डॉक्टरों ने तंबाकू महामारी से निपटने के लिए नुकसान में कमी करने की दिशा में साहसिक बदलाव करने का आह्वान किया
भारत के लिए चुनौतियां.
नई दिल्ली: 'पोस्ट-कोविड दौर में फेफड़ों के रोग - भारत के लिए चुनौतियां' विषय पर एक गोलमेज सम्मेलन में बोलते हुए जाने-माने चिकित्सा विशेषज्ञों ने तंबाकू नियंत्रण के दृष्टिकोण में एक बड़े बदलाव का आह्वान किया, जिसमें धूम्रपान-संबंधी बीमारियाँ के संकट से निपटने के लिए नई रणनीतियों के महत्व पर जोर दिया गया ।
तम्बाकू का उपयोग भारत और दुनिया के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, तंबाकू से हर साल 8 मिलियन से अधिक लोगों की मौत होती है, जिसमें 1.3 मिलियन धूम्रपान न करने वाले भी शामिल हैं, जो सेकेंड-हैंड धुएं के संपर्क में आने से मर जाते हैं। तम्बाकू दुनिया भर में मौत का प्रमुख रोके जा सकने वाला कारण है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया भर में 1 बिलियन से अधिक लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं, और 30 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में होने वाली सभी मौतों में से 13% का कारण तम्बाकू का उपयोग है।
मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट और लंदन ऑन्कोलॉजी क्लिनिक के संस्थापक भागीदार डॉ. पीटर हार्पर ने वैश्विक तंबाकू महामारी से निपटने के लिए अभिनव रणनीतियों (innovative strategies) का पता लगाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डाला। पॉलिसी सर्कल' द्वारा आयोजित डॉक्टरों की एक गोलमेज़ बैठक में उन्होंने कहा कि तम्बाकू से होने वाले नुकसान में कमी की पुनर्कल्पना की तात्कालिक जरूरत सार्वजनिक स्वास्थ्य चर्चा का एक प्रमुख बिन्दु है।
धूम्रपान बंद करने की वकालत करते हुए डॉ. हार्पर ने तंबाकू की लत से उत्पन्न होने वाली विकट चुनौतियों की ओर इशारा किया। क्लिनिकल परीक्षणों में अपनी व्यापक भागीदारी और दवा कंपनियों के साथ सहयोग के अनुभवों से लबरेज डॉ. हार्पर ने इस नुकसान को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रकाश डाला, और केवल इसके भयावह परिणामों का इलाज करने की बजाय कैंसर को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्सिनोजेन्स के स्रोतों की पहचान करने और व्यवहार संबंधी बदलावों के माध्यम से इन जोखिमों को कम करने के उपायों को लागू करने की प्रतिबद्धता इस नुकसान में कमी की वकालत के मूल में निहित है। डॉ. हार्पर ने कहा कि फेफड़ों के कैंसर के लिए धूम्रपान प्राथमिक जोखिम कारक (primary risk factor) बना हुआ है। उन्होंने तंबाकू की लत की जटिलताओं पर प्रकाश डाला और इसे छोड़ने में शामिल होने वाले उस गहरे तनाव को स्वीकार किया, जो अक्सर कई लोगों के लिए इसे एक कठिन चुनौती बना देता है। यह एक सूक्ष्म और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता की ओर रेखांकित करता है।
उन्होंने इस चिंताजनक तथ्य की ओर भी इशारा किया कि फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों का एक बड़ा हिस्सा धूम्रपान जारी रखता है, इसलिए धुएं की संरचना और उसके भीतर कैंसरकारी घटकों की व्यापक जांच की आवश्यकता बढ़ जाती है। उन्होंने इस चिरस्थायी मुद्दे के समाधान के लिए अभिनव हानि न्यूनीकरण रणनीतियों (innovative harm reduction strategies) को अपनाने का आह्वान किया और इस बात पर जोर दिया कि जब तक धूम्रपान की व्यापकता को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं किया जाता, तब तक कैंसर व पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियों की घटनाएं अस्वीकार्य रूप से अधिक रहेंगी।
तम्बाकू के उपयोग के कारण वैश्विक स्तर पर एक बिलियन व्यक्तियों पर जोखिम बनने पर, डॉ. हार्पर ने तर्क दिया कि नुकसान में कमी लाने का समाधान हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में गहरे तक समाया हुआ है। उन्होंने इस आम ग़लतफ़हमी को दूर किया कि निकोटीन स्वयं एक कार्सिनोजन है और चिकित्सा पर्यवेक्षण में निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एनआरटी) की प्रभावशीलता पर चर्चा की। इसके बाद डॉ. हार्पर ने नुकसान कम करने की तीन उल्लेखनीय रणनीतियाँ पेश कीं : स्नस, ई-सिगरेट और गर्म तम्बाकू उत्पाद। गहन अनुसंधान और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा समर्थित ये विकल्प नशे और कार्सिनोजेन्स के खिलाफ एक मजबूत कड़ी हैं।
दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट में पल्मोनोलॉजी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन विभाग के निदेशक व प्रमुख डॉ. भरत गोपाल ने तंबाकू लत प्रबंधन (tobacco addiction management) के बदलते स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने नवीन तकनीक और रणनीतियों से पारंपरिक तरीकों में बदलाव करने पर जोर देते हुए स्वीकार किया कि तंबाकू की लत, जो दुनिया भर में 6 मिलियन (60 लाख) से अधिक वार्षिक मौतों के लिए जिम्मेदार है, एक टाले जा सक्ने वाली महामारी बनी हुई है।
डॉ. गोपाल ने निकोटीन प्रतिस्थापन (nicotine replacement) के लिए नवीन वितरण प्रणालियों, जैसे इन्हेलर और नेज़ल स्प्रे, पर विस्तार से चर्चा की, जो पारंपरिक तरीकों के विकल्प प्रदान करते हैं और दहन (combustion) के हानिकारक प्रभावों को कम करते हैं। उन्होंने ई-सिगरेट के विवादास्पद मुद्दे पर चर्चा करते हुए उन अध्ययनों का हवाला दिया, जो धूम्रपान बंद करने में उन्हें प्रभावी बताने के अलावा सर्तकता की आवश्यकता व दीर्घकालिक प्रभावों पर चल रहे शोध को स्वीकार करते हैं।
टेलीमेडिसिन, स्मार्टफोन एप्लिकेशन, आभासी वास्तविकता (वर्चुअल रीऐलिटी), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टफिशल इन्टेलिजन्स) और मशीन लर्निंग को अपनाने को डॉ. गोपाल ने धूम्रपान बंद करने के लिए अनुरूप हस्तक्षेप व समर्थन (tailored interventions and support) प्रदान करने की दिशा में अभिनव दृष्टिकोण के रूप में रेखांकित किया। धूम्रपान छोड़ने की राह में लोगों को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने डिजिटल उपकरणों के महत्व को स्वीकार किया ।
डॉ. हार्पर और डॉ. गोपाल दोनों ने तम्बाकू की लत के खिलाफ लड़ाई में अभिनव हानि न्यूनीकरण रणनीतियों (innovative harm reduction strategies) को अपनाने की तत्काल आवश्यकता का स्पष्ट आह्वान किया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी से निहित ये रणनीतियाँ धूम्रपान-मुक्त भविष्य की उम्मीद प्रदान करती हैं, जो इस लत और इसके अंत के बीच के अंतर को कम करती हैं।