लखनऊ विकास प्राधिकरण के अफसरों को महिला को आवास न देना महंगा पड़ा

60 दिन के भीतर हर्जाना अदा करने का आदेश

Update: 2024-05-15 09:31 GMT

लखनऊ: पूरा पैसा जमा होने के बावजूद महिला को आवास न देना एलडीए अफसरों को महंगा पड़ा. लंबी सुनवाई के बाद राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक कुमार और सदस्य विकास सक्सेना की पीठ ने एलडीए को 10 लाख रुपये तथा संबंधित मकान की फाइल गायब करने के लिए जिम्मेदार लिपिक पर लाख रुपये फैसले के 60 दिन के भीतर हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है. आयोग ने यह भी आदेश दिया है कि यदि हर्जाने की रकम तय समय नहीं दी गई तो अपील की तिथि से भुगतान किए जाने की तिथि तक 10 प्रतिशत ब्याज समेत भुगतान करना होगा.

उपभोक्ता आयोग ने आदेश में कहा है कि मुकदमों में एलडीए ने अनियमितता छिपाने और कोर्ट को भ्रमित करने का प्रयास किया. लगातार मूल पत्रावलियां गुम होने का तर्क कोर्ट के समक्ष रखा जा रहा था. आयोग ने कहा कि इस संबंध में शासन स्तर से जांच किया जाना अपेक्षित है. प्रति मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव नगर नियोजन को चार सप्ताह में देने का आदेश दिया है. आयोग के आदेश में कहा गया कि अपीलकर्ता ने कोई धनराशि जमा की है तो अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण के लिए भेज दी जाए.

मकान की जगह मिलती रही तारीख पर तारीख: इंदिरा नगर निवासी माया राय के अनुसार उन्हें गोमती नगर योजना के विनय खंड में भवन 16 1984 को लॉटरी से 1/683 मकान आवंटित हुआ. 13 फरवरी 1989 तक सभी किस्तें जमा कर दी गयी. कब्जे पर पीड़ित चक्कर लगाती रहीं लेकिन टरकाया गया. जिला उपभोक्ता आयोग में अपील पर एलडीए ने बयान दिया कि पीड़ित ने किश्तें जमा नहीं की थीं, इसलिए आवंटन रदद् हुआ. राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील पर एलडीए ने दावा किया कि रजिस्ट्री 2003 में निष्पादित हुई है.

14 साल तक कोई सूचना ही नहीं दी: आयोग ने पाया कि एलडीए ने मकान एलडीए कर्मचारी दुर्वासा मिश्र के पक्ष में फ्री होल्ड शुल्क समेत धनराशि जमा कर 2003 को रजिस्ट्री कर दी थी. वर्ष 1989 से 2003 तक मूल आवंटी को सूचना तक नहीं दी गई जो कि प्राधिकरण की दूषित मानसिकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है. आयोग ने कहा कि प्रतीत होता है कि यह एलडीए की मिलीभगत थी. जिस मकान की मालिक पीड़ित होनी चाहिए उसे कब्जा नहीं दिया गया. वह मकान जिसे दिया गया वह एलडीए कर्मचारी था.

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