2050 तक दुनिया में बढ़ेगा 2 डिग्री तापमान, राज्य में सदी के अंत तक 87 प्रतिशत ग्लेशियर से होगी बर्फ गायब

सदी के अंत तक 87 प्रतिशत ग्लेशियर से होगी बर्फ गायब

Update: 2022-07-01 04:52 GMT
शिमला: दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे और पहाड़ तप रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में भी जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिल (Climate change in Himachal) रहा है.जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कैसे कम किया जाए इसको लेकर शिमला में हिमकॉस्ट ने नीति निर्धारण पर विशेषज्ञों की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन (Workshop on Climate Change in Shimla) किया, जिसमें वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता जाहिर की.
2 डिग्री तापमान बढ़ने की आशंका: वैज्ञानिकों ने 2050 तक 2 डिग्री तक तापमान के बढ़ने की आशंका जताई ,जिसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ेगा.इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु (Indian Institute of Science Bengaluru) के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर अनिल कुलकर्णी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है, जिसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि काम करने का तरीके और योजना को नए तरीके से बनाने की जरूरत है. हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर तापमान काफी ज्यादा बढ़ रहा ,जिसकी वजह से ग्लेशियर पिघल रहे और पानी के स्त्रोतों पर भी इसका असर पड़ रहा है.
शिमला में जलवायु परिवर्तन पर कार्यशाला
हिमाचल में ग्लेशियर बर्फ खो देंगे: उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सदी के अंत तक ग्लेशियर 87 प्रतिशत बर्फ खो देंगे. 2050 में हिमनदों से अपवाह बढ़ेगा और फिर घटना शुरू होगा. तापमान में 4.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी. हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद (HIMCOSTE) के निदेशक ललित जैन ने बताया की जलवायु परिवर्तन पर प्रदेश के वैज्ञानिक व अधिकारी मंथन कर रहे हैं. ग्लेशियर को किस तरह से पिघलने से बचाया जाए व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन वैज्ञानिक तरीके से किया जा सके इस पर बल दिया जा रहा है.
शिमला में जलवायु परिवर्तन पर कार्यशाला
हीट-वेव का करना पडे़गा सामना: दुनिया का ग्लोबल वार्मिंग के कारण साल 2050 तक 2.0 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाएगा जिससे दुनिया को भयानक हीट-वेव का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि इस दिशा में एक साथ काम करेंगे ,ताकि इस हिमालयी राज्य में बदलती जलवायु के लिए विभिन्न अनुकूल और शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिए एक विश्वसीनय वैज्ञानिक डेटाबेस तैयार किया जा सके.
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