कोरोना के बाद बढ़ी मानसिक तनाव के मरीजों की संख्या, मानसिक तनाव के शिकार हो रहे युवा
शिमला: हिमाचल प्रदेश के युवा मानसिक तनाव के शिकार हो रहे है। इस बात का खुलासा आईजीएमसी के मनो चिकित्सा विभाग ने किया। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में मनो चिकित्सा विभाग के अनुसार प्रतिदिन 80 से 100 लोगो की ओपीडी होती है जो मानसिक तनाव के कारण ईलाज करवाने आते है। डॉक्टर का मानना है कि कोरोना कल के बाद यह संख्या बड़ी है। इसमे चौकाने वाली बात यह है कि ओपीडी में 50 फीसदी युवा शामिल है। आईजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ देवेश शर्मा ने बताया कि आज की युवा पीढ़ी मानसिक दवाब में आ रही है। उनके ओपीडी में 50 फीसदी युवा आते है और 10 से 15 फीसदी छोटे बच्चे आते है जो मानसिक दवाब में होते है और उनका ईलाज आईजीएमसी से चल रहा है।डॉक्टर का कहना है कि मानसिक तनाव का इलाज संभव है , लेकिन अगर कोई मानसिक रूप से बीमार है तो वह बीमारी छुपाते है।
इसका मुख्य कारण एकल परिवार में रहना भी है जिसमें पति व पत्नी है उनमें अगर कोई बीमारी से ग्रस्त है तो उनकी उतनी ज्यादा देखभाल नहीं हो पा रही है। डॉ देवेश का कहना है कि जो मानसिक तनाव में रहता है उसका ईलाज सम्भव है ऐसे ब्यक्ति को समझया जा सकता है और ऐसा ब्यक्ति अपने घर ,परिवार, ऑफिस ,दोस्तों में खुल कर बात करे और कोई समस्या हो तो उनका रास्ता निकाले । ओर समय पर अस्पताल आये तो उसे ठीक किया जा सकता है।
मानसिक बीमारी होने के लक्षण
पहले जब बीमारी शुरू होती है तो उसमें सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे कम बोलना, अकेला रहना, नींद कम आना आदि है। मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति कभी आत्महत्या के लिए कदम उठा लेता है। विशेषज्ञ मानते है कि कोरोना काल में भी मानसिक तनाव की बीमारी काफी ज्यादा बढ़ी है।
बेरोजगारी,नशे का आदि होना मुख्य समस्या
डॉ देवेश ने बताया कि मानिसक तनाव के कई कारण हो सकते है लेकिन मुख्य कारण बेरोजगारी समय पर जॉब का ना लगना घर की परेशानी और नशे के आदि होना है। उन्होंने बताया कि नशे के सेवन करने वाले ज्यादा मानसिक रोगी है । उनका कहना था कि उनके ओपीडी में जो भी आता है उनको समझाया जाता है की नशे का सेवन न करे और तनाव में न रहे।
लोगों का जागरूक होना जरूरी
डॉ देवेश का कहना है कि ओपीडी में हर आयु वर्ग के मरीज आते है जो मानिसक तनाव में है। उनका कहना था कि स्कूली बच्चे भी मानसिक दवाब में है ,उनका कहना था कि लोगो को जागरूक करके इससे बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोग आज कल खुद तनाव में रहते है लेकिन किसी ओर को बताने में शर्म करते है। जबकि ऐसे में खुल कर बात करनी चाहिए और समय पर अस्पताल आना चाहिए।