सेक्स वर्कर्स की जिंदगी मुश्किल में, ये कहानियां उनके बच्चे भी नहीं जानते होंगे

Update: 2021-05-28 09:38 GMT

कोरोना महामारी का असर हर किसी की जिंदगी पर पड़ा है. इस महामारी में सबसे बुरी तरह सेक्स वर्कर्स प्रभावित हुई हैं. हाल ही में एक 19 साल की लड़की का वीडियो वायरल हुआ था जो सात साल के बाद तस्करों के चंगुल से छूट पाई थी. 12 साल की उम्र में झारखंड से अपहरण कर इस लड़की को बिहार लाया गया था.

सात साल तक इस लड़की कई तरह की शारीरिक प्रताड़नाएं दी गईं. उसे जबरदस्ती आर्केस्ट्रा डांस का हिस्सा बनाकर जगह-जगह ले जाया जाता था. एक डांस टूर के दौरान किसी ने उसे मिशन मुक्ति फाउंडेशन एनजीओ के डायरेक्टर विरेंद्र कुमार सिंह का नंबर दिया. लड़की ने किसी तरह विरेंद्र कुमार को फोन कर उनसे मदद मांगी और आखिर पुलिस की मदद से उसे छुड़ा लिया गया.
महामारी और लॉकडाउन का असर महिलाओं को तस्करों के चंगुल से छुड़ाने और सेक्स वर्कर के दलदल से बाहर निकालने के काम पर भी पड़ा है. मौजूदा हालात का फायदा मानव तस्करी करने वाले पूरा उठा रहे हैं जिसकी वजह से एंटी ट्रैफिकिंग संगठनों के लिए इसे रोकना एक चुनौती बनता जा रहा है.
विरेंद्र कुमार ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, 'तस्कर युवा लड़कियों को वेश्यावृत्ति के धंधे में फंसाने के लिए लॉकडाउन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस समय यह रैकेट तेजी से बढ़ने लगा है क्योंकि लोगों के पास नौकरी नहीं है और उनके परिवारों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. कई लड़कियां परिवार की मदद के लिए छोटे-मोटे काम करने के लिए घर छोड़ देती हैं.'
विरेंद्र कुमार के अनुसार, वेश्यावृत्ति के सरगना व्हाट्सएप चैट ग्रुप्स और बल्क मैसेजिंग से स्पा सेंटर और मसाज पार्लर के विज्ञापन के जरिए देह व्यापार को बढ़ा रहे हैं. मार्च में कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद विरेंद्र ने सूरत में पुलिस की मदद से 14 लड़कियों को छुड़वाया. इनमें से ज्यादातर पश्चिम बंगाल की थीं. बचाए गए लोगों में दो बच्चों की एक मां भी शामिल थी जिसे एक रेस्टोरेंट में नौकरी देने का झूठा वादा किया गया था.
दिल्ली, कोलकाता और मुंबई के रेड लाइड एरिया पर भी इसका सीधा असर पड़ा है. दिल्ली के जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स खाने-पीने तक की मोहताज हो गई हैं. वहां रहने वाली करीब 4,000 सेक्स वर्क्स में से आधी अपने गांव वापस चली गई हैं. जो बची हैं वो बिना पैसों के किसी तरह काम चला रही हैं. पिछली लहर में उनकी बचत उनके काम आ गई थी लेकिन इस लहर में खाना भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो रहा है. हालांकि, कई एनजीओ इनकी मदद के लिए आगे आए लेकिन वो काफी नहीं हैं.
सेक्स वर्कर्स मदद के लिए इन एनजीओ का आभार व्यक्त कर रही है लेकिन उनका कहना है कि उनकी समस्याएं कहीं ज्यादा है. उनके पास गैस सिलिंडर भरवाने तक के पैसे नहीं हैं. कईयों ने अपने बच्चों के लिए किराए पर कमरे लिए हैं क्योंकि बच्चे नहीं जानते कि उनकी मां क्या करती हैं. पिछले दो महीनों से वो मकान किराया नहीं दे पा रही हैं. वहीं कुछ सेक्स वर्कर्स अपने बच्चों को अब शेल्टर होम में रखने को मजबूर हैं.
जीबी रोड में रहने वाली ऊषा (बदला हुआ नाम) ने हिंदुस्तान टाइम्स से बताया, 'आज मेरे पास एक रुपया भी नहीं है. मैं अपनी मां को हर महीने तीन हजार रुपए भेजती थी, लेकिन अब और नहीं भेज सकती. मेरे पास एक दिन में तीन या चार ग्राहक आते थे और मैं लगभग 900 रुपये कमाती थी लेकिन मुझे नहीं पता कि अब मुझे क्या करना है. कभी-कभी हम दिन में सिर्फ एक बार खाना खाते हैं. मेरी मां को लगता है कि मैं एक डिटर्जेंट कंपनी में काम करती हूं और लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रही हूं. मुझे नहीं पता कि अब फिर से कस्टमर्स कब आएंगे.'
ऊषा जैसी कई महिलाएं हैं जिन्हें सेक्स वर्कर का ही काम करने की आदत हो गई है और वो कुछ और काम नहीं करना चाहती हैं. ऊषा का कहना है, 'मैं बर्तन धो सकती हूं और झाड़ू-पोछा कर सकती हूं लेकिन इससे मुझे हर महीने तीन हजार रुपए ही मिलेंगे. इसमें से मैं अपनी मां को पैसे कैसे भेज पाऊंगी, वो मेरी पांच साल की बेटी की भी देखभाल कर रही है.' पिछले साल कुछ सेक्स वर्कर्स को अपने क्लाइंट्स से कुछ मदद मिली थी लेकिन ये साल बहुत मुश्किल भरा है.
नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स के अनुसार आजीविका प्रभावित होने और भविष्य की चिंताओं का असर सेक्स वर्कर्स की मानसिक सेहत पर पड़ रहा है. सोशल डिस्टेंसिग जैसे नियमों का असर भी इस पेशे पर बहुत पड़ा है. सोसाइटी फॉर पार्टिसिपेटरी इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट की संस्थापक ललिता नायक पिछले 30 साल से भी ज्यादा सालों से इन सेक्स वर्कर्स की मदद कर रही हैं.
ललिता नायक कहती हैं, 'इस महामारी ने उन्हें सबसे कमजोर बना दिया है.' नायक सेक्स वर्कर्स और वेश्यालय में पैदा हुए बच्चों के खानपान का प्रबंध कर रही हैं. नायक ट्रैफिंग के मामले भी रोकने की कोशिश करती रही हैं लेकिन इस महामारी में अब एनजीओ भी सेक्स वर्कर्स को बस खाना ही उपलब्ध करा पा रहे हैं.
मजबूरी का आलम बताते हुए एक सेक्स वर्कर ने कहा, 'मैं खाना खाने के लिए पास के स्कूल में भी नहीं जा सकती क्योंकि वहां हमें ताना मारा जाता है और गाली दी जाती है. अब मैं सीढ़ियों पर क्लाइंट का नहीं, बल्कि खाने का इंतजार करती हूं.'
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