बिहार में वैज्ञानिकों की देखरेख में खेती का सुखद नतीजा, राज्य में मौसम अनुकूल खेती से साल भर में उत्पादकता हुई दोगुनी

बिहार में मौसम अनुकूल खेती से उत्पादकता दोगुनी हो गई। लिहाजा अब खेती का रकबा बढ़ाये बिना ही अनाज का उत्पादन भी दूना हो सकेगा।

Update: 2022-07-06 02:30 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार में मौसम अनुकूल खेती से उत्पादकता दोगुनी हो गई। लिहाजा अब खेती का रकबा बढ़ाये बिना ही अनाज का उत्पादन भी दूना हो सकेगा। लेकिन इसके लिए हर किसान को खेती की इस नई प्रणाली को अपनाना होगा। अभी हर जिले के मात्र 595 हेक्टेयर में ही यह खेती हो रही है। वह भी सरकारी अनुदान के सहारे और वैज्ञानिकों की देखरेख में।

राज्य में मौसम अनुकूल खेती को लेकर गत वर्ष खरीफ और रबी दोनों फसल का आकलन सरकार ने किया तो सालभर की औसत उत्पादकता 113 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई। आमतौर पर खेती के परम्परिक तरीके से सालभर में अनाज की उत्पादकता 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। अगर किसी किसान ने बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से खेती की तो चुनिंदा इलाके में उत्पादकता 80 से 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है। खास बात यह है कि उत्पादकता में यह वृद्धि के लिए न तो बीज बदले गये और न ही रकबा बढ़ाया गया। सिर्फ समय प्रबंधन कर फसल सघनता बढ़ाने से यह परिणाम मिला है। मौसम अनुकूल खेती में राज्य सरकार सालभर में तीन फसल लेने का प्रयास कर रही है। इसके लिए समय प्रबंधन किया जाता है। खेतों की जुताई में समय नष्ट नहीं किया जाता और बिना जुताई के ही फसल की बुआई की जाती है। यहां तक कि धान की खेती में भी बड़े रकबे में सीधी बुआई होती है।
बिचड़ा डाले बिना सीधी बुआई
से कम से कम 15 दिन का समय बचता है। सरकार का यह प्रयोग सफल हुआ है। लिहाजा इस बार खरीफ में हर जिले में जिन 595 हेक्टेयर रकबे में मौसम अनुकूल खेती होनी है, उनमें 500 हेक्टेयर में सिर्फ धान की खेती होगी। इसमें 300 हेक्टेयर खेतों में धान की सीधी बुआई की गई है। दूसरे किसान अभी बिचड़ा ही डाल रहे हैं, लेकिन मौसम अनुकूल खेती वाले रकबे में सीधी बुआई का काम पूरा हो गया। ये 150 दिन वाले धान की किस्में हैं।
वहीं, 135 दिन की किस्मों की बुआई भी शुरू हो गई। जिन खेतों में सौ दिन वाली किस्म की खेती होनी है, वहां बिचड़ा डाला गया है। सरकार का उद्देश्य है कि किसान समय प्रबंधन के प्रति जागरूक हों। किसान समझें कि मौसम में जो बदलाव हो रहा है उसके लिए खेती का समय भी बदलना होगा। साथ ही उत्पादन बढ़ाने के लिए फसल सघनता भी बढ़ानी होगी।
किस्मों का चयन उसी के हिसाब से करना है। जिन गांवों के जिस प्लॉट का चयन हुआ है उसमें फसल कटनी से लेकिन बुआई तक की तकनीकी सपोर्ट विभाग देता है। बीज भी सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाता है। इन खेतों से जुड़े किसानों को सरकार तीन-तीन हजार रुपये देती है।
मौसम अनुकूल खेती
● 365 दिन का फसल चक्र तैयार
● 595 हेक्टेयर में हर जिले मेंखेती
● 300 हेक्टेयर में हर जिले में धान की सीधी बुआई
● 3000प्रति एकड़ देती है सरकार
● 113 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिली गत वर्ष उत्पादकता
● 55 क्विंटल है पारंपरिक खेती की उत्पादकता
कहते हैं पदाधिकारी
नोडल अधिकारी अनिल कुमार झा कहते हैं कि गत वर्ष सालभर में 113 क्विंटल उत्पादकता मिली जो लगभग दूनी है। सालभर की पूरी योजना तैयार है। बुआई से लेकर कटनी तक का समय तय है। 365 दिन का फसल चक्र बना हुआ है। किसानों को हर खेत को दिखाया जाता है, ताकि वह समय प्रबंधन सीख सकें। इलाके के अनुसार फसल का चयन किया जाता है।
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