कोविड के बाद बढ़े मरीज, इन्हे भी है रोग का खतरा
संतुलन और समन्वय में कठिनाई आ जाती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पार्किंसंस रोग, मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में असामान्यता के कारण होने वाली समस्या है, जिसमें शारीरिक-मानसिक संतुलन और समन्वय में कठिनाई आ जाती है जो जीवन के सामान्य कामकाज को भी प्रभावित कर देती है। साल 2016 के आंकड़ों के अनुसार देश में इस रोग के करीब 6 लाख लोग शिकार थे, हालांकि कोरोना महामारी के बाद इसके मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है।
पार्किंसंस रोग में जीवनशैली के सामान्य कामकाज जैसे चलना, किसी भी चीज को पकड़ना तक कठिन हो जाता है। वैश्विक स्तर पर बढ़ती इस समस्या की रोकथाम और जागरूकता के लिए हर साल 11 अप्रैल को वर्ल्ड पार्किंसंस डे मनाया जाता है।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि साल 2019 के आखिर में शुरू हुई कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव ने पार्किंसंस रोग के मामलों में भी इजाफा किया है। आमतौर पर इसे उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्या माना जाता था, पर युवाओं में भी पार्किंसंस रोग के न्यूरोलॉजिकल लक्षण जैसे भ्रम, याददाश्त में कमी, शरीर की मुद्रा में असंतुलन कोरोना महामारी के बाद अधिक देखे जा रहे हैं।
कोविड-19 ने दिमाग के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित किया। महामारी के बाद इसके करीब 2% मामले बढ़े हैं। ऑस्ट्रेलिया स्थित क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि सार्स-सीओवी-2 वायरस मस्तिष्क में उसी तरह का इंफ्लामेटरी रिस्पांस बनता है, जो पार्किंसंस रोग के दौरान होता रहा है।
शोध में देखा गया कि कोरोना वायरस मस्तिष्क में माइक्रोग्लिया नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रभावित करता है। ये कोशिकाएं आमतौर पर पार्किंसंस रोग में बहुत सक्रिय हो जाती हैं और इंफ्लामेटरी कैमिकल्स का उत्पादन करती हैं।
क्या कहते हैं शोधकर्ता?
अध्ययन के लेखक, प्रोफेसर ट्रेंट वुड्रूफ़ कहते हैं, हमने शोध में पाया कि कुछ रोगियों में ये कोशिकाएं काफी अधिक इंफ्लामेटरी समस्याओं का कारण बन रही थीं, इस तरह की दिक्कत कोरोना महामारी से पहले अब तक पार्किंसंस और अल्जाइमर जैसे मस्तिष्क के रोगों में देखी जाती रही हैं।
प्रोफेसर वुड्रूफ़ कहते हैं कि लॉन्ग कोविड में ब्रेन फॉग जैसी दिक्कतें होती रही हैं, ये पार्किंसंस रोग को भी बढ़ाने का कारण हो सकती है।