सेहत के लिए नुकसानदायक है सिर ढककर सोना, भुगतने पड़ते हैं गम्भीर परिणाम

भुगतने पड़ते हैं गम्भीर परिणाम

Update: 2023-06-27 10:53 GMT
हम सबको सोने की एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें अच्छी नींद आती है। कुछ लोगों को पेट के बल लेटकर और कुछ को करवट के बल में अच्छी नींद आती है। परन्तु कुछ लोग ऐसे में होते हैं जिन्हें सिर से ओढ़े बिना नींद ही नहीं आती। चादर या कंबल सिर से ओढक़र सोने पर मुँह और नाक दोनों ढक जाते हैं। इस आदत से कई गम्भीर परिणाम सामने आते हैं। सर्दियों में अधिकतर लोग सर्दी से बचने के लिए रजाई या कंबल में मुंह ढककर सोते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इससे सेहत को कई गंभीर नुकसान हो सकते हैं। कई बार इस तरह नियमित सोने से सिर दर्द, उल्टी और मितली आदि की समस्याएं भी होने लगती हैं। कई बार लोग मुंह ढककर सोने के साथ कमरे में हीटर जलाकर भी रखते हैं। ऐसा करने से शरीर में कई तरह के साइड इफेक्टस हो सकते हैं। सर्दी में भी रजाई या कंबल से मुंह ढककर सोने से घुटन की समस्या भी हो सकती है। आज हम अपने पाठकों को इस आलेख के माध्यम से यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि सर्दी, गर्मी, बरसात चाहे कोई भी मौसम हो, सिर तक ओढक़र नहीं सोना चाहिए। सोते समय हमेशा मुँह खुला होना चाहिए। आइए डालते हैं एक नजर शरीर पर होने वाले उन दुष्प्रभावों पर जो मुंह ढककर सोने से होते हैं—
दम घुटने की आशंका
जिन लोगों को हृदय से सम्बन्धित समस्याएँ, अस्थमा या स्लीप एप्निया आदि बीमारियाँ हैं, उनमें सोते समय ऑक्सीजन कम होने के कारण दम घुटने का खतरा बना रहता है। दरअसल, मुँह ढककर हम जो हवा छोड़ते हैं, वही सांस के द्वारा अंदर खींच लेते हैं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाता जिसके चलते दम घुटने जैसी स्थिति आ जाती है। कई बार कंबल के रेशे तक सांसों के जरिए अंदर पहुँच जाते हैं।
ब्लड सर्कुलेशन होता है प्रभावित
मुंह ढककर सोने से ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है। इस तरह सोने से शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। लंबे वक्त तक सोने के कारण कंबल में मौजूद ऑक्सीजन का ही इस्तेमाल करते हैं। देर तक वही ऑक्सीजन लेने से कंबल में ऑक्सीजन की कमी और ऑक्सीजन अशुद्ध होने लगती है। जिससे अशुद्ध ऑक्सीजन ही शरीर में जाने लगती है और शरीर का ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होने लगता है।
पाचन पर भी असर
इससे पाचन से सम्बन्धित समस्याएँ भी आ सकती हैं और कुछ समय बाद इसका असर वजन पर दिखने लगता है। सिर ढककर सोने से शरीर की गतिविधियाँ कम हो जाती हैं और मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है जिस वजह से पाचन क्रिया भी सही से नहीं हो पाती है। वसा जमा होने से वजन तेजी से बढऩे लगता है।
वजन बढऩे लगता है
सर्दियों में मुंह ढककर सोने से वजन बढऩे की समस्या होने लगती है। जब आप मुंह ढककर सोते हैं, तो पूरा शरीर गर्म होने के कारण नींद बहुत गहरी आती है और आप ज्यादा सोते हैं। जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है और मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाने से शरीर में फैट जमा होने लगता है और वजन तेजी से बढऩे लगता है।
स्लीप एप्निया का खतरा
यह एक तरह का स्लीपिंग डिसऑर्डर है, जो अक्सर सोने के दौरान सांस लेने की कठिनाइयों के चलते होता है। डेंटल स्लीप मेडिसिन पर हुए एक सम्मेलन के मुताबिक भारत में करीब 40 लाख लोग, खासकर बुर्जुग और मोटे लोग ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया सिंड्रोम से पीडित हैं। सोते समय ऐसे रोगियों में घुटन का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
फेफड़े होते हैं प्रभावित
इसका असर फेफड़ों पर भी पड़ता है। जब आप मुँह और नाक ढक लेते हैं तो फेफड़ों में गैस के आदान प्रदान का काम सही तरीके से नहीं हो पाता, जिस वजह से वे सिकुडऩे लगते हैं। ऐसे में अस्थमा, सुस्ती, डिमेंशिया या फिर सिरदर्द जैसी शिकायत बनी रहती है।
स्किन एलर्जी का खतरा
मुंह ढककर सोने से स्किन एलर्जी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अंदर की अशुद्ध हवा के कारण शरीर को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती। जिससे त्वचा का रंग काला पडऩा लगता है और त्वचा का ग्लो भी चला जाता है। नियमित ऐसे सोने से त्वचा पर रैशेज की संभावना भी काफी बढ़ जाती है।
मुंह ढककर सोने से हार्ट अटैक का खतरा काफी बढ़ जाता है क्योंकि अधिकतर लोग ठंड से बचने के लिए रजाई से मुंह को कवर कर लेते है। ऐसा करने से शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता। जिससे जी मिचलना, उल्टी और दम घुटने की स्थिति हो सकती है और हार्ट अटैक का खतरा होने का खतरा भी बढ सकता है।
मुहाँसों की समस्या
सिर ढककर सोने से अशुद्ध वायु शरीर को मिलती है और पसीने के कारण चेहरे के रोम छिद्र भी बंद हो जाते हैं। इसके कारण चेहरे पर मुँहासे निकलते हैं।
सिर ढककर सोने से मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इससे डिमेंशिया का जोखिम बढ़ जाता है क्योंकि यह मुँह और नाक के माध्यम से वायु प्रवाह को बाधित करता है। मुँह ढककर सोने से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिस वजह से सिरदर्द, नींद में कमी, जी मिचलाना, थकान, अल्जाइमर्स या डिमेंशिया जैसी दिक्कतें होती हैं।
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