सरसों दाने और बीज की मांग बढ़ने के कारण तेल-तिलहन के भाव में गिरावट हुआ

मंडियों में नई तिलहन फसलों की आवक बढ़ने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को बिनौला, मूंगफली, सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई.

Update: 2021-10-02 16:17 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मंडियों में नई तिलहन फसलों की आवक बढ़ने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को बिनौला, मूंगफली, सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई. मंडियों में आवक काफी कमजोर होने से सरसों और सोयाबीन की नई फसल आने के बावजूद सोयाबीन तेल-तिलहन सहित बाकी तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे.

देश में पामोलीन, सीपीओ और सोयाबीन डीगम का आयात निरंतर बढ़ रहा है और आयातकों को 100 – 150 रुपए प्रति क्विंटल नीचे भाव पर इनकी बिक्री करनी पड़ रही है. इन तेलों की व्यावसायिक मांग तो है, पर आयात अधिक मात्रा में होने से इनके स्थानीय भाव कमजोर है.
आयात शुरू होने के बाद डीओसी का भाव आधे से भी हुआ कम
सोयाबीन तेल-तिलहन के भाव का रुख स्पष्ट नहीं है और भाव में स्थिरता नहीं है. नई फसमंडियों में नई तिलहन फसलों की आवक बढ़ने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को बिनौला, मूंगफली, सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई.ल की आवक होने से अलग-अलग स्थानों पर इनके भाव भिन्न हैं. सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) का आयात शुरू होने से स्थानीय डीओसी को खपाने को लेकर चिंता बढ़ी है और इसी वजह से सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों पर दबाव है. इस दबाव के बावजूद त्योहारी मांग होने से सोयाबीन तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे.
लगभग दो महीने पहले जिस डीओसी का भाव 9,700-9,800 रुपए क्विंटल के स्तर पर था, नई फसल आने के बाद वह कीमत अब घटकर 4,700-4,800 रुपए क्विंटल रह गई है.
मूंगफली की नई फसल आने की संभावना से पहले हाजिर बाजार में इसके भाव टूट गए हैं और किसानों को मजबूरन कम कीमत पर अपना माल बेचना पड़ रहा है. इसी प्रकार बिनौला की भी नई फसल की आवक शुरू होने के बीच इसके तेल के भाव कमजोर हो गए हैं.
सरसों की चौतरफा मांग, नेपाल से बीज की डिमांड

सरसों के बारे में विशेषज्ञों ने कहा कि शुक्रवार को मंडियों में सरसों की आवक लगभग 1.75 लाख बोरी की थी जो शनिवार को घटकर एक लाख बोरी रह गई है. हालांकि, सरसों की दैनिक औसत मांग लगभग 3.5-4 लाख बोरी की है. आने वाले दिनों में सरसों की मांग और बढ़ेगी. इसके अलावा नेपाल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड सहित सरसों की चौतरफा मांग है. नेपाल में तो सरसों बीज की भी मांग है.
सरसों विशेषज्ञों का कहना है कि सरसों का स्टॉक मुश्किल से 18-20 लाख टन बचा होने का अनुमान है. इसका कोई विकल्प भी नहीं है. इन तथ्यों के मद्देनजर ही सरकार को इसके बारे में कोई फैसला लेना चाहिए.
सरसों दाने का स्थायी स्टॉक बनाकर रखे सरकार
सरसों की अगली पैदावार आने में अभी लगभग पांच महीने का समय है और सरसों की पैदावार इस बार दोगुना से भी अधिक बढ़ सकती है. लेकिन सरसों की आरंभिक फसल के तेल का रंग हरा होता है. ठीक तरह से परिपक्व सरसों के मंडियों में मार्च के पहले सप्ताह में ही मिलने की उम्मीद की जा रही है. तभी इसके तेल का हरापन भी खत्म होने की उम्मीद की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि इस बार सरकार को अधिक से अधिक मात्रा में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से सरसों की खरीद करने का इंतजाम कर लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि गेहूं की तरह सरसों दाने का लगभग 10 लाख टन का स्थायी स्टॉक बनाकर रखना चाहिए क्योंकि सरसों दाना लगभग 10-12 साल खराब भी नहीं होता.
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