हाइपोथाइरॉइडिज्म तब होता है, जब तितली के आकार जैसी थायरॉइड ग्लैंड (ग्रंथि) की सक्रियता बेहद कम हो जाती है और यह शरीर की जरूरत पूरी करने लायक पर्याप्त थायरॉइड हॉर्मोन भी नहीं बनाती है।
भारत में, अमूमन 10 वयस्कों में एक को हाइपोथाइरॉइडिज्म है। इससे विशेषकर महिलाएं प्रभावित हैं और पुरुषों की तुलना में उन्हें कम सक्रिय थायरॉइड विकार होने की आशंका तीन गुणा ज्यादा होती है। लेकिन, इस अवस्था को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। थायरॉइड विकार वाली आबादी के एक बड़े हिस्से में इसकी पहचान नहीं हो पाती और बाद में वे आवश्यक उपचार नहीं कराते। थायरॉइड से जुड़े अस्पष्ट लक्षण इसके डायग्नोस होने की कम दर का एक प्रमुख कारण है। इन लक्षणों में थकान होना, कमजोर याददाश्त, नींद में कठिनाई और अत्यधिक वजन से लेकर कब्ज, रूखी त्वचा, ठण्ड बर्दाश्त करने की क्षमता में कमी, मांसपेशियों में मरोड़, और पलकों में सूजन शामिल हैं।
एक अल्प-सक्रिय थायरॉइड का परिणाम ऊर्जा स्तर, वजन, मूड, और हृदयगति में कमी के रूप में भी हो सकता है, क्योंकि यह ग्रंथि इन क्रियाओं को संतुलित करने और शरीर के स्वस्थ विकास में सपोर्ट के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लगभग हर किसी ने थायरॉइड विकार के बिना भी इन लक्षणों में से कोई न कोई अनुभव किया है, आप समझ सकते हैं कि इन लक्षणों को लोग कितनी आसानी से नजरअंदाज कर सकते हैं।थायरॉइड विकार का अगर उचित प्रबंधन नहीं किया जाए तो इसके कारण कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि, रजोस्राव के चक्र में अनियमितता और अवसाद एवं मूड में बार-बार बदलाव होने सहित भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। अनियंत्रित थाइरॉइड की समस्याओं के चलते पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) और बांझपन का ज्यादा ख़तरा हो सकता है, यहां तक की महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) संबंधी लक्षण भी बढ़ सकता है।
इसके कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भनाल (प्लेसेंटा) में असमान्यता, खून की कमी (एनीमिया), प्रीक्लैम्प्सिया (गर्भावस्था में खतरनाक स्तर तक उच्च रक्तचाप हो जाना), गर्भपात, और प्रसव के बाद रक्तस्राव सहित घबराहट की जटिलता भी हो सकती है।
हाइपोथाइरॉइडिज्म को समझना ज़रूरी है क्योंकि यह अवस्था बढ़ सकती है और लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी पर असर डाल सकती है। नतीजतन, लोगों के जीवन की गुणवत्ता, उत्पादकता, काम-धंधा और अन्य गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से बचने के लिए सामयिक तरीके से थाइरॉइड के विकारों का पता लगाना और स्थिति को संभालने के लिए तुरंत इलाज कराना ज़रूरी है। थायरॉइड की जांच सहित नियमित रूप से स्वास्थ्य की जांच कराना एक अच्छी आदत है। दुनिया भर में डॉक्टरों द्वारा गर्भावस्था के दौरान भी थायरॉइड की जांच कराने की सलाह दी जाती है। यह खासकर इसलिए भी ज़रूरी है कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में 14% महिलाएं थायरॉइड के विकार से पीड़ित होती हैं।
ज्यादा से ज्यादा लोगों को और विशेषकर महिलाओं को स्वस्थ बने रहने के लिए थाइरॉइड ग्लैंड की उचित कार्यात्मकता के महत्व के बारे में जानकारी देना उचित है। फिजिशियन से बात करके महिलाएं हाइपोथाइरॉइडिज्म के प्रभावों के बारे में समझ सकती है और बेहतर स्वस्थ जीवन जीने के लिए उचित उपचार करा सकती हैं।
महिलाएं बताई गई दवाओं की सही खुराक पता करने और उसका पालन करने के अलावा प्रमुख जीवनशैली में बदलाव करके अपने दैनिक जीवन में लक्षणों को मैनेज भी कर सकती हैं। इन बदलावों में धीरे-धीरे खाना, नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करना, तनाव कम करना, पौष्टिकता, आंतों की सेहत आदि को बेहतर बनाने वाले खाद्य पदार्थों को अपनाना शामिल है।