सरकार ने दी जनता को राहत, कोरोना वैक्सीन की कीमत 150 रुपये
स्वास्थ्य मंत्रालय के ही सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ा असर मुनाफाखोरी को रोकना और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देना है।
कोरोना वैक्सीन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक फैसले ने जनता को राहत दी। वहीं अरबों रुपये की मुनाफाखोरी को एक झटके में ही रोक दिया। कोरोना वैक्सीन की कीमत 150 रुपये और 100 रुपये अस्पतालों के लिए सर्विस चार्ज तय करने के पीछे जब वजहों को जानने का प्रयास किया तो पता चला कि सरकार के एक फैसले ने कई तरह के असर दिखाए हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के ही सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ा असर मुनाफाखोरी को रोकना और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देना है। मंत्रालय के एक निदेशक ने यहां तक कहा कि काफी सोच विचार करके यह फैसला लिया है जिसका असर अगले छह से सात माह बाद दिखाई देगा।
वैक्सीन कारोबार में मोटी कमाई का सोचने वाली विदेशी कंपनियों की मुश्किलें बढ़ीं
कोरोना महामारी के बीच भारत को एक बड़ा मार्केट समझने वाली विदेशी कंपनियों के लिए बेहद कम कीमत में वैक्सीन उपलब्ध करा पाना मुश्किल है। अभी तक उम्मीद थी कि अगले कुछ माह में और वैक्सीन आने के बाद न सिर्फ कीमत पर असर पड़ेगा बल्कि इनकी उपलब्धता भी अधिक होगी लेकिन कम कीमत के चलते अब इन कंपनियों के लिए राह आसान नहीं है।
महज 150 रुपये में वैक्सीन देना विदेशी कंपनियों के लिए काफी कठिन
इसके पीछे एक वजह यह भी है कि शुरुआती चरण में ही सरकार ने वैक्सीन की कीमत को 150 रुपये किया है। जब यह वैक्सीन सभी लोगों के लिए उपलब्ध होगी तो इसकी कीमत इससे भी कम होगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री के एक फैसले ने अरबों रुपये की मुनाफाखोरी को रोक दिया है। वैल्लोर स्थित सीएमसी की वैज्ञानिक डॉ. गगनदीप कांग का कहना है कि वर्षों से वैक्सीन को लेकर दुनिया में काम चल रहा है। इसे लेकर फार्मा कंपनियों को होने वाले फायदे से इनकार नहीं किया जा सकता।
हाल ही में अमेरिकी कंपनी फाइजर का आवेदन रद्द हुआ था। इसके बाद दुनिया में सबसे सस्ती कीमत भारत में रखी गई। विदेशी कंपनियों के लिए ये संदेश काफी हैं जो भारत में वैक्सीन लॉन्च कर करोड़ों-अरबों रुपये का कारोबार करने की योजना बना रहे थे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सलाहकार प्रो रिजो एम जॉन ने बताया कि फाइजर 1,431 रुपये, मॉडर्ना 2,348 रुपये, सिनोफॉर्म 5,650 रुपये, सिनोवैक बॉयोटेक 1,027 रुपये, नोवावैक्स 1,114 रुपये, स्पूतनिक 734 रुपये और जॉनसन एंड जॉनसन ने वैक्सीन की कीमत प्रति खुराक 734 रुपये रखी है।
इनसे कोविशील्ड और कोवाक्सिन की कीमत को लेकर तुलना करें तो भारत के पास सबसे सस्ते विकल्प हैं। इन कंपनियों के लिए इतने कम दाम में भारत आकर बिक्री कर पाना आसान नहीं है।
मध्यम-नौकरीपेशा वर्ग को दी राहत, चुनाव में फायदा
विशेषज्ञों के अनुसार सस्ती वैक्सीन का एक बड़ा असर देश के मध्यम और नौकरीपेशा वर्ग पर पड़ा है। गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन निशुल्क मिलेगी। जबकि अन्य के लिए 250 रुपये प्रति डोज है जो लगभग सभी लोगों के बजट में है। नई दिल्ली स्थित स्वास्थ्य पॉलिसी के विशेषज्ञ डॉ. दिव्येंदु जैन ने कहा कि इस फैसले का असर चुनावी राज्यों में दिखाई देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
राज्यों को भी दे दिया मौका
प्रो रिजो का कहना है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर शुरूआत से ही दिल्ली और केरल सहित कई राज्य फ्री वैक्सीनेशन की बात कर रहे थे लेकिन भारत जैसे अधिक आबादी वाले देश के लिए यह आसान नहीं था। हालांकि अब यह मुश्किल भी नहीं रहा क्योंकि बिहार की तरह कोई भी राज्य 150 रुपये प्रति डोज की कीमत केंद्र को देकर अपनी जनता को निशुल्क वैक्सीन दे सकता है।
सर्टिफिकेट पर शुल्क नहीं लेंगे डॉक्टर
वैक्सीन की कीमत तय करने के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अस्पतालों का मुनाफा भी सीमित कर दिया है। अक्सर तरह तरह के खर्चे दिखाकर प्राइवेट अस्पतालों के लाखों रुपये के बिल जग जाहिर हैं। 45 से 59 वर्ष की आयु के लोगों में बीमारी होने का सर्टिफिकेट जारी होने के बाद ही वैक्सीन मिलेगी।
इसके लिए सर्टिफिकेट पर डॉक्टर शुल्क भी ले सकते थे लेकिन सरकार ने उससे पहले ही सभी अस्पतालों का अधिकतम 100 रुपये सर्विस चॉर्ज तय कर दिया जिसके बाद डॉक्टर के शुल्क लेने की गुंजाइश खत्म हुई।