सराज घाटी के पंजाईं क्षेत्र में हारगी उत्सव बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। आज उत्सव का पांचवा दिन है, जिसमें देव नृत्य व भव्य नाटी का आयोजन किया गया। जिला कुल्लू के सैंज घाटी के आराध्य देव पुंडीर ऋषि व जिला मंडी के पंजाईं सराज क्षेत्र के आराध्य देव पुंडरीक ऋषि के भव्य व दिव्य देव महाकुंभ में हजारों श्रद्धालुओं ने शिरकत कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
आमतौर पर दोनों देवताओं का मिलन 11 साल बाद होता है, लेकिन इस बार य़ह मिलन 12 साल बाद आयोजित किया जा रहा है। हारगी उत्सव पहली बार वर्ष 1580 में शुरू हुआ था। उस समय इनका मिलन नदी के आर-पार से होता था। कारण यह था कि उस समय आने जाने के रास्ते नहीं थे, जिस कारण दरिया के आर पार से ही देवताओं का मिलन होता था।
दो भाइयों के रूप मे ं जाने जाने वाले पुंडीर और पुंडरीक ऋषि पंजाई के झालरु नामक स्थान से जुदा हुए थे। उस वक्त पुंडरीक ऋषि ने वहां से पत्थर की खंभानूमा शिला फेंकी जो बंजार के गांव फडारणी में ओड़े (देव क्षेत्र की सीमा) के रूप में अभी भी मौजूद है। दूसरी शिला वहां से मैहरा नामक स्थान को फेंकी, जो सैंज घाटी के सुचैहण नामक स्थान के साथ लगता इलाका है और यह ईलाका पुण्डीर ऋषि ने संभाला। पुंडीर ऋषि झालरु से जिला कुल्लू के सैंज घाटी में बनोगी नामक स्थान में विराजमान हुए।