मछली पालन के लिए NIT हमीरपुर ने विकसित की नई तकनीक

NIT हमीरपुर ने विकसित की नई तकनीक

Update: 2022-06-16 10:11 GMT
हमीरपुर: मत्स्य पालन से रोजी रोटी कमाने वाले मछली पालकों के लिए जरूरी खबर है. अब मत्स्य पालन से जुड़े लोग और मछली पालक किसान और विभाग मोबाइल के जरिये ऑनलाइन अपने तालाब अथवा झील की निगरानी कर पाएंगे. एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञों ने तकनीक ईजाद (NIT Hamirpur invented technology for fish farming) की है. यह खोज देशभर में मत्स्य पालन में एक नई क्रांति साबित हो सकती है. मत्स्य पालन में इस्तेमाल होने वाले सबसे जरूरी घटक पानी की अब मोबाइल के जरिए ऑनलाइन निगरानी होगी.
मत्स्य पालन के लिए इस्तेमाल किए जा रहे तालाब अथवा झील के पानी में ऑक्सीजन लेवल से लेकर शुद्धता और तापमान तक की निगरानी मोबाइल के जरिये संभव होगी. पानी में किसी भी तत्व की कमी होने पर इस अपडेट मछली पालक को मोबाइल मिल जाएगा. अपडेट मिलने पर मछली पालक संबंधित विशेषकों के मागदर्शन में इस कमी को तुरंत पूरा करे सकेगा. इस खोज की महत्वपूर्ण बात यह है कि एनआईटी हमीरपुर के विशेषज्ञों ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स आईओटी तकनीक से तैयार किए गए इस डिजाइन को भारत सरकार के पेंटट कार्यालय से मंजूरी मिल गई है. एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर राजीवन चंदेल और डॉ रोहित धीमान ने अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर यह अविष्कार किया है.
क्या है आईओटी तकनीक: दरअसल इंटरनेट सर्वर के जरिये कार्य करने वाली तकनीक को वैज्ञानिक भाषा में इंटरनेट और थिंग्स कहा जाता है. एनआईटी के विशेषज्ञों के इस इस अविष्कार में तालाब अथवा झील में प्रयोग होने वाले उपकरण में जलीय मापदंडों को मापने के लिए कई सेंसर से युक्त सेंसर नोड्स का इस्तेमाल किया गया है. यह नोडस सेंसर के जरिये बेस स्टेशन एप को पानी में होने वाले बदलावों की जानकारी देंगे.
इंटरनेट के जरिये बदलाव की जानकारी इंटरनेट के जरिये एप तक पहुंचेगी. एप पानी में हुए बदलाव की जानकारी को रीयल टाइम में मछली पालक के मोबाइल पर संदेश के जरिये पहुंचा देगा. स्मार्ट डिवाइस पर रियल टाइम पैरामीटर डेटा पहुंचने के लिए एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन जलीय पैरामीटर के विनियमन के लिए एक एक्ट्यूएटर नोडए और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का इसमें इस्तेमाल किया गया है.
मछलियों की बीमारी का भी मिलेगा अपडेट: इस उपकरण के जरिये पानी के घटकों आक्सीजन लेवल, शुद्धता, तापमान के साथ मछलियों में बीमारियां लगने की जानकारी भी मछली पालकों को मिल पाएगी. यदि तालाब में मौजूद किसी मछली को बीमारी लगती है तो इससे पानी में होने वाले बदलावों को भी सेंसर नोडस एकदम पकड़ लेगी और इसकी जानकारी तुरंत मोबाइल पर अपडेट के जरिये उपलब्ध होगी.
कई बार तालाबों और झीलों में मछलियों मरना शुरू हो जाती हैं, लेकिन इसके कारण का पता लगाना बड़ा मुश्किल हो जाता. उपयुक्त तकनीक की कमी से मछलियों की बामारियों और पानी के घटकों की कमी का पता लगाने में काफी समय भी खफ जाता था, लेकिन इस तकनीक से तुरंत अपडेट मिलने से मछलियों को मरने से भी बचाया जा सकेगा और पोषक तत्वों की कमी को उपकरण से मिलने वाली जानकारी के जरिये पूरा किया जा सकेगा.
चूक की संभावना बेहद कम: मानवीय तरीके पानी की निगरानी के दौरान चूक की संभावना भी अधिक रहती है, लेकिन इस उपकरण के जरिये चूक की यह संभावना बेहद कम होगी. मत्स्य पालन केंद्रों में जहां मछलियों का उन्नत बीज इत्यादि तैयार किया जाता है. वहां पर यह तकनीक कारगर होगी. बड़े स्तर पर मछली पालन के कारोबार करने वाले लोगों के लिए यह मैन पावर की कमी की लिहाज से फायदेमंद होगी. सरकारी क्षेत्र के मछली पालन केंद्रों में मैन पावर की कमी को भी यह पूरा करेंगे. एक उपकरण को स्थापित करने की लागत महज पांच से 25 हजार के बीच होगी.
पेटेंट में छात्र भी शामिल: एनआईटी हमीरपुर के निदेशक प्रोफेसर एचएम सूर्यवंशी ने भारत सरकार के पेटेंट कार्यलय से इस अविष्कार को स्वीकृति मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की है. उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत प्रोफेसर राजीवन चंदेल और सहायक प्रोफेसर डॉ. रोहित धीमान को इस कार्य के लिए बधाई दी है. बता दें कि एनआईटी हमीरपुर के दोनों विशेषज्ञों के साथ छात्र चेतन, विष्णु और आशीष भी इस पेंटेट में शामिल है.
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