वात, पित्त या कफ: किस प्रकृति का है आपका शरीर जानें
वात, पित्त या कफ: किस प्रकृति
आयुर्वेद में वात,पित्त और कफ इन तीनों के आधार पर ही किसी बीमारी का इलाज किया जाता है। वात-पित्त-कफ दोष क्या हैं और इनके बिगड़ने पर हमारे शरीर में क्या लक्षण नजर आते हैं, यह जानना बेहद जरूरी है। आयुर्वेद में इन तीनों को त्रिदोष कहा जाता है। इस अंसतुलन के पीछे मौसम और उम्र में बदलाव हो सकता है। इसके अलावा लाइफस्टाइल और खान-पान से जुड़ी आदतें या फिर कोई बीमारी भी इसके पीछे की वजह हो सकती है। जिस तरह से हमें हमारे ब्लड ग्रुप के बारे में जानकारी होती है, स्किन टाइप पता होता है, ठीक उसी तरह इन दोषों के बारे में भी जानना चाहिए ताकि हम अपने शरीर को प्रकृति को पहचान सकें और उसी हिसाब से अपने शरीर का ख्याल रख सकें। इस बारे में आयुवर्दिक डॉक्टर नीतिका कोहली की क्या राय है, आइए आपको बताते हैं।
यह है एक्सपर्ट का कहना
हमारी बॉडी की प्रकृति द्वंदज होती है यानी की दो दोषों की अधिकता होती है। ये तीनों ही दोष हमारे शरीर में पाए जाते हैं। जिन भी दो दोषों की अधिकता शरीर में होने लगती हैं, उनके लक्षण नजर आने लगते हैं।
क्या होते हैं लक्षण?
अगर शरीर वात प्रकृति का है तो शरीर में वायु की मात्रा बढ़ जाती है। जिसकी वजह से गैस अधिक बनने लगती है।
उम्र के अनुसार बात करें तो ऐसा माना जाता है कि बचपन में कफ, जवानी में पित्त और बुढ़ापे में वात बढ़ा हुआ होता है।
वात बढ़ने पर शरीर में दर्द अधिक रहने लगता है।
अगर आप ज्यादा तला हुआ या मसालेदार भोजन खाते हैं या फिर लंबे वक्त तक भूखे रहते हैं तो आपका पित्त बढ़ सकता है।
पित्त बढ़ने पर मुहांसे, शरीर पर रैशेज, सीने में जलन और खट्टी डकार आने की समस्या हो सकती है।
पित्त बढ़ने पर हॉट फ्लैशेज भी हो जाते हैं।
अगर आपको बार-बार खांसी की समस्या हो जाती है तो इसकी एक वजह आपके शरीर में कफ का बढ़ा होना हो सकता है।
बलगम अधिक बनने से सीने में जकड़न भी महसूस हो सकती है।
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यहां देखें एक्सपर्ट का पोस्ट
इन बातों का रखें ध्यान
आयुर्वेद का मानें तो किसी भी बीमारी का इलाज करने से लिए सबसे पहले शरीर की प्रकृति को जानना बहुत जरूरी है। इसलिए आयुर्वेद वात-पित्त और कफ पर इतना जोर देता है। आप में जिस दोष की अधिकता हो, उस हिसाब से आपको डाइट और लाइफस्टाइल से जुड़े कई बदलाव करने की सलाद दी जाती है ताकि शरीर में संतुलन बना रहे।
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