प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना है कि 12 वर्ष से कम उम्र की पीड़िता के साथ की गई छेड़खानी लैंगिक उत्पीड़न (शीलभंग) मानी जा सकती है, दुष्कर्म नहीं। न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की पीठ ने बुलंदशहर के पहासू थाना क्षेत्र से जुड़े एक प्रकरण में पॉक्सो एक्ट कोर्ट की ओर से सात वर्षीय मासूम के साथ हुई छेड़खानी की घटना में तय किए गए दुष्कर्म के आरोपों को रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट ने आरोपी संजय गौर की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। पीड़िता की मां ने संजय गौर के खिलाफ अपनी सात वर्षीया बेटी के साथ दुष्कर्म करने की एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि, मां ने बेटी के आंतरिक चिकित्सीय परीक्षण की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन आरोपी के खिलाफ मौजूद अन्य सुबूतों के आधार पर पुलिस ने पॉक्सो एक्ट की विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था।
शीलभंग और लैंगिक उत्पीड़न दुष्कर्म नहीं
आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए विशेष अदालत ने आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धाराओं के साथ दुष्कर्म का आरोप भी तय किया था। इसके खिलाफ आरोपी ने आपत्ति दाखिल की, जिसे अदालत ने निरस्त कर दिया था। तब आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याची के अधिवक्ता सुरेश कुमार मौर्य ने कहा कि पीड़िता की मां ने अपने बयानों में कहीं भी यौन संबंध बनाए जाने की पुष्टि नहीं की है। चिकित्सीय परीक्षण के दौरान पीड़िता भी आंतरिक जांच की इजाजत नहीं दी गई। लिहाजा, दुष्कर्म का अपराध गठित नहीं होता। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए आरोपी को राहत दे दी।