बिहार की सियासत में जंगलराज को लेकर जमकर सियासत की जा रही है, जहां बीजेपी इस नारे के सहारे वोट बटोरना चाह रही है तो वहीं महागठबंधन के पास इसकी काट के तौर नीतीश कुमार का चेहरा है. हालांकि जंगलराज के नारे को सुनते हुए एक पूरी पीढ़ी जा चुकी है. ऐसे में जंगलराज से सियासी फायदा उठाना आसान नहीं होगा. बिहार में जंगलराज के नारे ने पिछले 3 दशकों में कई नेताओं का भाग्य चमका दिया, तो कई नेताओं को अर्स से फर्श पर भी पहुंचा दिया. इस एक नारे के सहारे बिहार में सत्ता बनाई गई और सत्ता के लिए कई समझौते भी किए गए, लेकिन बिहार की सियासी फिजाओं में ये नारा अब भी गूंज रहा है. बीजेपी इस महागठबंधन को जंगल राज टू की वापसी बता रही है और सीधा सवाल सीएम नीतीश कुमार के सुशासन वाली छवि से पूछा जा रहा है.
जंगलराज 2.0
बीजेपी नेता जंगलराज टू की बात कह रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ आरजेडी बीजेपी पर हमेशा हमलावर रही है. बिहार को जंगलराज में किसने धकेला इस सवाल पर भले ही आरजेडी प्रवक्ता सीधे जवाब ना दे पाए, लेकिन उनके पास बीजेपी और जेडीए के शासन में हुई घटनाओं की भी पूरी लिस्ट है. बदलते हालातों में अब जेडीयू और आरजेडी साथ में है, तो निशाना सिर्फ और सिर्फ बीजेपी पर ही है. साथ ही जेडीयू के निशाने पर भी बीजेपी ही है.
किसका शासन जंगलराज?
हालांकि, बिहार में किसका शासन जंगलराज? इस सवाल पर सियासी दलों की प्रतिक्रिया सुविधाजनक भले ही हो, लेकिन बीजेपी को इस चुनावी समर में महागठबंधन पर निशाना साधने का एक मौका तो मिल ही गया है और बीजेपी इसे चुनावी समर में जमकर भुनाने की तैयारी में भी है. जैसे राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं.
चुनाव में काम आएगा ये मुद्दा
हालांकि, जंगलराज क्या एक बार फिर बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाएगा? ये तो चुनाव के बाद जनता ही तय करेगी, लेकिन आज भी राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सीएम नीतीश कुमार की छवि अपराध से नो कंप्रोमाइज की है. वहीं, बीजेपी भले ही इसे बड़ा मुद्दा मान कर सियासी माहौल को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है, लेकिन इस नारे को सुनते-सुनते एक पूरी पीढ़ी जा चुकी है. क्योंकि उस दौर के सियासी समीकरण अलग थे, और आज सियासी समीकरण अलग हैं.