वाराणसी समेत पूर्वांचल में फैली एक अंजान बीमारी

Update: 2023-10-05 13:22 GMT
वाराणसी। कोरोना के बाद लोग संभले ही थे कि एक और महामारी ने शहर में और लोगों के घरों में दस्तक दे दी है। इस महामारी ने इतना विकराल रूप ले लिया है कि हर घर में बीमार हैं। हर व्यक्ति अपना काम, रोजगार छोड़, अस्पताल, लैब और दवाओं की दुकान का चक्कर काट रहा है। लोग घुट घुट कर जीने को मजबूर हैं। अस्पतालों के ओपीडी में लम्बी लाइन लगी है। वहीं बेड भी फुल हैं। इस मुश्किल समय लोग बिमारियों से जूझ रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में जगह को लेकर मारामारी है। प्राइवेट हॉस्पिटल चांदी काट रहे हैं। लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाकर कई जगहों डॉक्टर्स आवश्यकता से अधिक महंगी दवाएं लिख रहे हैं। इस अदृश्य बीमारी ने लोगों पर अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है। यह कौन सी बीमारी है, इसे स्वास्थ्य विभाग भी समझने में असमर्थ है। कोई इसे डेंगू बताता है, तो कोई मलेरिया, कोई चिकनगुनिया, वास्तव में यह क्या है? इसे कोई समझ नहीं पा रहा। इस बारे में कोई बताने को तैयार नहीं है। बावजूद इसके एक बात तो तय है कि इस अदृश्य महामारी के चपेट में वाराणसी समेत पूरा पूर्वांचल है।
मंडलीय अस्पताल में वाराणसी के मेन शहर के लोग ईलाज कराने के लिए जा रहे तो, बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में पूर्वांचल और बिहार के मरीजों का तांता लगा हुआ है। लोग बस अपनों को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। दूसरी ओर, नगर निगम को सिर्फ और सिर्फ राजस्व बढ़ाने की चिंता है और स्वास्थ्य महकमा को जांच के आंकड़े गिनाने की फिक्र है। शहर के कई ऐसे इलाके हैं, जहां गन्दगी का साम्राज्य बना हुआ है। नगर आयुक्त भी प्रेस कांफ्रेंस में उन इलाकों को हॉटस्पॉट घोषित कर चुके हैं, बावजूद इसके उन इलाकों में नगर निगम अथवा स्वास्थ्य विभाग के ओर से बिमारियों पर नियंत्रण के लिए कोई सुविधा नहीं उपलब्ध कराई गई है।
स्थानीय नागरिकों की मानें, तो संक्रामक रोगों से निजात दिलाने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ नगर निगम की भी होती है। लेकिन दोनों महत्वपूर्ण विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारियां कितना निभा पा रहे हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। फॉगिंग हो रही है या नहीं, यह बताने वाला कोई नहीं है। पहले 90 वार्ड थे। अब 100 वार्ड हैं। दायरा तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन संसाधन नहीं के बराबर है। सिर्फ दो-चार फॉगिंग मशीनों के सहारे करीब 33-34 लाख की आबादी को महामारी से बचाने की बात करना बेईमानी है। एंटी लार्वा दवा का छिड़काव कब हुआ है, यह तो ठीक से याद नहीं है। मिनी सदन के जनप्रतिनिधि बदलते हैं। नगर निगम के अधिकारी बदलते हैं। बदलाव के बाद आने वाले जनप्रतिनिधि और अधिकारी दावे तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। हालात सुदृढ़ दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन व्यवस्था जस की तस रहती है। हकीकत से सामना होने के बाद उनकी भी ‘हवा’ निकल जाती है।
स्थानीय नागरिक बताते हैं कि कुछ अधिकारी 'घाघ' बने हुए हैं, जो केवल धन उगाही पर जोर देते हैं। इनके 'घाघ' अधिकारियों के कारण ही नगर निगम की छवि धूमिल होती है। जन प्रतिनिधि केवल बदलते हैं, व्यवस्थाएं जस का तस बनी रहती हैं। सिर्फ कागज पर ही फॉगिंग और दवा का छिड़काव होता है। वहीं उन इलाकों में जहां माननीय रहते हैं, वहां काम से ज्यादा प्रचार किया जाता है। वहां तो जैसे दवाओं के रूप में अमृत कलश ही बंट जाया करते हैं। कोई मरे या जिये, इससे नगर निगम को क्या? स्वास्थ्य विभाग भी डेंगू की बात कह कर पल्ला झाड़ ले रहा है और जांच के कागजी आंकड़ें गिना कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। हालात यह हैं कि लोग इन बीमारियों के बीच बीते कोरोना को भी याद कर रहे हैं।
पूर्वांचल के एम्स कहे जाने वाले बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल ही नहीं समस्त सरकारी अस्पतालों में प्लेटलेट्स न मिलने से मरीजों के इलाज पर संकट गहराने लगा है। सरकारी और प्राइवेट अस्पताल संक्रामक बीमारियों की चपेट में आए मरीजों से पटे हैं। शहर और देहात क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की बीमारियों ने अपना डेरा जमा लिया है। इसके चलते दवाओं की दुकानों पर फिर सुबह से शाम तक उसी तरह भीड़ दिखने लगी है, जैसी कोरोना काल में दिखती रही। सरकारी अस्पतालों में जांच के नाम पर मरीजों को ‘ठेंगा’ दिखा दिया जा रहा है। भीड़ इतनी ज्यादा है कि जांच रिपोर्ट लेने के लिए लोगों को 2-3 दिन लग जा रहे हैं। नतीजन लोगों को प्राइवेट लैब का रुख करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों के लैब में जांच किट की अनुपलब्धता के चलते प्राइवेट लैब वालों के यहां मरीजों की भीड़ उमड़ रही है। डेंगू के मामले बढ़ने के बाद निजी लैबों में जांच के नाम पर मनमाना रेट लिया जा रहा है। कई लैब संचालक तो 2000 से 2500 रुपये वसूल रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग निजी प्रयोगशालों पर लगाम नहीं कस पा रहा है।
नागरिकों का कहना है कि जिस प्रकार कोरोना काल में निजी लैब वालों के लिए जांच रेट फिक्स कर दिये गये हैं, ठीक उसी तर्ज पर मौजूदा समय में भी विभिन्न प्रकार के जांच के रेट तय किये जाने चाहिए। लेकिन स्वास्थ्य महकमा और जिला प्रशासन की चुप्पी के चलते निजी लैब वाले मरीजों के पॉकिट पर ‘डाका’ डाल रहे हैं। बेबस मरीज और उनके परिजन जिला और स्वास्थ्य प्रशासन की लापरवाही के शिकार हो रहे हैं। नागरिकों का यह भी कहना है कि कोरोना काल में एक भी केस मिलता था तो जिला प्रशासन, स्वास्थ्य महकमा ही नहीं तमाम अन्य विभाग सक्रिय हो जाते थे। लेकिन अब तो डेंगू, चिकनगुनिया आदि के केस मिलने के बाद भी गांव या शहर में फॉगिंग या फिर एंटी लार्वा दवा का छिड़काव नहीं की जाती। यह कैसी व्यवस्था है? आखिर यह व्यवस्था कब सुधरेगी?
अब लैब के बाद दवाओं को लेकर भी लोग झेल रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में दवा के नाम पर कुछ ही दवाएं उपलब्ध हैं। लोग महंगे एंटीबायोटिक्स के लिए प्राइवेट दवा की दुकानों का रुख कर रहे हैं। वहीं प्राइवेट दुकानदार भी इस समय चांदी काट रहे हैं। पेटेंट के दाम में मरीजों को जेनरिक दवाइयां भी दे रहे हैं। मलेरिया में चलने वाले इंजेक्शन अर्टिसुनेट को लेकर भी मारामारी चल रही है। कई दुकानों पर कम की संख्या में अवेलेबल है। कई जगहों पर जहां पहले से स्टॉक उपलब्ध है, वहां महंगे रेट पर मिल रहे हैं।
शहर में डेंगू के साथ ही चिकनगुनिया का भी प्रकोप बढ़ा है। लोगों में बुखार के साथ ही जोड़ों में दर्द की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस बाबत डॉक्टर भी परेशान हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि चिकनगुनिया के लक्षण भी डेंगू की तरह ही होते हैं। इस कारण लोग परेशान हैं। जांच के बाद ही बीमारी के बारे में पता लग पा रहा है। कोई तेज बुखार के साथ जोड़ों में दर्द, सिर दर्द, सूखी खांसी, सर्दी-जुकाम आदि की समस्या लेकर अस्पताल आ रहा, तो किसी को कमजोरी है। मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा, दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल, सर सुंदर लाल अस्पताल, हिन्दू सेवा सदन, शास्त्री अस्पताल की ओपीडी में रोज पीड़ित पहुंच रहे हैं। मंडलीय अस्पताल के बाल रोग विभाग में हर दिन 15 से 20 बच्चों में चिकनगुनिया के लक्षण मिल रहे हैं। वरिष्ठ फिजिशियन डॉ० आर० के० शर्मा के मुताबिक, चिकनगुनिया के मामले भी अधिक आ रहे हैं। इनमें बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है। इसके लक्षण भी डेंगू, वायरल फीवर से मिलते-जुलते हैं। इसमें जोड़ों में दर्द, सूजन के साथ ही कमजोरी, बुखार वाले पीड़ितों की संख्या बढ़ी है। यह चिकनगुनिया के मिलते-जुलते लक्षण हैं। इसमें बच्चे के साथ ही 70 साल तक के लोग भी आ रहे हैं।
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