तो बदल जाएगा शिक्षा व्यवस्था का रंग-ढंग
कल्पना कीजिए कि आप 15 साल के हैं और अपने स्कूल में गणित की क्लास में बैठे हैं. पूरी क्लास को गणित के टीचर एक सवाल हल करवा रहे हैं. उन्होंने सवाल हल कर दिया, अधिकांश को समझ में आया और कुछ को नहीं. इन छात्रों ने शिक्षक से निवेदन किया कि आप हमें एक बार और समझा दीजिए. शिक्षक ने एक बार और समझा दिया. फिर भी कुछ विद्यार्थियों को उनमें आप भी शामिल हैं को सवाल का हल समझ नहीं आया. आप टीचर से कहते हैं कि सर एक बार और समझा दीजिए ना प्लीज. अब टीचर का पारा चढ़ जाता है. वो आपको डांटते हैं लेकिन, एक बार और समझा देते हैं. अब आपको समझ आए चाहे नहीं आप एक बार और समझाने का निवेदन तो अब नहीं कर सकते. शर्म की वजह से यह निवेदन अगली कक्षाओं में अन्य सवालों के लिए भी अब नहीं किए जाएंगे. क्योंकि, आप स्वयं को कम अक्ल या मंदबुद्धि सिद्ध करवाना नहीं चाहते. ऐसा विश्व के अनगिनत छात्रों के साथ प्रतिदिन होता आया है और हो रहा है. हमारी शिक्षा व्यवस्था दुर्भाग्य से अपने मकसद मंद बुद्धि छात्रों को तीक्ष्ण बुद्धि में परिवर्तित करने में कोई रुचि नहीं रखती. वह पहले से तीक्ष्ण बुद्धि वालों को शिखर पर पहुंचाने के लिए आतुर दिखती है और मंद बुद्धियों को लगभग कुचल देती है.
एक और कल्पना कीजिए कि, आप अपने स्कूल में हैं और आपके विज्ञान के अध्यापक अच्छे नहीं हैं. या वे बहुत बोरिंग तरीक़े से विज्ञान पढ़ाते हैं जबकि आपके मित्र के स्कूल के टीचर विज्ञान को बहुत ही मनोरंजक अंदाज में पढ़ाते हैं. लेकिन आपको तो स्कूल द्वारा थोपे गए टीचर से ही पढ़ना है. अब चाहे वह अच्छा हो तो आपकी क़िस्मत और बुरा हो तो आपकी क़िस्मत. लेकिन ऑनलाइन लर्निंग में आपके पास असीमित विकल्प आ जाते हैं. आप चाहे तो मुंबई की किसी श्रेष्ठ शिक्षक से विज्ञान पढ़ें या फिर लंदन या वॉशिंगटन के किसी विश्व प्रसिद्ध शिक्षक से. अब विश्व के अच्छे शिक्षक आपसे सिर्फ़ एक क्लिक दूर हैं. ना आपको स्कूल प्रबंधन से गुज़ारिश करना है ना अपने प्रिंसिपल के सामने गिड़गिड़ाना है. बस आपको तो अपने मोबाइल पर या लैपटॉप पर या स्मार्ट टीवी पर एक क्लिक भर करना है और आपका पसंदीदा शिक्षक आपके सामने हाज़िर हो जाएगा, विषय को मनोरंजक अंदाज़ में लिए हुए.
यह है नए ज़माने की ज्ञान क्रांति
कुछ भी सीखने में हम अपनी ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करते हैं उसमें भी सबसे ज़्यादा अपनी आंखों का. 70% से 80% सीखने के लिए हम आंखों पर निर्भर होते हैं. आंखें जो देखती है वह मस्तिष्क को बताती है. मस्तिष्क अपनी प्रोग्रामिंग के जरिए स्वयं में डाटा कलेक्ट करता है. यह डाटा ही होते हैं जिसे हम ज्ञान कहते हैं. अब यदि इस देखने की क्रिया को रोचक, मनोरंजक और यादगार बना दिया जाए तो बच्चे बहुत ज़्यादा ज्ञान अर्जित कर सकते हैं. वह भी बहुत कम प्रयास और तनाव के.
गांव और छोटे शहरों में अच्छे शिक्षकों की बेइंतहा कमी है. सरकारी स्कूल तो वैसे ही नाकारा घोषित हो चुके हैं. लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन इसका एक शानदार विकल्प प्रस्तुत करता है. वह अच्छे शिक्षकों की कमी को तुरंत पूरी कर देता है. क्योंकि, स्क्रीन कहीं पर भी ऑन की जा सकती है बस ज़रूरत है तो इंटरनेट की. अगर बच्चे की अंग्रेज़ी अच्छी हो तो फिर वह विश्व के किसी भी अच्छे शिक्षक से पड़ सकता है. अच्छी अंग्रेज़ी सीखने के लिए भी उसे किसी कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं है.
गांव और क़स्बों के अभिभावकों के लिए शिक्षा के संबंध में एक समस्या यह भी है कि उन्हें अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु शहर भेजना होता है. शहर उनके गांव-क़स्बों से थोड़ी या बहुत ज़्यादा दूर हो सकते हैं. इसपर उन्हें शहरों के अभिभावकों की तुलना में ज़्यादा ख़र्च करना होता है. उनके बच्चे भी उनसे दूर हो जाते हैं. लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन से यह समस्या भी तुरंत हल हो जाती है. क्योंकि अब बच्चा अपने घर पर अपने माता-पिता के पास रहकर उसी शिक्षक से पड़ सकता है जिससे मेट्रो सिटीज़ का कोई अमीर बच्चा पढ़ रहा होता है.
आदतों को बदलने में वक़्त लगेगा, पर आप रहें तैयार
हमारी आदतें और सोच एकदम नहीं बदलती बच्चे स्क्रीन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं लेकिन अभिभावक अभी इतने ज़्यादा इसे लेकर आश्वस्त नहीं दिखते (और सरकारें तो और भी ज़्यादा जड़ और आलसी होती हैं). क्योंकि उन्होंने कभी ऐसा होते हुए नहीं देखा. उन्होंने स्वयं ऐसे शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण की है जो उनके सामने थे, उन्हें पढ़ाते थे, डांटते थे और कभी-कभी मारते थे. तो वे उसी को श्रेष्ठ मानते हैं. वर्तमान के शिक्षक भी इस नई व्यवस्था की कमियां बताते हुए मिल जाएंगे क्योंकि, ये उन्हें अप्रासंगिक और बेरोज़गार जो बना सकती है. आप एक लर्निंग ऐप के ऐड देखिए जिसमें शाहरुख ख़ान कहते हैं कि,‘ऐप से मैथ्स सीखेगा तू? मैनू तो फ़ुल डाउट है.’ तो बच्चा कहता है कि,‘जब तक मेरे डाउट क्लियर नहीं हो जाते ना, आई कीप गोइंग बैक टू इट, बैक टू इट...’ एक और ऐड में बच्चा कहता है कि,‘मैं तो कंफ़र्टेबल हूं ऑनलाइन लर्निंग से लेकिन आपकी (शाहरुख की) उम्र के मेरे मम्मी पापा नहीं मानेंगे.’अन्य एड में शाहरुख कहते हैं कि,‘मैथ्स के फ़ॉर्मूले तो चेंज नहीं हुए हैं ना.’ तो बच्ची कहती है कि,‘पापा मैथ्स का फ़ॉर्मूला चेंज नहीं हुआ तो क्या पढ़ने का तरीक़ा तो चेंज हुआ है ना.’ फिर शाहरुख ख़ान कहते हैं कि,‘इनकी पढ़ाई के लिए हम इन्हें कितना कुछ कहते हैं, अब थोड़ी इनकी भी सुन लें.’ये एड बताते हैं कि अब पढ़ाई के लिए अभिभावकों की भी सोच बदली जाएगी.
पुनश्च: मेरी 5 साल की बेटी से मैंने पुछा कि तुम्हें सबसे अच्छे से कौन समझाता है? उसने फौरन जवाब दिया,'डोरा'. यही है बदलाव, हो सकता है कि आने वाले वक़्त में प्राइमरी क्लास के बच्चों में से अधिकांश के फ़ेवरेट टीचर डोरा, डोरेमॉन, निंजा हथौड़ी या भीम हो. सुकरात ने कहा था कि,‘ज्ञान क्रांति है.’ और अब इस ज्ञान में बहुत बड़ी क्रांति आने वाली है. मेरी राय है कि आप भी तैयार रहिए इस परिवर्तन के लिए जिसे कोरोना ने बेहिसाब गति दे दी है. जड़ता छोड़िए. ज़माना बदल रहा है इसलिए आप भी अपनी सोच को बदलिए, अपने बच्चों के लिए.