महालेखाकार की रिपोर्ट में खुलासा, सरकारी विभागों ने 34 हजार करोड़ का नहीं दिया हिसाब, मंत्री के आदेश की भी परवाह नहीं
झारखंड के सरकारी विभागों ने खर्च की गयी राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड के सरकारी विभागों ने खर्च की गयी राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है। राज्य में 31 मार्च, 2021 तक 88,047.48 करोड़ राशि में से सभी राशियों का उपयोगिता प्रमाण पत्र विभिन्न विभागों के पास 2020-21 तक बकाया था। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है।
प्रधान महालेखाकार अनूप फ्रांसिस डुंगडुंग ने सोमवार को महालेखाकार कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 88,047.48 करोड़ में से 34,017 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं हो सका था। इसी अवधि तक निकाले गये एसी बिल के विरुद्ध भारी मात्रा में 6,018.98 करोड़ के डीसी बिल (18,272 करोड़) जमा नहीं किये गये। 2020-21 के दौरान राज्य का राजस्व व्यय का कुल खर्च का 83.0 प्रतिशत था। इसका 42.98 प्रतिशत वेतन और मजदूरी, ब्याज भुगतान और पेंशन पर खर्च किया गया।
इस दौरान झारखंड के प्रधान महालेखाकार ने तीन रिपोर्ट भी जारी की। इनमें 31 मार्च, 2021 को समाप्त हुए वर्ष का राज्य वित्त लेखा परीक्षा प्रतिवेदन, राज्य में ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रतिवेदन और राज्य सार्वजनिक उद्यमों सहित सामान्य, सामाजिक, आर्थिक एवं राजस्व प्रक्षेत्रों का प्रतिवेदन शामिल था। प्रधान महालेखाकार अनूप फ्रांसिस डुंगडुंग ने बताया कि इन रिपोर्ट को पिछले दिनों पहले तो 5 मई को राज्यपाल को समर्पित किया गया। इसके बाद विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान इसे सदन के पटल पर 4 अगस्त को प्रस्तुत किया गया था। 2020-21 के दौरान राज्य का राजस्व व्यय का कुल व्यय का 83.0 प्रतिशत था।
इसका 42.98 प्रतिशत वेतन और मजदूरी, ब्याज भुगतान और पेंशन पर खर्च किया गया। इस दौरान एजी के चंपक रायप्रधान महालेखाकार के मुताबिक सीएजी के लेखा परीक्षा क्षेत्राधिकार के तहत 31 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे। इनमें से केवल 16 के 2020-21 तक वित्तीय प्रदर्शन अद्यतन खातों के आधार पर थे। केवल एक ने वर्ष 2020-21 के लिये अपने खातों को अंतिम रूप दिया।
मंत्री के आदेश की भी परवाह नहीं
प्रधान महालेखाकार के मुताबिक रिम्स की ओर से 2014-19 के दौरान 37.17 करोड़ मूल्य के दंत चिकित्सा उपकरण खरीदे गये जो बजट का 400 प्रतिशत था। जनवरी 2016 में इसके लिये टेंडर जारी किया गया। निविदा से 18.52 करोड़ रुपये के 20 उपकरण बाजार दर से अधिक कीमतों पर खरीदे गये। स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के बावजूद रिम्स निदेशक ने 5.40 करोड़ के बकाया बिल का भुगतान आरोपी अभिकर्ता को कर दिया।
उपकरणों के मूल्य का सर्वे
अभिकर्ता द्वारा प्रस्तुत अनुपालन की प्रति जांच नहीं की न ही समान प्रकार के उपकरणों के बाजार मूल्यों का सर्वेक्षण किया। खरीदे गये उपकऱणों का अन्य संस्थानों द्वारा की गयी खरीद मूल्य का सर्वेक्षण भी नहीं हुआ। मंत्री की मंजूरी लिये बिना 11.40 करोड़ मूल्य के उपकरण जान बूझकर एक ही आपूर्ति कर्ता से खरीदा गया।