड़ता है। ऐसे में खिलाड़ी कहां जाएं, कहां सीखें। विवश होकर उन्हें अन्य राज्यों में तैयारी करनी पड़ रही है और उन्हीं जनपदों से खेल भी रहे हैं। संसाधन मिलें तो यही खिलाड़ी राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकेंगे।
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