High Court का फैसला सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति से ही चल सकता है अभियोजन

Update: 2024-08-08 04:37 GMT
UP :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी लोक प्राधिकारी के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति ही मान्य है । यदि अभियोजन स्वीकृति देने वाला प्राधिकारी इसके लिए सक्षम नहीं है तो मुकदमे की कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है । इस निष्कर्ष के साथ कोर्ट ने  BSNL Bulandshahr बीएसएनएल बुलंदशहर के डिप्टी जनरल मैनेजर राजेंद्र सिंह वर्मा और अन्य व्यक्तियों के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत गाजियाबाद में चल रही मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया है । कोर्ट ने कहा है कि याची के विरुद्ध मुकदमा सक्षम प्राधिकारी से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही चलाया जा सकेगा । राजेंद्र सिंह वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति
राजीव मिश्रा
ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी के तर्कों को सुनने के बाद दिया । याची राजेंद्र सिंह वर्मा बीएसएनल बुलंदशहर में डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त थे । 18 दिसंबर 2016 को उनके और जीएम बीएसएनल बुलंदशहर रामविलास वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सीबीआई ने केस दर्ज किया । जांच के बाद सीबीआई ने 12 फरवरी 2017 को स्पेशल कोर्ट सीबीआई गाजियाबाद में आरोप पत्र दाखिल कर दिया । जिस पर कोर्ट ने संज्ञान ले लिया ।
याची सरकारी अधिकारी थे इसलिए उन पर अभियोग चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति अनिवार्य थी । सीबीआई ने डायरेक्टर( एचआर) बीएसएनएल नई दिल्ली से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की । सीबीआई कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए मुकदमे की कार्यवाही प्रारंभ की । तथा याची की डिस्चार्ज अर्जी को खारिज कर दिया । मुकदमे की सुनवाई के दौरान याची की ओर से सीबीआई कोर्ट में यह आपत्ति दाखिल की गई कि निदेशक एच आर उनके विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति देने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है । सीबीआई अदालत ने यह अर्जी खारिज कर दी जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई । वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना था कि याची जिस वेतन मान पर कार्यरत है उसके नियुक्ति और अनुशासन प्राधिकारी चीफ 
 Managing director
 मैनेजिंग डायरेक्टर है । इसलिए निदेशक एच आर से प्राप्त की गई अभियोजन स्वीकृति अवैध है । तीन बिंदुओं पर निकाला निष्कर्ष कोर्ट ने इस मामले पर फैसले के लिए तीन महत्वपूर्ण बिंदु तय किए, पहला यह की क्या निदेशक एच आर अभियोजन स्वीकृति देने के लिए सक्षम प्राधिकारी हैं, दूसरा कि अभियुक्त किस स्तर पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति को चुनौती दे सकता है और तीसरा यह की क्या अवैध अभियोजन स्वीकृति से याची के साथ कोई अन्याय हुआ है । याची और सीबीआई का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि बीएसएनएल की सेवा नियमावली की शर्तों से स्पष्ट है कि डायरेक्टर एच आर अभियोजन स्वीकृति देने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है । इसलिए 25 फरवरी 2017 को दिया गया अभियोजन स्वीकृति का आदेश न सिर्फ अवैधानिक है बल्कि क्षेत्राधिकार का अतिरेक भी है । कोर्ट ने कहा कि जब अभियोजन स्वीकृति का आदेश जारी नहीं रह सकता है तो उसके आधार पर चल रही समस्त कार्यवाही भी जारी नहीं रह सकती है । कोर्ट ने कहा कि याची को इस स्तर पर अपराध से उन्मोंचित( डिस्चार्ज) किया जाता है । उसके विरुद्ध मुकदमे की कार्यवाही सक्षम प्राधिकारी से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही चलाई जा सकेगी ।
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