AMU ने हटाईं इस्लामिक विद्वान रहे 2 लेखकों की किताबें, जाने वजह

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक स्टडीज विभाग में आपत्तिजनक सामग्री के आरोपों के बाद दो इस्लामी विद्वानों की किताबों को सिलेबस से हटा दिया गया है।

Update: 2022-08-04 06:17 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक स्टडीज विभाग में आपत्तिजनक सामग्री के आरोपों के बाद दो इस्लामी विद्वानों की किताबों को सिलेबस से हटा दिया गया है। विभाग की ओर से उच्चाधिकारियों का लिखित आदेश प्राप्त होने के बाद यह निर्णय लिया है। बता दें कि विश्वविद्यालय में वर्ष 1948 में इस्लामिक स्टडीज डिपार्टमेंट को स्थापित किया गया था। विभाग में स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी लेखक मौलाना अबुल आला मौदूदी और इजिप्ट के सैयद कुतुब की किताबें विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही थीं।

इस संदर्भ में कुछ शिक्षकों की ओर से 27 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा गया। जिसमें यह किताबें हटाने की मांग की गई थी। पीएम को लिखे गये खत के बाद एएमयू समेत अन्य विवि में खलबली मच गई थी। एएमयू प्रशासन ने इस्लामिक स्टडीज विभाग से संपर्क कर स्थिति का संज्ञान लिया। उसके बाद विभागीय अफसरों को सम्बंधित किताबों को सिलेबस से बाहर करने का आदेश दिया। उच्चाधिकारियों का आदेश मिलने के बाद विभागीय अफसरों ने बुधवार को दोनों विवादित पुस्तकें सिलेबस से बाहर कर दी है। एएमयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन ग्रंथों को हटाने का फैसला सोमवार को लिया गया, जिसके बारे में प्रदर्शनकारी विद्वानों ने कट्टरपंथी राजनीतिक इस्लाम का प्रचार करने का दावा किया था।
इस्लामिक स्टडीज विभाग के चैयरमेन, प्रो. मोहम्मद इस्माइल ने कहा कि दो इस्लामी विद्वानों की किताबों को सिलेबस से हटा दिया गया है। कुछ विद्वानों ने किताबें हटाने को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। पत्र में इस्लामी लेखकों की पढ़ाई जा रही किताबों में आपत्तिजनक सामग्री होने का जिक्र किया गया था। इसमें आपत्तिजनक कुछ नहीं था। लेकिन विवाद से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है।
गौरतलब हो कि अबुल अला अल-मौदुदी (1903-1979) एक भारतीय इस्लामी विद्वान थे, जो विभाजन के तुरंत बाद पाकिस्तान चले गए। उन्होंने भारत और पाकिस्तान में एक मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्लामी की स्थापना की। उनके प्रमुख कार्यों में "तफ़ीम-उल-कुरान" शामिल हैं। उन्होंने 1926 में देवबंद मदरसा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, लेकिन इसके और इसके राजनीतिक विंग जमीयत उलेमा-ए-हिंद से अलग हो गए। मिस्र के एक लेखक सैय्यद कुतुब (1906-1966) भी 1950 और 1960 के दशक में मुस्लिम ब्रदरहुड के एक प्रमुख सदस्य थे। वह अपने कट्टरपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे और मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर का विरोध करने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया था। कुतुब ने एक दर्जन से अधिक रचनाएं लिखीं, जिनमें कुरान पर एक टिप्पणी और "इस्लाम में सामाजिक न्याय" शामिल हैं।
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