अध्ययन : कोरोना से क्षतिग्रत फेफड़े अपने आप 3 महीनों में हो जाएंगे ठीक

कोरोनावायरस का सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। कोरोनावायरस से रिकवर होने के बाद भी ये वायरस लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा।

Update: 2020-11-10 14:00 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  कोरोनावायरस का सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। कोरोनावायरस से रिकवर होने के बाद भी ये वायरस लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा। इस वायरस से रिकवर हुए कई मरीज सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारी का सामना कर रहे है। अभी तक माना जा रहा था कि कोरोना से रिकवर हुए जिन मरीजों को फेफड़ों संबंधित परेशानी हैं उन्हें तमाम उम्र इस परेशानी के साथ ही रहना होगा। लेकिन अब एक नए अध्ययन में ये बात सामने आई है कि कोरोना के प्रभाव से क्षतिग्रत हुए फेफड़े अपने आप तीन महीनों में ठीक हो जाएंगे।

ब्रिटिश टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक इस स्टडी के बाद कोरोना रिकवर जिन मरीजों को फेफड़ों की परेशानी थी उनमें उम्मीद पैदा हुई है। अब ऐसे कोरोना के गंभीर मरीजों को लंबे वक्त तक इस बीमारी के साथ नहीं जीना होगा। अध्ययन के मुताबिक कोविड -19 से मरने वाले ज्यादातर लोगों के फेफड़ों में क्षति पाई गई थी। निष्कर्षों से डॉक्टरों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि "लॉन्ग कोविड" नामक सिंड्रोम के पीछे कारण क्या है? जिसकी वजह से मरीज में महीने तक कोविड के लक्षण रह सकते हैं।

शोध का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्हें SARS-CoV-2 की कुछ अनूठी विशेषताएं भी मिली हैं, जिससे कोविड-19 वायरस होने का पता लगाया जा सकता है। इससे यह समझा जा सकता है कि ये वायरस इस तरह का नुकसान क्यों पहुंचाता है।ट्रायल के दौरान कोरोना से बीमार होने वाले करीब आधे मरीजों में रिकवर होने के 12 हफ्ते बाद फेफड़े क्षतिग्रस्त नहीं मिले। यह इस तरह की पहली स्टडी है जिसमें कोरोना मरीजों के फेफड़े ठीक होने की बात कही गई है। हालांकि, कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले कई डॉक्टरों का कहना है कि रिकवर होने के कई हफ्ते बाद भी मरीजों में बीमारी के साइड इफेक्ट देखे जा सकते हैं।

ऑस्ट्रिया में शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में उन रोगियों को शामिल किया जिन्हें गंभीर कोरोनावायरस संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था।परिणामों से पता चलता है कि अस्पताल छोड़ने के छह सप्ताह बाद, 88% रोगियों में सीटी स्कैन में फेफड़े को नुकसान पहुंचने के लक्षण दिखाई दिए। जबकि 47% रोगियों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। 12 हफ्तों में ये आंकड़े क्रमशः 56% और 39% रह गए थे। इस रिसर्च को यूरोपीय श्वसन सोसायटी इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रस्तुत किया जाएगा।

स्टडी के दौरान ऑस्ट्रिया में 86 मरीजों की जांच की गई। ये मरीज 29 अप्रैल से 9 जून के बीच हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने के 6 और 12 हफ्ते बाद इन मरीजों की जांच की गई। रिकवरी के 6ठे हफ्ते में 88 फीसदी मरीजों के फेफड़े में नुकसान के सबूत मिले। लेकिन 12वें हफ्ते में ये आंकड़ा घटकर 56 फीसदी हो गए।स्टडी में शामिल लोगों की औसत उम्र 61 साल थी और कुल 65 फीसदी पुरुष थे। कुल मरीजों में करीब आधे पूर्व में स्मोकर रह चुके थे। वहीं, 20 फीसदी मरीज ऐसे थे जिन्हें कोरोना की वजह से आईसीयू में भर्ती होना पड़ा था।  


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