Pancreatic Cancer: पैंक्रियाटिक कैंसर का पता लगाने जापान ने बनाया दुनिया का पहला स्क्रीनिंग टेस्ट
पैंक्रियाटिक कैंसर
नई दिल्ली, वैज्ञानिकों ने पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए दुनिया का पहले शुरुआती स्क्रीनिंग टेस्ट बनाया है। इस टेस्ट की खास बात यह है कि इसमें बेहद छोटे कीड़ों का उपयोग किया जाएगा। यह कीड़े सूंघकर ट्यूमर की पहचान कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जापान में यह टेस्ट इसी महीने से उपल्बध हो गया है, जो कैंसर का पता लगाने में 100 प्रतिशत सटीक है और शुरुआती चरणों में इसका पता लगा सकता है।
कैसे काम करता है ये टेस्ट?
इसके लिए आपको डाक के ज़रिए यूरिन सैम्पल को लैब भेजना होगा, जिसे कई कीड़ों से भरी एक प्लेट में डाला जाएगा। इन कीड़ों को nematodes कहते हैं, जो एक मिलीमीटर लंबे होते हैं। यह कीड़े अपनी तेज़ सूंघने की शक्ति के लिए जाने जाते हैं, जिसका उपयोग यह शिकार ढूंढ़ने के लिए करते हैं। वैज्ञानिकों ने कीड़ों को मॉडिफाई किया है, ताकि वे सीधे पैंक्रियाटिक कैंसर को पहचान सकें। रिसर्च में पता चला है कि ब्लड टेस्ट के मुकाबले इस तरह से यूरिन कैंसर ट्यूमर का पता बेहतर तरीके से चलता है।टोक्यों के Hirotsu Bio ने N-NOSE टेस्ट को पहले जनवरी 2020 में लॉन्च किया था, जिसका दावा है कि यह टेस्ट उन लोगों का पता लगा सकता है जिनमें कैंसर का जोखिम उच्च होता है। लगभग सवा लाख लोगों ने टेस्ट किया, जिनमें से 5 से 6 प्रतिशत लोग उच्च जोखिम में पाए गए। लोग सीधे पैंक्रियाज़ टेस्ट की किट को खरीद सकते हैं, इसकी कीमत 505 डॉलर्स यानी लगभग 42 हज़ार रुपए है।
दूसरे कैंसर के लिए भी आएंगी किट्स
हिरोटसू ने पहले पैंक्रियाटिक कैंसर पर ही फोकस इसलिए किया, क्योंकि इसका निदान मुश्किल से होता है और यह बीमारी तेज़ी से बढ़ती है। साथ ही ऐसा कोई एक टेस्ट नहीं है जिससे यह पता चल सके कि व्यक्ति पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित है। अब यह कंपनी आने वाले सालों में लिवर, सर्वाइकल और स्तन कैंसर के लिए भी ऐसा ही टेस्ट लाएगी।पैंक्रियाटिक कैंसर क्या है?
पैंक्रियाटिक कैंसर, सभी तरह के कैंसर में सबसे ज़्यादा ख़तरनाक माना जाता है। करीब 95 फीसदी लोग जो इससे पीड़ित होते हैं, अपनी जान गंवा बैठते हैं। पैंक्रियाटिक कैंसर पेट के निचले हिस्से (अग्न्याशय) के पीछे वाले अंग में होता है। इस कैंसर की शुरुआत में वज़न कम होना या फिर पेट दर्द जैसे लक्षण नहीं दिखते हैं।
इसके कारण क्या हैं?
यह अग्न्याशय में कोशिकाओं की असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि के कारण होता है। आपको बता दें कि पैंक्रियाज़ पाचन तंत्र का एक बड़ा ग्लैंड है।किन लोगों में बढ़ जाता है जोखिम?
90 प्रतिशत मामले 55 साल की उम्र से ज़्यादा के लोगों में देखे जाते हैं। 50 फीसदी मामले 75 और उससे ज़्यादा उम्र के लोगों में होते हैं। वहीं, 10 प्रतिशत मामले जेनेटिक्स के कारण होते हैं।
अन्य कारणों में उम्र, धूम्रपान और डायबिटीज़ जैसी बीमारी है। पैंक्रियाटिक कैंसर के 80 फीसदी मरीज़ किसी न किसी तरह की डायबिटीज़ से पीड़ित होते हैं.
यह इतना घातक क्यों है?
शुरुआती स्टेज में ज़्यादातर तरह के कैंसर को मैनेज किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान पैंक्रियाटिक कैंसर के कोई खास लक्षण नज़र नहीं आते। जब मरीज़ पेट दर्द और जॉनडिस जैसे लक्षण महसूस करना शुरू करता है, तब तक कैंसर की स्टेज तीसरी या चौथी हो जाती है। इस स्टेज तक कैंसर दूसरे अंगों तक फैल चुका होता है।
इलाज के क्या ऑप्शन हैं?
इस कैंसर में पैंक्रियाज़ को निकाल देना ही एक मात्र प्रभावी उपचार है। हालांकि, यह तरीका उन लोगों के लिए काम नहीं करता, जिनका कैंसर दूसरे अंगों तक फैल चुका हो। ऐसे मामले में मरीज़ के दर्द को कम करने की कोशिश की जाती है।
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