बेहद चिंता का विषय है बच्चे में ईएनटी का समस्या, जानें इसके बारे में सब कुछ

छोटे बच्‍चों की परवरिश करना कोई आसान काम नहीं है। बच्‍चे अपनी परेशानी को बहुत अच्‍छी तरह समझा नहीं पाते

Update: 2021-11-14 08:13 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |      छोटे बच्‍चों की परवरिश करना कोई आसान काम नहीं है। बच्‍चे अपनी परेशानी को बहुत अच्‍छी तरह समझा नहीं पाते, ऐसे में मां-बाप के लिए उन्हे समझना काफी मुश्किल हो जाता है। इसके लिए जरूरी है कि बचपन से ही उनका पूरा ध्यान रखा जाए। अब एक अध्यय से पता चला है कि 3 से 18 वर्ष के बीच के 90% बच्चे ईएनटी समस्याओं से पीड़ित हैं, जो बेहद चिंता का विषय है।

लड़कों के मुकाबले लड़कियाें को ज्यादा परेशानी
बाल दिवस के मौके पर हेल्फा द्वारा की गई एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि 3 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 90% बच्चे ईएनटी से संबंधित कठिनाइयों और आंखों की समस्याओं से पीड़ित हैं। यह सर्वे तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र सहित भारत के पांच प्रमुख राज्यों में किया गया। सर्वे में यह भी बात सामने आई कि लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियां थायराइड का शिकार हो रही हैं। वहीं खान-पान में कमी के कारण बड़ी संख्या में बच्चों को दांतों की समस्या हो रही है।
बच्चों के लिए यह खतरनाक
रिपोर्ट की मानें तो 41% बच्चे कान में स्वच्छता संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं, 39% बच्चे ईयर वैक्स से संबंधित समस्याओं से पीड़ित हैं, जिससे उनका पढ़ाई पर ध्यान कम हो रहा है। 17% बच्चे बीपी की समस्या का सामना कर रहे हैं। 9% बच्चे कान के मैल से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं, सभी बच्चों में से 13% को सांस की समस्या है। ईएनटी से संबंधित मुद्दों से पीड़ित बच्चों की संख्या निश्चित रूप से एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
किन बच्चों को है ज्यादा खतरा
-5 साल से कम आयु के बच्चों को कान में संक्रमण का जोखिम अधिक बना रहता है
-प्ले-वे या डेकेयर में रहने वाले बच्चों को भी हो सकती है ये समस्या
-ऐसे बच्चों को आसानी से सर्दी-जुकाम की शिकायत हो सकती है।
-ब्रेस्टफीड या मां का दूध न पीने वाले बच्चों में भी इस संक्रमण का खतरा अधिक बनता है।
-मां के दूध में ऐसी एंटीबॉडीज पाई जाती हैं, जो संक्रमण से लड़ने में मददगार होती है।
कान के इनफेक्शन का उपचार
-बच्चे को थोड़ा ऊंचा बिठाकर दूध पिलाएं
-कान पर रुई का फाहा या कॉटन बड का इस्तेमाल न करें।
-कॉटन बड को बच्चे की कर्ण नलिका के अंदर न डालें।
-बच्चे के आस-पास धूम्रपान न करने दें।
-सुनिश्चित करें कि शिशु को सभी टीके सही समय पर लगें।
-एक साल से कम उम्र के बच्चे को डेकेयर या क्रेश में न डालें।
-यहां इनफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है।
इनफेक्शन के लक्षण
-बच्चे को बिना किसी खास कारण के बुखार का आना
-बच्चे का चिड़चिड़ा होना
-बच्चे को ठीक प्रकार से नींद का न आना
बच्चे का कान को खींचना और बार-बार उस पर हाथ मारना
-सुनने में परेशानी होना
-बार-बार कान का बंद होना।
-कुछ बच्चों के कान से सफेद पस आदि भी निकलती है।


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