Rajasthan का ऐसा तीर्थस्थल जहां साल के इन दिन स्वर्ग से उतरते हैं 36 कोटि देवी देवता

Update: 2025-01-30 13:09 GMT
राजस्थान न्यूज़:  विश्वभर में अपने ब्रह्मा मंदिर के लिए मशहूर पुष्कर को हिंदू धर्म के सबसे बड़े तीर्थों में से एक माना जाता है। राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित पुष्कर शहर को गुलाब उद्यान के नाम से भी जाना जाता हैं। पुष्कर में परमपिता ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर होने के चलते इसे हिन्दू संस्कृति और बुद्धि का शहर भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार चारों धाम यानि बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका की यात्रा पुष्कर के दर्शनों के बिना अधूरी ही मानी जाती है। इसी के साथ ये भी मान्यता है कि हर वर्ष कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक यहां भक्तों को मात्र एक डुबकी लगाने से साल भर का पुण्य एक साथ मिल जाता है। तो आईये आज आपको लेकर चलें 52 घाटों और 500 से अधिक मंदिरों वाले पुष्कर धाम के
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एक पौराणिक कथा के अनुसार, माना जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी ने यहां स्थित पुष्कर सरोवर में, कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक यज्ञ किया था, जिसमें स्वर्ग से सभी देवी-देवता उतर कर शामिल हुए थे। इसी के चलते यहां हर साल कार्तिक एकादशी पर 5 दिनों तक धार्मिक मेले का आयोजन होता है। माना जाता है कि कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक इन 5 दिनों के दौरान पुष्कर सरोवर में स्नान करने वाले भक्तों को सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे उन्हें साल भर का पुण्य एक ही बार में मात्र इस झील में डुबकी लगाने से मिल जाता है। वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृतघट को छीनकर जब एक राक्षस भाग रहा था, तो उसमें से अमृत की कुछ बूंदें इसी सरोवर में गिर गई थी, जिसके चलते इस पवित्र सरोवर का पानी अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक हो गया, और इन्हीं मान्यताओं के चलते हर कार्तिक एकादशी पर, यहां लाखों श्रद्धालु सरोवर में डुबकी लगाकर भगवान ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पुष्कर के इतिहास की बात करें तो इसकी उत्पत्ति का विवरण रामायण, शिवपुराण और विष्णुपुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। हालाँकि प्राचीन लेखों के अनुसार इस शहर का इतिहास साल 1010 से शुरू होना माना जाता है। पुराणों के अनुसार माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहीं पर यज्ञ का आयोजन किया था। इसके चलते पुष्कर को सभी धार्मिक तीर्थों का गुरु माना जाता है। और इसी कारण से किसी भी मनुष्य कि चार धाम की यात्रा को पुष्कर झील में स्नान के बिना अधूरा माना जाता है। मान्यता है कि इस झील की उत्पत्ति ब्रम्हाजी के हाथ से कमल पुष्प गिरने से हुई थी। इसी के साथ पुष्कर झील का महत्वपूर्ण उल्लेख और मान्यता हिन्दू धर्म के अलावा सिख और बौद्ध धर्म में भी मिलता है। पुष्कर झील के चारों ओर 52 स्नान घाट और 500 से अधिक मंदिर बसे हुए हैं। पुष्कर झील के 52 घाटों में से 10 को पवित्र महत्व वाले स्मारकों के रूप में भी घोषित किया गया है, इन घाटों में वरहा घाट, दाधीच घाट, सप्तऋषि घाट, गऊ घाट, याग घाट, जयपुर घाट, करणी घाट, गणगौर घाट, ग्वालियर घाट और कोटा घाट आदि शामिल हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इन सभी घाटों का पानी कई तरह का औषधीय महत्व रखता है और त्वचा संबंधी सभी समस्याओं को ठीक कर सकता है। इनमें से ज्यादातर घाटों का नाम इन्हें बनवाने वाले राजाओं के नाम पर रखा गया है, जबकि कुछ घाटों का नाम विशेष कारणों से, जैसे महात्मा गांधी की राख को जिस घाट पर विसर्जित किया गया था, उसका नाम इस घटना के बाद गऊ घाट से बदलकर गांधी घाट कर दिया गया।
इस झील के अलावा यहां भगवान ब्रह्मा को समर्पित विश्व का एकमात्र मंदिर होने के चलते भी श्रद्धालु और पर्यटक पुष्कर की और काफी आकर्षित होते हैं। मूल रूप से 14 वीं शताब्दी में निर्मित ब्रह्मा जी के इस मंदिर को लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है। शुरुआत में इस मंदिर का निर्माण ऋषि विश्वामित्र के द्वारा शुरू किया गया था, जिसका बाद में आदि शंकराचार्य के द्वारा कई बार जीर्णोद्धार करवाया गया। ब्रह्मा मंदिर की पौराणिक कथा की बात करें तो, एक बार भगवान ब्रह्मा राक्षसों की रुकावट के बिना शांतिपूर्वक तरीके से ध्यान करना चाहते थे, इसके लिए वे एक शांत जगह की तलाश में थे। जब ब्रह्मा इस शांत जगह की तलाश कर रहे थे, तो पुष्कर में उनके हाथ से कमल का फूल गिर गया, जिसके चलते उन्होंने पुष्कर में ही ध्यान और यज्ञ करने का फैसला किया। दुर्भाग्यवश जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ करने जा रहे थे, तब उनकी पत्नी सावित्री उनके साथ नहीं थी, इसके चलते उन्हें गुर्जर समुदाय की एक लड़की यानि देवी गायत्री से विवाह करना पड़ा, ब्रह्माजी ने देवी गायत्री से गन्धर्व विवाह कर उन्हीं के साथ इस यज्ञ की सभी रस्में पूरी कीं। हालाँकि जब ब्रह्माजी की पहली पत्नी सावित्री ने उन्हें यह विवाह करते हुए देखा, तो वह क्रोधित हो गई और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया, कि कभी भी उनकी पूजा उनके भक्तों द्वारा कहीं भी नहीं की जाएगी। इसलिए सिर्फ पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर ही विश्व की एक मात्र ऐसी जगह है जहां ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है, और इसी के चलते पुष्कर के अलावा भारत में कहीं भी ब्रह्मा जी का मंदिर नहीं है और न ही उनकी पूजा की जाती है।
14 वीं शताब्दी की शुरुवात में पुष्कर नदी के तट पर बनाया गया यह ब्रह्मा मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी स्थापत्य कला, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे एक अनूठा धार्मिक स्थल बनाती है। मुख्य रूप से संगमरमर के पत्थरों से निर्मित यह मंदिर स्थापत्य कला और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा मिश्रण है। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान ब्रह्मा के वाहन हंस की मूर्ति देखने को मिलती है। मंदिर की दीवारों पर सौंदर्य व अमरत्व के प्रतीक मोर और ज्ञान व कला की देवी सरस्वती, की आकर्षक छवियों को काफी कुशलता से उकेरा गया है। मंदिर में स्थापित भगवान ब्रह्मा की मूर्ति के चार मुख होने के कारण इसे 'चौमुर्ती' भी कहा जाता है। चार मुख होने का अर्थ है कि भगवान ब्रह्मा चारों दिशाओं में विद्यमान हैं और सभी दिशाओं में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। भगवान ब्रह्मा की मूर्ति के साथ उनकी पत्नियों यानि देवी सावित्री और देवी गायत्री की मूर्तियां भी यहां स्थापित है।
ब्रह्मा मंदिर के साथ पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं में यहां की रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित सावित्री मंदिर की भी काफी मान्यता है। भगवान ब्रह्मा की पत्नी देवी सावित्री को समर्पित यह मंदिर पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी पर स्थित है, जिसके चलते श्रद्धालुओं के लिए यहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल होता है। भगवान ब्रह्मा की पहली पत्नी सावित्री को समर्पित होने के बावजूद इस मंदिर में आपको इनकी दोनों पत्नियाँ यानि देवी सावित्री और देवी गायत्री की मूर्ति देखने को मिलेगी। मंदिर में स्थित इन दोनों देवियों की मूर्तियां 7वीं शताब्दी के करीब की बताई जाती है।
सावित्री देवी को समर्पित इस भव्य मंदिर के साथ यहां आने वाले श्रद्धालुओं में पाप मोचनी मंदिर की भी काफी मान्यता है। ब्रम्हाजी की पत्नी देवी गायत्री को समर्पित इस मंदिर में देवी का पाप मोचनी रूप स्थापित है। यह भी माना जाता है कि यह एक शक्तिशाली देवी हैं जो भक्तजनों को पापो से मुक्ति देती हैं। पुराणों के अनुसार गुरुद्रोर्ण के पुत्र अश्वत्थामा ने इसी मंदिर में जाकर मोक्ष की याचना की थी, इसके चलते यह मंदिर महाभारत की कथा से भी जुड़ जाता है।
ब्रह्मा जी के अलावा पुष्कर यहां स्थित भगवान विष्णु के वराह मंदिर के लिए भी काफी मशहूर है। इस मंदिर का निर्माण मूल रूप से 12 वीं सदी में शुरू किया गया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा इसे नष्ट किये जाने के बाद, साल सत्रह सौ सत्ताईस में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा इसका पुनर्निर्माण कराया गया। इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को तीसरे अवतार वराह यानि जंगली सूअर के रूप में स्थापित किया गया है।
भगवान विष्णु के अलावा, महादेव को समर्पित यहां का आप्तेश्वर मंदिर भी भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। 12वीं शताब्दी की शुरुवात में बने इस शानदार मंदिर में स्वयंभू महादेव की शिवलिंग धरती से करीब 15 फुट नीचे स्थित है। राजस्थान में सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक, आप्तेश्वर मंदिर मध्यकालीन वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व का एक अनूठा मिश्रण है, जो भक्तों के साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। मंदिर में संगमरमर से बनी पाँच मुख वाली भगवान शिव की एक मूर्ति स्थापित है, इस मूर्ति के पांच मुख सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान कहलाते हैं। मुख्य मंदिर को चारों ओर से विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और नक्काशी से सजाया गया है। इसके अलावा इस मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर कई खूबसूरत नक्काशी और जटिल सजावट की गई है जो अलग-अलग हिंदू देवी-देवताओं के आधयात्मिक महत्व को दर्शाती हैं।
पुष्कर के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक, पुराना रंगजी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार, भगवान रंगजी को समर्पित है। डेढ़ सौ साल पुराना यह मंदिर मुगल और राजपूत वास्तुकला का एक अद्भुत संगम है। इस मंदिर का निर्माण सन् अट्ठारह सौ तेईस में हैदराबाद के व्यापारी सेठ पूरन मल गनेरीवाल ने करवाया था। पुराना रंगजी मंदिर में भगवान रंगजी, भगवान कृष्ण, देवी लक्ष्मी, गोड्डमही और श्री रामानुजाचार्य की मूर्तियों को स्थापित किया गया है।
मंदिरों के अलावा यहां स्थित नाग पहाड़ भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि सतयुग में प्रसिद्ध अगस्त्य मुनि इसी स्थान पर निवास करते थे और इन्हीं के प्रहार के चलते नाग कुंड यहां पर अस्तित्व में आया था। नाग पहाड़ को भगवान ब्रह्मा के पुत्र वातु का निवास स्थान भी माना जाता है, इन्हें च्यवन ऋषि के एक श्राप के चलते काफी समय तक इस पहाड़ी पर रहना पड़ा था। धार्मिक और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण यह नाग पहाड़ी श्रद्धालुओं में आध्यात्मिक सैर और पर्यटकों में ट्रेकिंग के लिए काफी प्रसिद्ध है।
हिन्दू मंदिरों के अलावा पुष्कर में कई जैन मंदिर भी स्थित हैं, इसमें से यहां का दिगंबर जैन मंदिर सबसे अधिक मशहूर है। सोने से जड़े इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है, जो विश्व भर में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। ऋषभ या आदिनाथ भगवान को समर्पित होने के चलते इस दिगंबर जैन मंदिर को सोनीजी की नसियां के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू धर्म के साथ सिख धर्म में भी पुष्कर धाम की काफी मान्यता है। सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव साहब ने अपनी दक्षिण की यात्रा से लौटते हुए, काफी समय तक पुष्कर तीर्थ पर रुक कर धार्मिक साधना की थी, इसके चलते देश और दुनियाभर के सिख समुदाय के लोगों में पुष्कर के प्रति गहरी आस्था है। इसके अलावा सिखों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह ने भी लंबे समय तक पुष्कर में रुक कर, स्थानीय लोगों को अपने उपदेशों से प्रेरित किया था। इसके चलते भी विश्वभर के सिख धर्म में पुष्कर और यहां स्थित गुरुदवारे की काफी मान्यता है।
अगर आप भी पुष्कर में डुबकी लगाने या घूमने का प्लान बना रहे है , तो बता दें कि आप यहां पहुंचने के लिए हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सडक मार्ग में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे करीबी हवाई अड्डा डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांगानेर हवाई अड्डा है। अगर आप रेल मार्ग से यहां पहुंचना चाहते हैं तो यहां आने के लिए सबसे करीबी रेलवे स्टेशन 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजमेर जंक्शन है। सड़क मार्ग से यहां आने के लिए सबसे नजदीकी बस स्टैंड लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजमेर बस स्टैंड है।
तो दोस्तों ये थी हिंदू धर्म के सबसे बड़े तीर्थों में से एक पुष्कर की कहानी, वीडियो देखने के लिए धन्यवाद, अगर आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज कमेंट कर अपनी राय दें, चैनल को सब्सक्राइब करें, वीडियो को लाइक करें, और अपने फ्रेंड्स और फेमिली के साथ इसे जरूर शेयर करें।
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